लखनऊ। उत्तर प्रदेश की बीजेपी सरकार ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में माना है कि उसके पास मुस्लिम युवक नदीम के खिलाफ ऐसे कोई सुबूत नहीं हैं, जिनसे यह साबित हो कि वह एक हिंदू महिला को धर्म परिवर्तन के लिए उकसा रहा था। इसी के साथ ही उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ को अपने विवादास्पद लव जिहाद विरोधी कानून के तहत गिरफ्तार पहले ही आरोपी के खिलाफ सुबूत पेश करने में मुंह की खानी पड़ी है। 

दरअसल, बीते 27 नवंबर को उत्तरप्रदेश में धर्मांतरण कानून लागू होने के दो दिन बाद ही मुजफ्फरनगर के अक्षय नाम के युवक ने 32 वर्षीय नदीम और उसके भाई सलमान के खिलाफ एक शिकायत दर्ज कराई थी। अक्षय का आरोप था कि नदीम जो एक मजदूर है वह उसके घर आया करता था और उसकी पत्नी को प्रेम के जाल में फंसाकर धर्म परिवर्तन कराने की कोशिश करता था। अक्षय ने एफआईआर में यह भी लिखवाया था कि नदीम ने उसकी पत्नी को बहकाने के लिए एक स्मार्टफोन गिफ्ट किया है और शादी का वादा भी किया।

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पिछले महीने नदीम ने इलाहाबाद कोर्ट में याचिका दायर कर इस एफआईआर को रद्द करने की मांग की थी। इस दौरान अदालत ने उत्तर प्रदेश सरकार से स्पष्ट कहा था कि सुनवाई की अगली तारीख यानी 7 जनवरी तक नदीम की गिरफ्तारी नहीं की जा सकती है। अदालत ने आज इस छूट को बढ़ाते हुए 15 जनवरी तक कर दिया और अगली सुनवाई एक हफ्ते के लिए टाल दिया।

मामले पर नदीम के वकील सैय्यद फरमान अहमद नकवी ने एक प्रमुख अंग्रेजी चैनल से बातचीत के दौरान कहा कि, 'आज जब ये मामला माननीय उच्च न्यायालय में उठाया गया, तो राज्य सरकार ने एक हलफनामा दिया जिसमें कहा गया कि धर्मांतरण विरोधी कानून के तहत एफआईआर में उनका नाम गलत पाया गया और जांच में कुछ भी नहीं पाया गया कि उसने महिला से शादी के लिए जबरन धर्म बदलने की कोशिश की है।

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यूपी सरकार की ओर से अभियोजन पक्ष के संयुक्त निदेशक अवधेश पांडे ने बुधवार को छह पन्नों का संक्षिप्त हलफनामा दायर कर कहा कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि आरोपी नदीम का पारुल के साथ अवैध संबंध है और न ही ऐसा कोई सबूत सामने आया है कि उसने पारुल का धर्म बदलवाने की कोशिश की थी। हालांकि हलफनामे में यह कहा गया है कि आरोपी ने अक्षय को धमकी दी थी, इसलिए धमकी देने और सार्वजनिक शांति भंग करने के लिए उकसाने के आरोप में उसके खिलाफ चार्जशीट कोर्ट में पेश की गई है।

सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि नदीम पर जिस महिला को बरगलाने का आरोप लगा है, वो बालिग और अपना भला-बुरा अच्छी तरह समझ सकती है। साथ ही याचिकाकर्ता को भी अपने प्राइवेसी का मौलिक अधिकार है। गौरतलब है कि लव जिहाद शब्द को अबतक भारतीय कानून में परिभाषित नहीं किया गया है।

पिछले साल मोदी सरकार संसद में लिखकर दे चुकी है कि अब तक देश में लव जिहाद जैसा कोई अपराध सामने नहीं आया है। लेकिन देश के तमाम बीजेपी शासित राज्यों की सरकारों ने इस कथित लव जिहाद को रोकने के नाम पर कठोर कानून बनाने की होड़ लगा रखी है। यह कानून इस मान्यता के तहत बनाए जा रहे हैं कि मुस्लिम पुरुष हिंदू महिलाओं को प्रेम के जाल में फंसाकर उनका धर्म परिवर्तन करवाते हैं। इसके खिलाफ अध्यादेश लाकर कानून बनाने वाली यूपी सरकार अब तक अपने इस आरोप को कानूनी तौर पर साबित करने में नाकाम रही है। इससे पहले कानपुर में भी ऐसे ही आरोपों में कई मामले दर्ज किए गए थे। लेकिन SIT बनाकर की गई जांच में लव जिहाद के आरोप अब तक साबित नहीं हो पाए हैं।