ग्रह भेषज जल पवन पट, पाइ कुयोग सुयोग।

होहिं कुवस्तु सुवस्तु जग,  लखहिं सुलच्छन लोग।।

अर्थात ग्रह, यदि महादशा में ग्रह अनुकूल है और अन्तरदशा में प्रतिकूल है, तो ठीक-ठीक फल नहीं दे पाते। इसलिए ग्रहों की अनुकूलता और प्रतिकूलता कुयोग और सुयोग पर निर्भर करती है। इसी प्रकार औषधि भी अनुपान से लाभदायक और हानिकारक होती है। जल, जल भी अच्छे स्थान से प्रवाहित होगा तो वह स्वच्छ होगा और अपवित्र स्थान से होकर प्रवाहित होगा तो उसमें अपवित्रता आ जायेगी। पवन, वायु भी कुयोग और सुयोग से सुगंधित और दुर्गन्ध युक्त हो जाती है।

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इसी प्रकार योग से वस्त्र की भी शोभा बढ़ती घटती है। तो सुयोग और कुयोग से मनुष्य के भीतर गुण और दोष आते हैं। इसलिए मनुष्य को अच्छे लोगों का साथ करना चाहिए। संतों का साथ करना चाहिए। इसलिए भगवान ऋषभदेव जी ने अपने पुत्रों उपदेश करते हुए कहा कि महत्पुरुषों का संग मुक्ति का मार्ग है, और जो विषयों के अभिलाषी सांसारिक लोग हैं उनका संग नरक का द्वार है, और इसके साथ ही उन्होंने संतों के लक्षण भी बताये। केवल वेष से कोई संत नहीं होता, स्वभाव और चरित्र से संत होता है। जो महापुरुष होते हैं वो समचित्त होते हैं, सभी के कल्याण की भावना वाले होते हैं, प्रशांत रहते हैं, किसी के ऊपर क्रोध नहीं करते, ओर बिना कारण के ही लोगों का उपकार किया करते हैं। संतों के सम्बंध में कहा भी जाता है कि-

मनसि वचसि काये पुण्यपीयूषपूर्णाः त्रिभुवनमुपकार- श्रेणीभिः प्रीणयन्तः।

परगुणपरमाणुन् पर्वतीकृत्य नित्यं निजहृदि विकसन्तः सन्ति सन्तः कियन्तः ।।

इसका अर्थ ये है कि-जो मन वचन कर्म से सदा पवित्र कार्य ही किया करते हैं, अपने उपकारों से तीनों लोकों को प्रसन्न रखते हैं, दूसरों के थोड़े से गुण को भी बहुत समझकर उसका आदर करते हैं, और सबके प्रति प्रेम का भाव रखते हैं ऐसे स्वभाव वाले संत कहे जाते हैं। ऐसे संतों का संग हमारे लिए श्रेयस्कर हैं।