जी भाईसाहब जी: ज्योतिरादित्य सिंधिया कब तक मार मार कर सम्मान पाएंगे
MP Politics: केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का बार-बार बीजेपी में अपमान हो रहा है। अपमान करने वाले बीजेपी सांसद केपी यादव को संगठन फटकार लगा कर कहता है कि सिंधिया का सम्मान करो मगर सांसद केपी यादव तो सिंधिया को नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं। जानिए कि पूर्व मंत्री रामकृष्ण कुसमरिया के पास बीेजेपी के किस मर्ज की दवा है?

एक कहावत है मार-मार कर हकीम बनाना। यानी जोर जबर्दस्ती से किसी से कोई काम करवाना। एमपी में इनदिनों इसी कहावत का हवाला देकर पूछा जा रहा है कि केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया कब तक दबाव डलवा कर बीजेपी सांसद केपी यादव से सम्मान पाते रहेंगे?
ताजा मामले को जानने के पहले सिंधिया और केपी यादव के संबंधों के अतीत को जान लेना आवश्यक है। कभी केपी यादव गुना क्षेत्र में सिंधिया के प्रतिनिधि थे। बात तब की है जब सिंधिया कांग्रेस में हुआ करते थे। अपने ही नेता द्वारा नजरअंदाज कर दिए जाने से नाराज केपी यादव ने सिंधिया के खिलाफ हो गए। 2019 में केपी यादव ने सिंधिया को लोकसभा का चुनाव हरा दिया और बीजेपी के टिकट से संसद में पहुंच गए।
सिंधिया अब बीजेपी में आ गए हैं मगर उनके मन में हार की टीस अब तक बरकरार है। अपने ही क्षेत्र में अपने समर्थक रहे नेता से बड़े मार्जिन से हुई हार सिंधिया भूल नहीं पाए हैं। उनके बीजेपी में आने के बाद से केपी यादव को गुना में ‘हलका’ करने की कोशिशें शुरू हो गई थीं। यही कारण है कि दोनों एक पार्टी में हो कर एक दूसरे को नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं। कुछ सार्वजनिक कार्यक्रमों में दोनों साथ दिखाई भी दिए तो भी दोनों के बीच तनावपूर्ण दूरी साफ दिखाई दी ।
अब सिंधिया का अपमान करने के मामले में सांसद केपी यादव को एक बार फिर बीजेपी संगठन ने तलब किया। इस बार उन्होंने बिना नाम लिए सिंधिया पर कटाक्ष किया था। गुना में केपी यादव ने कहा कि रानी लक्ष्मीबाई हमारे पास के झांसी की ही थीं। और उनके शौर्य के बारे में भी हम सभी जानते हैं। हम ये भी जानते हैं कि अगर उस समय कुछ लोगों ने उनके साथ गद्दारी नहीं कि होती, तो शायद देश स्वतंत्रता की 175वी वर्षगांठ मना रहा होता। यानी हम 100 साल पहले ही आजाद हो गए होते।
इस बयान के बाद बीजेपी प्रदेश कार्यालय में केपी यादव का तलब किया गया। कार्यालय से निकलने के बाद केपी यादव ने कहा कि उन्होंने सिंधिया का नाम नहीं लिया था। वे सिंधिया का सम्मान करते हैं।
ये सम्मान कैसा यह केपी यादव के एक अन्य बयान से समझा जा सकता है। गुना में ही उन्होंने कहा था कि पहले के सांसद तो अपनी गाड़ी का कांच तक नीचे नहीं उतारते थे। यहां कुछ लोगों को मैं रास नहीं आ रहा हूं। पिछड़े वर्ग का सांसद बना तो पेट में दर्द होना तय है। मेरे खिलाफ साजिश रची जाती है, लेकिन हम कृष्ण के वंशज हैं। इतिहास भी हम ही बनाएंगे। कुछ लोग कहते हैं- उसूलों पर आंच आए तो टकराना जरूरी है, जिंदा हो तो जिंदा नजर आना जरूरी है। हमें कोई भी कम आंकने की कोशिश न करे। हम जिंदा लोग हैं। हमारा भी स्वाभिमान है, उसूल हैं।
सभी जानते हैं कि उसूलों वाली बात सिंधिया ने कही है और केपी यादव के मन में पीड़ा है कि सिंधिया के कारण उन्हें उस पार्टी में नजरअंदाज किया जा रहा है जिस पार्टी ने उन्हें 2019 की जीत के बाद सिर माथे पर बैठाया था। बहरहाल, सिंधिया खेमा यह सोच कर खुश है कि केपी यादव को बीजेपी में तवज्जो नहीं मिल रही है मगर सवाल तो यह है कि संगठन भी कब तक दबाव डालकर केपी यादव से सिंधिया का सम्मान करवाएगा? यह भी संभव है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में गुना से सिंधिया को बीजेपी का टिकट मिले तो केपी यादव पाला बदल कर एकबार फिर सिंधिया के खिलाफ ताल ठोक दें।
पूर्व मंत्री रामकृष्ण कुसमरिया के पास है बीजेपी की गोली
मध्यप्रदेश में बीजेपी सरकार के दौरान हुए विकास को दिखाने के लिए विकास यात्रा निकाली गई। इस विकास यात्रा में खट्टे-मीठे कई तरह के अनुभव हुए हैं। ऐसा ही एक मामला बुंदेलखंड क्षेत्र का है। बुंदेलखंड क्षेत्र में बीजेपी में जारी वर्चस्व की लड़ाई में पूर्व मंत्री रामकृष्ण कुसमरिया की इंट्री हुई है।
2018 में टिकट कटने के बाद वे दो जगह से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ चुके हैं। उनके मैदान में होने कारण दोनों जगह से बीजेपी के प्रत्याशी चुनाव हार गए थे। इसके बाद कुसमरिया बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में गए और अब फिर बीजेपी में आ चुके हैं। स्वाभाविक है कि वे 2023 के लिए टिकट के दावेदार हैं। वे चाहेंगे कि उनके प्रभाव क्षेत्र में उनके समर्थकों को टिकट मिले।
यही कारण है कि विकास यात्रा में वे जब बोले तो खुल कर अपने इरादे जता दिए। उन्होंने बताया कि 2018 के चुनाव में मैंने कहा था कि कहीं से भी टिकिट दे दो, सरकार बनवा दूंगा। उस समय के प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष राकेश सिंह ने मुझसे कहा था कि तुम्हारी इतनी औकात है क्या? मैंने कह दिया था कि अब मैं अपनी औकात फील्ड में दिखाऊंगा, यहां नहीं। मैं इतना सीनियर और तुम कल के अध्यक्ष बने और औकात की बात कर रहे हो। ऐसे में तो किसी को भी गुस्सा आ जाएगा, इसलिए मुझे भी आ गया और भाजपा की सरकार चली गई।
कुसमरिया ने कहा कि मैंने जो किया उसके बाद से बहुत कुछ ठीक हो गया। जब थोड़ा-सा झटका लगता है तो सब ठीक हो जाता है। कहीं जब बीमारी लग जाती है, तो जैसे मलेरिया की गोली दी जाती है वैसे ही मैंने भी गोली दे दी। उसके बाद सबको समझ में आ गया। जब समझ में आ गया, तो फिर से सब कुछ ठीक चलने लगा। अब सब ठीक है। मेरे कारण 12-14 विधायक गए थे और अब 25 लौटकर आ गए। अब क्या चाहते हो मय ब्याज के तो दिला दिए हैं।
मतलब साफ है, कि 2023 में भी यदि अनसुनी की गई तो कुसमरिया के पास ‘गोली’ है। उनका दावा है यह गोली बीजेपी से सत्ता छिन चुकी है। आगे भी छिन सकती है। बीजेपी का संकट एक अकेले कुसमरिया नहीं हैं। पार्टी में ऐसे असंतुष्ट नेताओं की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। ऐसे नेता जिनके मन का खेल नहीं हुआ तो वे खेल बिगाड़ने में देरी नहीं करेंगे।
गोपाल भार्गव: जलवा बढ़ता गया ज्यों-ज्यों साजिशें हुईं
लोक निर्माण मंत्री गोपाल भार्गव बीजेपी के उन नेताओं में शामिल हैं जिनका जलवा बीते आठ चुनावों से कायम हैं। उनका जलाल कम करने के कई प्रयत्न हुए हैं। कभी उम्र का हवाला दे कर कभी बुंदेलखंड में समीकरणों को बिगाड़ कर। वे राजनीति में नेता पुत्रों के प्रवेश के हिमायती रहे हैं और उनकी राजनीतिक विरासत को उनके पुत्र अभिषेक भार्गव संभाल रहे हैं। मगर ‘दोस्त’ लोग चाहते हैं कि किसी तरह भार्गव का टिकट कट जाए और उनके परिवार के सदस्य के हिस्से में टिकट न जाए।
गोपाल भार्गव भी मंझे हुए राजनेता हैं। उनकी जमीनी पकड़ को कोई कम नहीं कर पाया है। यही कारण है कि पिछले कुछ सालों अलग-थलग करने की सारी कोशिशों को उन्होंने बखूबी विफल किया है। गुजरे सप्ताह वे राजनीतिक रूप से ताकतवर दिखाई दिए जब क्षेत्रीय संगठन महामंत्री अजय जामवाल उनके निवास पर पहुंचे।
दूसरी तरफ, मंत्री गोपाल भार्गव, उनके बेटे अभिषेक भार्गव के बाद अब बहू शिल्पी भार्गव भी क्षेत्र में सक्रिय हो गई हैं। अभिषेक और शिल्पी भार्गव जरूरतमंद लोगों तक पहुंच रहे हैं। जो लोग उम्मीद लगाए थे कि भार्गव की शक्ति का अब तो हृास होगा वे मायूस हैं क्योंकि पूरे परिवार ने जनता के बीच अपनी पैठ और गहरी कर ली है।
सदन में कितना सक्रिय होगा कांग्रेस विधायक दल
मध्यप्रदेश विधानसभा का बजट सत्र शुरू हो चुका है। यह इस सरकार का अंतिम बजट प्रस्तुत हुआ। अब चुनाव के बाद दिसंबर में नई सरकार बनेगी और अगला बजट वही पेश करेगी। बीजेपी सरकार ने गांव-शहर में विकास यात्राएं निकाली है तो अब एक माह चलने वाले इस बजट सत्र में कांग्रेस के लिए मौका होगा कि वह सदन में बीजेपी सरकार की पोल खोले।
यही कारण है कि प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ के निवास पर हुई विधायक दल की बैठक में तय किया गया है कि सदन में बीजेपी से 18 साल का हिसाब मांगा जाएगा। पिछले यानी शीतकालीन विधानसभा सत्र में नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह और प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ सदन में नहीं थे तब भी कांग्रेस विधायकों ने अविश्वास प्रस्ताव के दौरान सरकार को खूब घेरा था।
इस बार पहले दिन विधायक जीतू पटवारी हल लेकर विधानसभा तक पहुंचे। कांग्रेस सदन के अंदर और बाहर भी आक्रामक हुई है। इस एक माह के सत्र में कांग्रेस कितनी एकजूट रहती है और कितनी दमदारी से मुद्दे उठाती है यह देखना दिलचस्प होगा। आखिर कांग्रेस की रणनीति को देखते हुए ही तो मंगलवार रात हुई बीजेपी विधायक दल की बैठक में कहा गया है कि बीजेपी विधायक पूरी सकारात्मक आक्रामकता के साथ मैदान में पहुंचें।