नई दिल्ली। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के नेतृत्व में हुई जीएसटी काउंसिल की बैठक के नतीजे आ गए हैं। पेट्रोल-डीजल की कीमतें कम होने की आस लगाए लोगों को काउंसिल ने झटका दिया है। वित्त मंत्री सीतारमन ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा कि, 'हमें लगता है पेट्रोल-डीजल को फिलहाल GST के दायरे के भीतर लाने का समय नहीं आया है।'

निर्मला सीतारमण ने कहा कि केरल हाईकोर्ट के आदेश की वजह से इस मुद्दे पर काउंसिल की बैठक में बातचीत की गई थी। लेकिन अधिकांश राज्यों ने कहा कि वे यह नहीं चाहते हैं कि पेट्रोल-डीजल को जीएसटी के अंतर्गत लाया जाए। उन्होंने बताया कि केंद्र सरकार ये बात हाईकोर्ट में रखेगी। बता दें कि ईंधन तेलों को जीएसटी में रखने की काफी समय से मांग हो रही थी। यदि पेट्रोल-डीजल को जीएसटी के दायरे में लाया जाता है तो इसके दरों में करीब 25 से 30 फीसदी गिरावट आएगी।

यह भी पढ़ें: निजी कंपनियों ने लगाया भारत के कृषि डेटा में गोता, निजीकरण की बढ़ी आशंका

जीएसटी काउंसिल के अन्य फैसलों को वित्तमंत्री ने जनहितकारी बताया है। उन्होंने मीडिया को बताया कि कोरोना से संबंधित जीवन रक्षक दवाओं में छूट की सीमा को 3 महीने बढ़ाते हुए 31 दिसंबर तक करने का निर्णय लिया गया है। इसमें एम्फोटेरेसिन, रेमडिसिविर समेत 4 दवाएं शामिल हैं। इसके अलावा 7 अन्य दवाओं में 12 प्रतिशत से 7 प्रतिशत की कर छूट की सीमा को भी 31 दिसम्बर तक बढ़ा दिया गया है।

वित्तमंत्री ने बताया कि कैंसर की दवा जो अबतक 12 फीसदी टैक्स स्लैब में आता था उसे हटाकर 5 फीसदी के दायरे में किया गया है। वहीं दिव्यांगों के लिए बनी वाहनों को भी 12 फीसदी से घटाकर 5 फीसदी कर के दायरे में शामिल किया गया है। zolgensma और viltepso नाम की दो दवाएं बहुत महंगी आती हैं इसलिए इन्हें टैक्स के दायरे से बाहर रखने का निर्णय लिया गया है।

यह भी पढ़ें: PM के जन्मदिन पर वर्ल्ड रिकॉर्ड: शाम पांच बजे तक 2 करोड़ वैक्सीनेशन, हर मिनट लगे 30 हजार से ज्यादा टीके

रेस्टोरेंट्स के बदले अब जोमैटो-स्विगी से वसूला जाएगा टैक्स

वित्त मंत्री ने बताया कि जीएसटी काउंसिल की बैठक के दौरान ऑनलाइन फ़ूड डिलीवरी सिस्टम के टैक्स वसूली प्रक्रिया में बदलाव किया गया है। अब ऑनलाइन फ़ूड आइटम्स का टैक्स अलग-अलग रेस्टोरेंट्स से नहीं वसूला जाएगा। बल्कि, सेवा प्रदान करने वाली कंपनी यानी जोमैटो-स्विगी से डायरेक्ट टैक्स लिया जाएगा। यानी अब ऑर्डर्स के हिसाब से सर्विस प्रोवाइडर कंपनियां टैक्स देंगी। उन्होंने यह भी बताया कि टैक्स के दायरे में कोई बदलाव नहीं किया गया है।