‘अपनों’ का उधार चुकाने दिए 90 हजार करोड़

निजी कंपनियों की फिक्र से नाराज हुए सरकारी कर्मचारी

Publish: May 16, 2020, 02:32 AM IST

Photo courtesy : news18
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कोरोना संकट के समय केंद्र सरकार राहत भी अपनों को ही बांट रही है। सुनने में अच्‍छा लगता है कि केंद्र ने बिजली के क्षेत्र में 90 हजार करोड़ का पैकेज दिया है मगर असल में यह राहत सरकारी बिजली कंपनियों को नहीं, निजी बिजली कंपनियों का 94 हजार करोड़ चुकाने के लिए दी गई है। यह पैकेज जारी करते हुए केंद्र सरकार ने साफ कर दिया है कि इसका उपयोग निजी बिजली कंपनियों का उधार चुकाने के लिए होगा, सरकारी कंपनियों का बकाए पर नहीं। केंद्र सरकार ने निजी कंपनियों की चिंता तो की मगर वह खुद राज्‍यों की सरकारी बिजली कंपनियों का बकाया नहीं चुका रही है। इससे राज्‍यों की बिजली कंपनियां भारी संकट में घिर गई हैं। अब बिजली कर्मचारियों के संगठन खुल कर इस भाई भतीजावाद का विरोध में आ गए हैं।

कांग्रेस के वरिष्‍ठ नेता दिग्विजय सिंह ने इस मुद्दे पर ट्वीट कर कहा था कि मज़दूरों को राहत देने के पहले  प्रधानमंत्री मोदी ने बिजली उत्पादन कंपनियों को 90 हजार करोड़ की राहत दे दी है। अब पता लगाइए अधिकांश बिजली उत्पादन कंपनियां किसकी है। कहावत है ना- “अंधा बॉंटे रेवड़ी चीन चीन के देय”।

अब ऑल इण्डिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन ने केंद्र सरकार द्वारा घोषित पावर सेक्टर पैकेज को निजी बिजली उत्पादन घरानों के लिए राहत पैकेज बताया है। संगठन ने मांग की है कि राज्यों की बिजली वितरण और उत्पादन कंपनियों को इस संकट की घड़ी में केंद्र सरकार कर्ज के बजाए अनुदान दे तभी बिजली कम्पनियाँ इस संकट में कार्य कर सकेंगी|

ऑल इण्डिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन के चेयरमैन शैलेन्द्र दुबे ने आज कहा कि केंद्र सरकार ने बिजली वितरण कंपनियों को जो 90000 करोड़ रु का पॅकेज देने का एलान किया है उसमें साफ़ लिखा है कि यह धनराशि निजी बिजली उत्पादन घरों, निजी पारेषण कंपनियों  और केंद्रीय क्षेत्र के बिजली उत्पादन घरों का बकाया अदा करने के लिए दी जा रही है और राज्यों की बिजली वितरण कंपनियां इसका कोई और उपयोग नहीं कर सकेंगी। इससे स्पष्ट है कि यह रिलीफ पैकेज निजी घरानों के लिए है न कि राज्य की सरकारी बिजली कंपनियों के लिए। इतना ही नहीं तो राज्य की वितरण कम्पनियाँ इस धनराशि का उपयोग राज्य के सरकारी बिजली उत्पादन घरों से खरीदी गई बिजली का भुगतान करने हेतु भी नहीं कर सकती हैं जिनसे राज्यों को सबसे सस्ती बिजली मिलती है।

उन्होंने कहा कि निजी बिजली उत्पादन घरों और केंद्रीय क्षेत्र के बिजली उत्पादन घरों का कुल बकाया 94000 करोड़ रुपए है और केंद्र सरकार ने 90000 करोड़ रुपए दिए है तो साफ हो जाता है कि राज्यों की बिजली कंपनियों के लिए इस पैकेज में कुछ नहीं है। केंद्र सरकार यह धनराशि राज्य सरकारों द्वारा  गारंटी देने पर कर्ज के रूप में दे रही है और यह समझना मुश्किल नहीं है कि लॉकडाउन  के चलते भारी नुक्सान उठा रही राज्यों की बिजली वितरण कम्पनियाँ इस कर्ज को कैसे अदा करेंगी।

उन्होंने यह सवाल भी उठाया कि केंद्र व् राज्य के सरकारी विभागों पर बिजली वितरण कंपनियों का 70000 करोड़ रुपए से अधिक का राजस्व बकाया है। अकेले उत्तर प्रदेश में ही सरकारी विभागों का बकाया 13000 करोड़ रुपए से अधिक है। यदि सरकार अपना बकाया ही दे दे तो राज्यों की बिजली वितरण कंपनियों को केंद्र सरकार से कोई कर्ज लेने की जरूरत नहीं रहेगी। उन्होंने कहा कि इस संकट की घड़ी में निजी घरानों की चिंता के साथ सरकारों को अपने बिजली राजस्व के बकाये का भुगतान भी सुनिश्चित करना चाहिए अन्यथा 90 हजार  करोड़ रुपए के इस कर्ज के बोझ तले दबी वितरण कम्पनियां कैसे और कब तक अपने कर्मचारियों के वेतन का भुगतान कर सकेंगी?

उन्होंने कहा कि घोषित पैकेज में कहा गया है कि इस संकट के दौरान केंद्रीय उपक्रमों की बिजली उत्पादन कम्पनियाँ राज्यों की वितरण कंपनियों को न खरीदी गई बिजली के फिक्स चार्ज को नहीं लेंगी जबकि इस मामले में निजी बिजली उत्पादन कंपनियों को न खरीदी गई बिजली के फिक्स चार्ज लेने का अधिकार दिया गया है।  इस प्रकार एक ही मामले में दो मापदण्ड से स्पष्ट हो जाता है कि यह घोषणा निजी घरानों के लिए मदद का तोहफा है जबकि राज्यों की सरकारी बिजली कंपनियों पर कर्ज और बिना बिजली खरीदे निजी घरानों को फिक्स चार्ज देने का भार  उठाना होगा।

ऑल इण्डिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन ने केंद्र सरकार से अपील की है कि कोविड -19 महामारी के संकट में राज्यों की बिजली कंपनियों पर डाले गए कर्ज को अनुदान में बदले जिससे आने वाली खरीफ की फसल और देश की 70 फीसदी ग्रामीण जनता के हित में बिजली वितरण कम्पनियाँ सुचारु रूप से कार्य कर सकें।