16 प्रेस संगठनों ने चीफ जस्टिस को लिखा पत्र, जांच एजेंसियों के दुरुपयोग पर लगाम लगाने की मांग

CJI को संबोधित पत्र में लिखा गया है कि केंद्रीय जांच एजेंसियों का इस्तेमाल स्वतंत्र मीडिया के खिलाफ हथियार के रूप में किया जाता है। पत्रकारों और रिपोर्टरों पर राजद्रोह और आतंकी होने के आरोप लगाकर मामला दर्ज कर लिया जाता है।

Updated: Oct 05, 2023, 08:44 AM IST

नई दिल्ली। न्यूज क्लिक छापेमारी मामले पर देश के तमाम प्रेस संगठनों ने चिंता जताई है। न्यूज़क्लिक से जुड़े पत्रकारों पर मंगलवार को हुई दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल की कार्रवाई के विरोध में बुधवार शाम प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में एक बड़ी बैठक का आयोजन हुआ। इसी बीच देश के करीब 16 प्रेस संगठनों ने सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश डीवाई चंद्रचूड़ को पत्र लिखकर मीडिया के खिलाफ लगातार हो रहे सरकारी एजेंसियों के दुरुपयोग को रोकने की मांग की है।

इन संगठनों में प्रेस क्लब ऑफ इंडिया, डिजिपब न्यूज़ इंडिया फाउंडेशन, इंडियन विमिन प्रेस कॉरपोरेशन, फाउंडेशन फॉर मीडिया प्रोफेशनल्स, चंडीगढ़ प्रेस क्लब, नेशनल अलॉयन्स फॉर जर्नलिस्ट्स, दिल्ली यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स, केरल यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स, बृहनमुंबई यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट, फ्री स्पीच कलेक्टिव, मुंबई प्रेस क्लब, अरुणाचल प्रदेश यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट, प्रेस एसोसिएशन, गुवाहाटी प्रेस क्लब, इंडियन जर्नलिस्ट्स यूनियन और नेटवर्क ऑफ विमन इन मीडिया आदि शामिल हैं।

पत्र के माध्यम से चीफ जस्टिस को न्यूज़क्लिक के संस्थापक प्रबीर पुरकायस्थ और एचआर हेड अमित चक्रवर्ती की गिरफ्तारी के बारे में जानकारी दी गई है। साथ ही यह भी बताया गया है कि दिल्ली पुलिस ने संस्था से जुडे़ और पूर्व में अलग हो चुके समेत कुल 46 पत्रकारों से पूछताछ की गई। पुलिस ने इनमें से कई लोगों के मोबाइल फोन और लैपटॉप भी जब्त कर लिए।

पत्र में लिखा है, 'आपने सुप्रीम कोर्ट में अपने कार्यकाल के दौरान देखा है कि कैसे केंद्रीय जांच एजेंसियों का इस्तेमाल स्वतंत्र मीडिया के खिलाफ हथियार के रूप में किया जाता है। कैसे पत्रकारों और रिपोर्टरों पर राजद्रोह और आतंकी होने के आरोप लगाकर मामला दर्ज कर लिया जाता है। ऐसे मुकदमों का प्रयोग पत्रकारों को उत्पीड़ित करने के लिए किया जाता है।' पत्र में इस बात पर भी जोर दिया गया है कि मीडिया पर हमला सिर्फ इसकी आजादी को खत्म नहीं करता है बल्कि यह देश के लोकतांत्रित ढांचे को भी प्रभावित करता है।

पत्र में आगे लिखा है, 'मीडिया के खिलाफ राज्य की कार्रवाइयां हद से ज्यादा बढ़ती जा रही हैं। हमारा डर यह है कि अगर ऐसा ही चलता रहा तो वो दिन दूर नहीं जब स्थिति ऐसी हो जाएगी कि जिसमें सुधार करना मुश्किल हो जाएगा। इसलिए हमारा सामूहिक विचार यह है कि मीडिया के दमन के लिए हो रहे केंद्रीय जांच एजेंसियों के इस्तेमाल को रोकने के लिए सर्वोच्च न्यायालय को हस्तक्षेप करना चाहिए।'

पत्र में कोर्ट से जांच एजेंसियों के लिए कम से कम तीन दिशानिर्देश निर्धारित करने की मांग की गई है। इनमें पत्रकारों के उपकरणों की जब्ती को कम करने, पूछताछ के नियम बनाने और केंद्रीय एजेंसियों की जवाबदेही सुनिश्चित करने के प्रावधान निर्धारित किए जाने की मांग शामिल है।

पत्र में लिखा है, 'देश में पत्रकारों पर हमले के कई ऐसे उदाहरण हैं, जिनकी जांच के लिए न्यायपालिका को हस्तक्षेप करना चाहिए और अभी भी ऐसे मामले जारी हैं। लेकिन पिछले 24 घंटों में जो कुछ हुआ उसको देखते हुए हमें आपसे अपील करने के लिए मजबूर होना पड़ा है। यदि अभी भी कार्रवाई नहीं की गई तो सुधार की गुंजाइश लगभग खत्म हो जाएगी।'