आज भोक्ता भोग की अशुद्धि के कारण संकट में है। इसलिए आवश्यकता है कि भोग्य के दोषों को दूर करके भोक्ता मानव जाति की रक्षा की जाए। हम प्रतिदिन जो कुछ ग्रहण करते हैं उस में मुख्य रूप से अन्न और जल होता है। आज का मनुष्य उसे दूषित कर लिया है। न हमारा अन्न शुद्ध है, ना जल शुद्ध है।

अशुद्धि अन्न के स्वरूप की होती है, अन्न के अन्याय पूर्वक उपार्जन से होती है, निर्माण के प्रकार से होती है, निर्माणकर्ता की अपवित्रता से होती है, साथ ही साथ निर्माणकर्ता की भावना का भी उस पर प्रभाव पड़ता है। अन्न में आजकल व्यापक रूप से मिलावट की जा रही है। जो कुछ हम मुख से पेट में डाल रहे हैं, सभी में मिलावट है। एक व्यक्ति ने जीवन से उब कर जहर खा लिया, किंतु वह मरा नहीं, क्योंकि जहर में भी मिलावट थी। हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए भोक्ता के लिए भोग्य होता है, भोग्य के लिए भोक्ता नहीं होता। कंठ के लिए माला होती है, माला के लिए नहीं होता।

किसी मार्ग में एक राक्षस रहता था, वह पथिकों को बुलाकर खाट में सुलाता था। यदि खाट बड़ी होती थी तो वह उस पथिक के शरीर को खींचकर बड़ा करता था और खाट छोटी हो तो जितना शरीर खाट के बाहर जाता था, उतना शरीर काट देता था। दोनों प्रकार से पथिक की मृत्यु हो जाती थी। वह मूर्ख नहीं समझता था कि मनुष्य के लिए खाट है, खाट के लिए मनुष्य नहीं है। इसी तरह हमारे लिए भोग्य है, भोग्य के लिए हम नहीं है।

आज मनुष्य अपने प्रयत्न से विकास कर रहा है। वह हमारे जीवन के लिए होना चाहिए जीवन उसके लिए नहीं। एक उदाहरण- श्रीमद् भागवत की कथा है। भगवान ने वामन का रूप धारण करके राजा बलि से तीन पैर पृथ्वी का दान मांगा,और बलि ने तीन पैर पृथ्वी का दान देने का वचन दिया। इसके पश्चात भगवान ने उसकी त्रिलोकी को दो ही पैर में नाप दिय।और कहा कि तुमने तीन पग पृथ्वी देने का संकल्प किया है, अब तीसरे पैर  की भूमि बताओ। बलि ने सुविचारित उत्तर दिया कि त्रिलोकी मेरी भोग्य है,मैं उसका भोक्ता हूं। इसलिए आप अपना तीसरा पग मेरे मस्तक पर रखिए। भगवान वामन प्रसन्न हो गए और बलि कृतकृत्य हो गया। अभिप्राय यह है भोक्ता के लिए भोग होता है भोग के लिए भोक्ता नहीं होता।