जबलपुर। बक्सवाहा के जंगलों में हीरे के खनन के चौतरफा विरोधों के बीच मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के संभागीय बेंच ने बड़ा कदम उठाया है। जस्टिस मोहम्मद रफ़ीक के नेतृत्व में मामले की सुनवाई के दौरान न्यायालय ने केंद्र व राज्य सरकारों समेत खनन के लिए अनुबंध मिले कंपनी को नोटिस जारी किया है। वकील सुदीप सिंह द्वारा दायर याचिका के जवाब में उच्च न्यायालय ने यह कदम उठाया है। 

दरअसल, सुदीप सिंह ने एक जनहित याचिका दायर कर हाईकोर्ट से मांग की है कि बक्सवाहा के जंगलों में हीरे के खनन को लेकर किए गए अनुबंध को रद्द किया जाए। याचिकाकर्ता ने दावा किया है कि हीरा खनन के लिए 2 लाख से भी अधिक पेड़ों को काटने की योजना है जिस वजह से बुंदेलखंड का इकोलॉजिकल संतुलन बिगड़ जाएगा। 

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उन्होंने कहा है कि प्राइवेट कंपनी को जंगल के 382 हेक्टेयर वनभूमी 50 वर्षों के लिए लीज पर दे दी गई है। यदि यहां कंपनी हीरे का खनन करती है तो समुचित बक्सवाहा जंगल उजड़ जाएगा। इसका प्रभाव न केवल बुंदेलखंड के मानव जीवन पर पड़ेगा बल्कि अनगिनत जंगली जीवों का घर भी उजड़ जाएगा। 

याचिकाकर्ता ने हीरे खनन की परियोजना को एक पर्यावरण आपदा करार देते हुए कहा है कि जंगलों को बसने में सैकड़ों साल लग जाते हैं और वे जंगली जीवों के घर होते हैं। यहां तक कि जंगल ही मनुष्य को प्राणवायु ऑक्सीजन तक प्रदान करते हैं, इनके काट दिए जाने से प्राकृतिक संतुलन भी नष्ट हो जाएगा। 

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यचिका पर प्राथमिक सुनवाई के बाद जस्टिस मोहम्मद रफ़ीक व जस्टिस वीके शुक्ला ने केंद्र सरकार, राज्य सरकार व संबंधित कंपनी को नोटिस जारी किया। मामले की अगली सुनवाई 21 जून को होगी। छत्तरपुर के बक्सवाहा जंगलों में हीरे के खनन को लेकर सोशल मीडिया पर विरोध बढ़ता जा रहा है। देशभर के युवाओं ने सोशल मीडिया कैंपेन चलाकर हीरे खनन की परियोजना को फौरन रोके जाने की मांग की है।