न्याय, समानता और संविधान की रक्षा के संकल्प अब ज्यादा जरूरी और प्रासंगिक हैं
आरक्षण, बाबा साहब अंबेडकर द्वारा वंचितों को समान अवसर देने की एक संवैधानिक व्यवस्था है। यह सामाजिक न्याय का मूल आधार है, लेकिन भाजपा सरकार अब इस व्यवस्था को भी कमजोर करने पर आमादा है: जीतू पटवारी

14 अप्रैल को जब देश बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर की जयंती मनाता है, तो यह केवल एक महापुरुष के जन्म की स्मृति नहीं होती, यह हमारे संविधान, हमारे लोकतंत्र और हमारे अधिकारों की रक्षा का संकल्प भी होता है। आज जब भारत एक संकट के दौर से गुजर रहा है, तो अंबेडकर की विचारधारा पहले से कहीं ज्यादा प्रासंगिक हो गई है। उनका जीवन, उनका संघर्ष और उनके विचार आज के भारत के लिए एक मार्गदर्शक प्रकाश-स्तंभ हैं।
संविधान की आत्मा पर हमला
बाबा साहब अंबेडकर ने भारत को एक ऐसा संविधान दिया जो समता, स्वतंत्रता, न्याय और बंधुत्व जैसे मूल्यों पर आधारित है। उन्होंने देश को एक ऐसा ढांचा प्रदान किया, जिसमें हर नागरिक को बराबरी का अधिकार मिले, चाहे उसका धर्म, जाति, लिंग या वर्ग कोई भी हो। परन्तु आज वही संविधान खतरे में है।
भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में जिस तरह से संवैधानिक संस्थाओं को कमजोर किया है, वह बेहद चिंताजनक है। चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठ रहे हैं, केंद्रीय जांच एजेंसियों का दुरुपयोग विपक्ष को दबाने के लिए हो रहा है और न्यायपालिका पर भी राजनीतिक दबाव की आशंकाएं जताई जा रही हैं। यह उस लोकतंत्र की आत्मा को चोट पहुंचाता है, जिसे अंबेडकर ने अपने खून-पसीने से सींचा था।
निष्पक्ष चुनाव प्रणाली पर सवाल
बाबा साहब अंबेडकर ने भारत में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव प्रणाली की नींव रखी थी, ताकि सत्ता हमेशा जनता की इच्छाओं के अनुसार चले, लेकिन आज हम देख रहे हैं कि किस तरह सरकारी एजेंसियां चुनावों में हस्तक्षेप कर रही हैं! मतदाता सूची में गड़बड़ियां की जा रही हैं और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को प्रभावित करने के लिए प्रशासनिक तंत्र का दुरुपयोग हो रहा है!
हाल ही में कई राज्यों में चुनावों के दौरान यह देखा गया कि सत्तारूढ़ दल ने सत्ता की ताकत का दुरुपयोग कर चुनावी प्रक्रिया को प्रभावित करने का प्रयास किया। यह भारत के लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा है।
आरक्षण प्रणाली पर हमला
आरक्षण, बाबा साहब अंबेडकर द्वारा वंचितों को समान अवसर देने की एक संवैधानिक व्यवस्था है। यह सामाजिक न्याय का मूल आधार है, लेकिन भाजपा सरकार अब इस व्यवस्था को भी कमजोर करने पर आमादा है। कभी आर्थिक आरक्षण के नाम पर सामाजिक आरक्षण की धार को कुंद किया जाता है, तो कभी निजी क्षेत्र में आरक्षण की अनदेखी की जाती है।
संघ परिवार से जुड़ी संस्थाएं लगातार आरक्षण को ‘नुकसानदायक’ बताने की मुहिम चला रही हैं। हाल ही में विभिन्न राज्यों में हुए सरकारी भर्तियों में आरक्षित वर्गों के साथ अन्याय के कई मामले सामने आए हैं। यह सब यह दर्शाता है कि भाजपा की नीयत संविधान में निहित सामाजिक न्याय की अवधारणा को कमजोर करने की है।
धर्मनिरपेक्षता हाशिये पर क्यों?
अंबेडकर का भारत धर्मनिरपेक्ष था, है और रहेगा, लेकिन भाजपा जिस “हिन्दू राष्ट्र” की अवधारणा को बढ़ावा दे रही है, वह संविधान के खिलाफ है। संविधान में सभी धर्मों को समान सम्मान देने की बात कही गई है। पर आज नफरत की राजनीति को सत्ता का औजार बना दिया गया है। मॉबलिंचिंग की घटनाएं, धर्म के नाम पर भेदभाव और धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर हमले, यह सब उस भारत के खिलाफ है जिसका सपना अंबेडकर ने देखा था।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश
बाबा साहब मानते थे कि लोकतंत्र का मूल आधार है, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता। लेकिन, आज इस स्वतंत्रता को कुचलने की कोशिश की जा रही है। पत्रकारों, लेखकों, और बुद्धिजीवियों को प्रताड़ित किया जा रहा है। सोशल मीडिया पर सरकार की आलोचना करने वालों को देशद्रोही करार दिया जाता है। यह सब एक अघोषित आपातकाल जैसा माहौल पैदा कर रहा है।
वंचितों पर अत्याचार क्यों?
बाबा साहब का जीवन दलितों, वंचितों और महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए समर्पित था, लेकिन आज दलितों पर अत्याचार की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। अनुसूचित जातियों के खिलाफ अपराधों में वृद्धि हुई है और न्याय की प्रक्रिया में लगातार देरी हो रही है। यह लोकतंत्र की उस बुनियाद पर हमला है जिसे अंबेडकर ने मजबूती से गढ़ा था।
सच हो रही बाबा साहब की चेतावनियां
अंबेडकर जी ने कहा था, "राजनीतिक स्वतंत्रता का कोई महत्व नहीं होगा, अगर सामाजिक और आर्थिक असमानता बनी रहती है।" भाजपा राज में सामाजिक व आर्थिक असमानता और भी गहराई में है। अमीर और अमीर होते जा रहे हैं, गरीब और गरीब। भारत का संसाधन कुछ चुनिंदा कॉर्पोरेट घरानों को सौंपा जा रहा है। यही वह “राजनीतिक स्वतंत्रता” है जो केवल एक दिखावा बनकर रह गई है।
शिक्षा का अधिकार खतरे में
अंबेडकर ने कहा था, “शिक्षा शेरनी का दूध है, जो पियेगा वह दहाड़ेगा।” किंतु, आज की सरकार शिक्षा को भी निजीकरण की ओर धकेल रही है। सरकारी स्कूलों और कॉलेजों की हालत बदतर है। गरीब और वंचित तबकों के लिए उच्च शिक्षा एक सपना बनती जा रही है। बाबा साहब ने शिक्षा को समानता का सबसे बड़ा औजार माना था, पर आज उसे विशेषाधिकार का साधन बनाया जा रहा है।
महिलाओं के अधिकारों पर भी खतरा
अंबेडकर साहब ने हिंदू कोड बिल के माध्यम से महिलाओं को अधिकार दिलाने का प्रयास किया। उनका मानना था कि महिला सशक्तिकरण के बिना समाज का विकास अधूरा है, परंतु आज महिला सुरक्षा, उनके अधिकार और उनके सम्मान पर भी खतरे मंडरा रहे हैं। सरकार “बेटी बचाओ” का नारा तो देती है, लेकिन जब बेटियों के साथ अन्याय होता है, तब उसकी आंखें बंद रहती हैं।
कांग्रेस का संकल्प :
संविधान और लोकतंत्र की रक्षा
कांग्रेस बाबा साहब अंबेडकर की विचारधारा को पूरी निष्ठा के साथ स्वीकार करती है और मानती है कि संविधान ही इस देश की आत्मा है। जब भी संविधान पर हमला हुआ है, कांग्रेस ने सबसे पहले मोर्चा संभाला है। हम बाबा साहब के उस सपने को साकार करने के लिए प्रतिबद्ध हैं, जिसमें हर व्यक्ति को समान अधिकार मिले, कोई जाति, धर्म या वर्ग किसी की उन्नति में बाधक न बने। हम हर उस ताकत के खिलाफ संघर्ष करेंगे, जो संविधान को कमजोर करना चाहती है, जो आरक्षण की व्यवस्था को समाप्त करना चाहती है और जो देश को एक धर्म विशेष की ओर झुकाना चाहती है।
बाबा साहब के विचार ही हमारी राह
आज जब भारत के लोकतंत्र को कमजोर करने की साजिशें हो रही हैं, हमें फिर से अंबेडकर को पढ़ने, समझने और उनके बताए रास्ते पर चलने की जरूरत है। बाबा साहब ने जो मंत्र दिया था ‘शिक्षित बनो, संगठित हो, संघर्ष करो’, वही आज भी हमारी प्रेरणा है। यही वह मंत्र है जो इस देश को बचाएगा, संविधान को बचाएगा और जनता के अधिकारों को सुरक्षित रखेगा! क्योंकि, बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर केवल एक व्यक्ति नहीं, विचार हैं। एक ऐसा विचार जो समानता, न्याय और मानवता की बात करता है। एक ऐसा विचार जो सत्ता को नहीं, जनता को सर्वोच्च मानता है। आज आवश्यकता है कि हम सब मिलकर इस विचार की मशाल को जलाए रखें। यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
(लेखक मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रदेश अध्यक्ष हैं। ये लेखक के निजी विचार हैं)