पटना। केंद्रीय मंत्री व लोक जनशक्ति पार्टी के संस्थापक रामविलास पासवान का गुरुवार को दिल्ली में निधन हो गया। वह काफी लंबे समय से बीमार चल रहे थे और हाल ही में उनकी हार्ट सर्जरी हुई थी। राजनीति के मौसम वैज्ञानिक कहे जाने वाले रामविलास का राजनीतिक करियर आमतौर पर चढ़ाव वाला ही माना गया, उनके जीवन में उतार कम देखने को मिले। लेकिन जैसे कि हर इंसान अपने साथ कुछ ख्वाहिशें छोड़ जाता है, राम विलास पासवान की भी ख्वाहिश जरूर रही होगी कि एक दिन बिहार का सीएम बनें। आइए जानते हैं कि खगड़िया में जन्मे रामविलास कैसे सीएम बनते-बनते रह गए और फिर कैसे उन्होंने दिल्ली में अपनी राजनैतिक पैठ बनाई। 

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पासवान का राजनैतिक सफर शुरू हुआ 1969 में जब संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी ने अलौली विधानसभा से उन्हें अपना उम्मीदवार घोषित किया। पासवान पढ़ाई-लिखाई में काफी तेज-तर्रार थे और वे बिहार की प्रशासनिक सेवा परीक्षा पास कर डीएसपी चुने गए थे। 

इस घटना ने राजनीति में आने के लिए किया प्रेरित

पासवान ने महज 22 साल की उम्र में डीएसपी की परीक्षा पास कर ली थी। इस दौरान जब वह अपने गांव खगड़िया जिले के शहरबन्नो पहुंचे तो वहां उन्होंने देखा कि कुछ दबंगों द्वारा एक दलित व्यक्ति की बेरहमी से पिटाई की जा रही है। दलित व्यक्ति पर 150 रुपए नहीं लौटाने का आरोप था। यह घटना रामविलास के दिल में शोला जलाने के लिए काफी थी। पासवान ने तत्काल पुलिस में नौकरी लगने का रौब दिखाकर न सिर्फ उसे बचाया बल्कि दबंगों के कागजात भी फाड़ दिए।

दोस्त ने पूछा Government बनोगे या Servant

इस घटना के बाद लोगों के बीच पासवान की लोकप्रियता काफी बढ़ गई। वह दलितों के बीच इस कदर मशहूर हो गए की सभी लोग अपनी बड़ी-छोटी परेशानियों के निवारण हेतु पासवान के पास आने लगे। इस दौरान कई लोगों ने उनसे राजनीति में आने का अनुरोध किया और आखिरकार उन्होंने नौकरी छोड़ समाजसेवा के मार्ग पर बढ़ने का फैसला ले लिया। इस बारे में पासवान ने भी कई बार जिक्र किया है। उन्होंने ट्वीट कर कहा था कि, '1969 मे मेरा DSP में और MLA दोनो में एक साथ चयन हुआ। तब मेरे एक मित्र ने पूछा कि बताओ Govt बनना है या Servant? बस तभी मैंने राजनीति ज्वाइन कर ली।'

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साल 1977 में मिली राष्ट्रीय स्तर पर पहचान

यूं तो पासवान अपने क्षेत्र में विधायक बनने के बाद ही बेहद पॉपुलर हो गए थे, लेकिन उन्हें असल पहचान 8 साल बाद मिली। दरअसल, वो वक्त बिहार की राजनीति के लिए बेहद अहम था। पासवान वैसे तो लालू और नीतीश के साथ जेपी आंदोलन से जुड़े रहे थे और इमरजेंसी के दौरान 2 साल के लिए जेल भी गए थे, लेकिन उस वक्त प्रदेश में नेतृत्व संभालने का मौका उन्हें नहीं मिला। उनकी गिनती तब बिहार के बड़े नेताओं में भी नहीं होती थी। रामविलास पासवान का नाम देशभर में तब मशहूर हुआ जब  उन्होंने साल 1977 के चुनाव में वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया।

गिनीज बुक में दर्ज हुआ नाम

विधायक बनने के आठ साल बाद पासवान ने जनता पार्टी की टिकट से हाजीपुर लोकसभा से चुनाव लड़ा था। इस चुनाव में वह 4 लाख 25 हजार मतों से जीत दर्ज करने में सफल रहे। यह पहली बार था जब इतने मतों से विश्वभर में किसी भी नेता ने चुनाव जीता हो। नतीजतन, गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में पासवान का नाम स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज किया गया। इस दौरान देशभर के लोगों में बस यह जानने की दिलचस्पी थी कि आखिर वह शख्स कौन है जिसने यह विश्व रिकॉर्ड अपने नाम किया है। बाद में साल 1989 लोकसभा चुनावों के दौरान उन्होंने खुद ही अपने बनाए इस रिकॉर्ड को तोड़ दिया। इस बार वह 5 लाख 5 हजार मतों से जितने में कामयाब हुए।

नीतीश ने खुद दिया था सीएम बनने का प्रस्ताव

साल 2005 के विधानसभा चुनाव का वह दौर था जब सीएम नीतीश कुमार ने खुद पासवान को मुख्यमंत्री बनने का ऑफर दिया था। दरअसल, लालू के साम्राज्य को खत्म करने के लिए नीतीश को दलित और अति पिछड़ा वोट में सेंधमारी करना था। उस वक्त रामविलास यूपीए सरकार में केंद्रीय मंत्री थे। नीतीश में तब रामविलास के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की पेशकश की और सीएम बनने का ऑफर भी दिया। लेकिन पासवान ने यह ऑफर बस इसलिए ठुकरा दिया था क्योंकि वह बीजेपी से जुड़ी किसी पार्टी के साथ नहीं जाना चाहते थे। जानकारों का मानना है कि यदि रामविलास इस प्रस्ताव पर सहमत हो गए होते तो आज बिहार का परिदृश्य कुछ और होता।

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राजनीति के मौसम वैज्ञानिक के नाम से हुए मशहूर

रामविलास पासवान भारत के इकलौते ऐसे नेता हैं जिन्हें पिछले 30 वर्षों में पीवी नरसिम्हा राव की सरकार को छोड़कर बाकी सभी प्रधानमंत्रियों की मंत्रिपरिषद में शामिल होने का सौभाग्य मिला। वह इकलौते नेता रहे, जिन्होंने 6 प्रधानमंत्रियों के साथ कैबिनेट में काम किया। शायद यही वजह रही कि उन्हें राजनीति के मौसम वैज्ञानिक के तौर पर जाना जाता है। कहा जाता है कि वह पहले ही राजनीति के मौसम को भांप लेते थे और उन्हें यह पता होता था कि केंद्र में किसकी सरकार बनने वाली है। फिर उस हिसाब से वह गठबंधन करते थे। हालांकि, कम ही लोग जानते हैं कि 'मौसम वैज्ञानिक' कहकर सबसे पहले उनके पुराने मित्र व राजनीतिक विरोधी लालू यादव ने ही उन्हें पुकारा था।

सिर्फ एक बार हवा का रूख भांपने में हुई गलती

अपने 50 वर्षों के राजनीतिक करियर में 9 बार सांसद रहे रामविलास पासवान को केवल 1984 व 2009 में हार का मुंह देखना पड़ा था। कहा जाता है कि पासवान ने हवा के रुख को भांपने में सिर्फ एक बार गलती की है। यह बात है साल 2009 के लोकसभा चुनाव का जब एलजेपी ने कांग्रेस से किनारा कर लिया था और वह आरजेडी के साथ गठबंधन कर चुनाव में उतरे थे। इस चुनाव में वह उसी हाजीपुर सीट से हार गए जहां से उन्होंने कभी विश्व रिकॉर्ड बनाया था। हालांकि इसके अगले ही साल उन्होंने कांग्रेस और आरजेडी के समर्थन से राज्यसभा में जगह बना ली थी।

रामविलास पासवान से जुड़े कई अन्य दिलचस्प किस्से भी हैं। मसलन एक बार जब उन्होंने ट्वीट कर अपने 72वें जन्मदिन के बारे में जानकारी दी तब उनके पुराने मित्र रहे शिवानंद तिवारी ने तंज कसते हुए पूछा था कि आप क्या खाकर अपनी उम्र रोके हुए हैं। तिवारी ने कहा था कि, 'रामविलास भाई हमलोग 75 पार कर गए पर आप 72 पर ही कैसे रुके हुए हैं। क्या खाते हैं आप? 1969 में ही आप विधायक बन गए थे और न्यूनतम उम्र के हिसाब से देखा जाए तब भी आप 75 के हुए। सार्वजनिक जीवन में होते हुए भी आप उम्र घटाकर बताते हैं।

रामविलास अपने राजनीतिक जीवन में बहुत कम ही विवादों में रहे हैं। हालांकि उनपर सूट-बूट वाले दलित नेता व परिवारवादी होने के आरोप लगते रहे हैं। खास बात यह है कि वह भी इन बातों पर आक्रामक होकर सफाई देना जरूरी नहीं समझते थे और मुस्कुराहट के साथ इन्हें टाल दिया करते थे।