निजी कंपनियों ने लगाया भारत के कृषि डेटा में गोता, निजीकरण की बढ़ी आशंका

पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर देशभर के 800 गांवों में शुरु की गयी कृषि क्षेत्र के डिजिटाइजेशन की योजना...भारत सरकार ने अमेज़न, माइक्रोसॉफ्ट और पतंजलि जैसी कंपनियों से किया करार

Updated: Sep 17, 2021, 05:51 PM IST

Photo: हम समवेत
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नई दिल्ली। निजी कंपनियों द्वारा भारत के कृषि क्षेत्र में डिजिटल सेंधमारी का विरोध शुरु हो गया है। भारत सरकार ने अपने एक पायलट प्रोजेक्ट के सिलसिले में इस साल कई निजी कंपनियों से करार किया है, जिसके तहत निजी कंपनियों को देशभर के किसानों का डेटा एकत्रित करने की छूट दे दी गई है। भारत सरकार के इस फैसले का विरोध हो रहा है। केंद्र सरकार पर कृषि क्षेत्र को निजी हाथों में सौंपने और किसानों की गोपनीयता पर आक्रमण करने का आरोप लग रहा है।  

ब्लूमबर्ग में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार भारत सरकार ने कथित तौर पर कृषि क्षेत्र में फूड सिक्योरिटी यानी खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देने और किसानों की उपज बढ़ाने के उद्देश्य से अमेरिका की तीन कंपनियों के साथ करार किया है। यह कंपनियां अमेज़न, माइक्रोसॉफ्ट और सिस्को सिस्टम्स हैं। इनके अलावा पतंजलि, इएसआरआई इंडिया और एग्री बाज़ार भी शामिल हैं। वहीं मुकेश अंबानी की कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज़ और टोबैको जायंट आईटीसी भी कृषि क्षेत्र में काम करेंगी। सरकार 2014 से जो डेटा जुटा रही है, उसे इन कंपनियों के साथ साझा किया जाएगा।   

भारत सरकार ने इसे पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर देशभर के सात राज्यों के 800 गांवों में शुरु किया है। इसके ज़रिए किसानों की भूमि के साथ-साथ मिट्टी की जानकारी, क्रॉप पैटर्न, मौसम के पैटर्न, बीमा इत्यादि सभी जानकारियां एक प्लेटफॉर्म पर एकत्रित की जानी हैं। जिसका आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के ज़रिए विश्लेषण किया जाएगा।

इसमें किसानों को एक यूनिक आईडी दी जाएगी, जो कि किसानों के आधार कार्ड से लिंक होगा। इसमें किसान की भूमि से जुड़ी सारी जानकारियां मौजूद होंगी। इतना ही नहीं इसमें किसानों के ज़मीन की उपज और उगाई जाने वाली फसल की जानकारी भी मौजूद होगी। ब्लूमबर्ग के अनुसार भारत सरकार अब तक 12 करोड़ चिन्हित किसानों में से 5 मिलियन किसानों का डेटा सीड करवा चुकी है।   

एग्री बाजार राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में इस प्रोजेक्ट को अमली जामा पहनाने की तैयारी कर रही है। जबकि पतंजलि को मध्य प्रदेश के मुरैना, उत्तराखंड के हरिद्वार और उत्तर प्रदेश के हमीरपुर में कार्य करने की अनुमति मिल गई है। वहीं अमेज़न को डिजिटल एग्रीकल्चर के लिए कंटेंट तैयार करने और इनोवेशन इकोसिस्टम को कथित तौर पर बढ़ावा देने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है। इस डेटाबेस में किसानों के लिए बनाई गई योजनाओं सहित तमाम रिकॉर्ड्स मेंटेन किए जाएंगे। जबकि माइक्रोसोफ्ट किसान इंटरफेस विकसित करेगी। इसमें फसल आने के बाद, फसल का प्रबंधन और वितरण शामिल होगा। रिपोर्ट के मुताबिक माइक्रोसॉफ्ट ने इसके लिए 100 गांवों का चुनाव किया है।  

इस प्रोजेक्ट के ज़रिए सरकार कथित तौर पर किसानों को खेती किसानी से जुड़ी हर जानकारी मुहैया कराना चाहती है। ताकि किसान यह तय कर सकें कि उन्हें कौन सी फसल उपजाने पर अधिक लाभ होगा। किस फसल को उपजाने से उन्हें अपनी फसल की अच्छी कीमत मिलेगी। इस प्रोजेक्ट के ज़रिए छोटे किसानों और उद्यमों को उभरने के अवसर प्राप्त होंगे।   

लेकिन इस पूरे प्रकरण में सरकार की मंशा को लेकर आलोचना शुरु हो गई है। किसानों को डर है कि इस डेटा से उन्हें (निजी कंपनियों को) पता चल जाएगा कि उपज कहां अच्छी नहीं थी, और वहां के किसानों से सस्ते में खरीदेंगे और इसे कहीं और ऊंचे दामों पर बेचेंगे। किसानों से ज्यादा इसका खामियाज़ा उपभोक्ताओं को भुगतना पड़ेगा। इसके साथ ही डेटा गोपनीयता भी चिंता का बड़ा सबब है। लगभग नौ महीने से कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलनरत किसानों का कहना है कि यह एक गंभीर मुद्दा है, क्योंकि डेटा को सुरक्षित रखने में सरकार पर पूरी तरह विश्वास नहीं किया जा सकता हैं। 

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इस पूरे मसले पर किसानों के मन में मौजूदा सरकार के प्रति अविश्वसनीयता अधिक चिंता पैदा कर रही है। किसान नेता केदार शंकर सिरोही ने हम समवेत से कहा कि केंद्र सरकार इस पूरे अभियान के ज़रिए किसानों को कस्टमर बनाने का कुत्सित प्रयास कर रही है। सिरोही ने कहा कि सरकार के इस प्रयास से आखिर किसानों का क्या फायदा होगा? इस पूरी परियोजना से अंतोगत्वा लाभ तो निजी कंपनियों को ही होना है। सिरोही ने कहा कि निजी कंपनियां तो किसानों को एक कस्टमर के तौर पर देख रही हैं, जिससे वे किसानों से लाभ कमाना चाहती हैं। और इसी लाभ को दिलाने के लिए केंद्र सरकार ने इस परियोजना को शुरू किया है। सिरोही का कहना है यह परियोजना कृषि क्षेत्र में निजिकरण का बोलबाला सुनिश्चित करने का प्रयास है। हालांकि सिरोही ने यह भी कहा कि सरकार के इस फैसले की वजह से इस समय जारी कृषि आंदोलन को और हवा मिलेगी।