Madras High Court: धार्मिक रीति-रिवाज़ों के पालन का अधिकार जीवन के अधिकार से बड़ा नहीं

महामारी के बीच धार्मिक उत्सवों के आयोजनों को लेकर मद्रास हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी, सरकार लोगों के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए कुछ प्रतिबंध लगाती है तो उसका पालन करें

Updated: Jan 08, 2021, 12:12 AM IST

Photo Courtesy : new Indian Express
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चेन्नई। मद्रास हाईकोर्ट ने कहा है कि धर्म के पालन का अधिकार किसी भी हाल में जीवन के अधिकार से बड़ा नहीं हो सकता है। हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश संजीब बनर्जी ने कहा कि धार्मिक संस्कारों का स्थान सार्वजनिक हित और जीवन के अधिकार के बाद ही आता है। अगर सरकार महामारी की स्थिति में लोगों की सेहत की रक्षा के लिए कुछ पाबंदियां लगाती हैं, तो हम उसमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहेंगे।' मुख्य न्यायाधीश ने ये बातें एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान कही है।

दरअसल हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस संजीब बनर्जी और जस्टिस सेंथिलकुमार राममूर्ति तमिलनाडु के त्रिची के श्रीरंगम मंदिर में आयोजित होने वाले पारंपरिक उत्सव से संबंधित एक जनहित याचिका पर बुधवार को सुनवाई कर रहे थे। याचिकाकर्ता रंगराजन नरसिम्हन ने मांग की थी कि अदालत राज्य सरकार को यह निर्देश दे कि वह ऐसी समिति का गठन करें, जिसमें धार्मिक प्रमुखों को इस तरह के कार्य करने के तरीके तय करने का अधिकार मिले।

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मामले पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार यदि जनता के जीवन व स्वास्थ्य की रक्षा के इरादे से कुछ प्रतिबंध लगाती है तो सभी लोगों को इसका पालन करना चाहिए। साथ ही कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार से भी कहा कि वह राज्य के मंदिर में कोविड-19 के प्रोटोकॉल का पालन करते हुए न्यूनतम जनभागीदारी के साथ लोगों के स्वास्थ्य से समझौता किए बगैर अनुष्ठानों के आयोजन की संभावनाएं तलाशे। 

कोर्ट के इस वक्तव्य पर याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि कम से कम लोगों के साथ धार्मिक कार्य करने के तरीके शास्त्रों में भी निर्धारित किए गए हैं। लेकिन इस बारे में सही सलाह केवल शास्त्रों की अच्छी समझ रखने वाले धर्म गुरु ही दे सकते हैं। विभागों के कमिश्नर और ऑफिसर यह तय नहीं कर सकते धार्मिक रीति रिवाज़ों का पालन किन तरीकों से किया जाएगा। 

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कोर्ट ने इस दौरान अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे संबंधित धर्म गुरुओं और विद्वानों से इस बारे में सलाह लेकर कोविड-19 के प्रोटोकॉल के तहत धार्मिक आयोजन के बारे में दिशानिर्देश तय करें। अदालत ने इस बारे में 6 सप्ताह के भीतर रिपोर्ट देने का आदेश दिया है। साथ ही अदालत ने यह भी साफ किया है कि धार्मिक आयोजनों के दौरान लोगों के स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए विज्ञान की मदद ली जानी चाहिए।