मध्य प्रदेश में अमृत सरोवर का यथार्थ
केन्द्रीय जल शक्ति मंत्रालय द्वारा जारी पहली वाटरबाॅडी सेंसस के मुताबिक मध्य प्रदेश में 82643 कुल जल निकाय हैं। उसमें से 37257 उपयोग में है शेष 45386 उपयोग में नहीं है।

आजादी का अमृत महोत्सव काल में अमृत सरोवर (तालाब) योजना शुरू किया गया था। जिसमें देश के 28 राज्य और 5 केन्द्र शासित प्रदेश शामिल थे। सभी जिलों में 75 अमृत सरोवर को विकसित करना या पुनर्जीवित करना था। जिससे 50 हजार सरोवर बनाए जाने का लक्ष्य था। इस मिशन अमृत सरोवर को 15 अगस्त 2023 तक पूरा लिया जाना तय किया गया।
मिशन अमृत सरोवर को मनरेगा, 15 वें वित्त आयोग अनुदान, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना की उपयोजना जैसे वाटर शेड, हर खेत को पानी, राज्यों की अपनी योजनाओं के अलावा विभिन्न योजनाओं के अभिसरण के साथ राज्यों और जिलों के माध्यम से काम हुआ है। इस काम के लिए क्राउड फंडिंग और कार्पोरेट समाजिक जिम्मेदारी (सीएसआर) जैसी सार्वजनिक योगदान की भी अनुमति दी गई थी।
मिशन अमृत सरोवर का ध्यान जल संरक्षण, जन भागीदारी और बुनियादी ढाँचा परियोजना विकसित करने के लिए जल निकायों पर केन्द्रित था। देश भर में 68410 सरोवर निर्माण तथा पुनरूद्धार पर 10419.38 करोड़ रुपये खर्च किये गए। मध्य प्रदेश में 5970 सरोवर निर्माण तथा पुनरूद्धार शुरू किया गया और 5299 पूर्ण हुआ है, जिसमें 737.13 करोड़ रुपये खर्च हुआ है।
केन्द्रीय जल शक्ति मंत्रालय द्वारा जारी पहली वाटरबाॅडी सेंसस के मुताबिक मध्य प्रदेश में 82643 कुल जल निकाय हैं। उसमें से 37257 उपयोग में है शेष 45386 उपयोग में नहीं है। देशभर के जल निकायों की स्थिति अच्छी नहीं है। शहरी भारत में हर चार जल निकायों में से लगभग एक उपयोग में नहीं है जबकि ग्रामीण भारत में सात जल निकायों में करीब एक उपयोग नहीं है। अर्थात देश के 24,24,540 कुल जल निकायों में से 3,94,500 उपयोग में नहीं है।
भारत सरकार द्वारा अमृत सरोवर दिसम्बर 2023 के नाम से एक रिपोर्ट प्रकाशित किया है। इस रिपोर्ट में 22 राज्य और 3 केन्द्र शासित प्रदेशों के अमृत सरोवर सफलता की एक से दो कहानी प्रकाशित किया गया है। परन्तु देश भरके अमृत सरोवर की सफलता में मध्य प्रदेश को स्थान नहीं मिलना कुछ और कहानी बयां कर रहा है। जबकि जबलपुर जिले में 99, कटनी में 115, नरसिंहपुर में 60, छिंदवाड़ा में 295, ग्वालियर में 101, इंदौर में 106, सिंगरौली में 128, सीधी में 157, सिवनी में 88, रीवा में 106, भोपाल में 76, बालाघाट में 100 और मंडला में 105 अमृत सरोवर का निर्माण कराया गया है।
विभिन्न मिडिया रिपोर्ट से पता चलता है कि डेढ़ साल चले अमृत सरोवर के दावे धरातल पर नजर नहीं आ रहा है। विदिशा जिले की सिरोंज जनपद क्षेत्र के ग्राम पंचायत सरेखों में करीब 39 लाख रुपये की लागत से बनाया गया दो अमृत सरोवर तालाब एक बारिश भी नहीं झेल पाया और धाराशायी हो गया। आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र मंडला जिला में जनपद पंचायत मोहगांव के ग्राम पंचायत मलवाथर में बने अमृत सरोवर तालाब पहली बारिश में ही पोल खोल कर रख दिया।
विभाग के जिम्मेदार अधिकारी और ठकेदार अपनी कमी छुपाने तरह-तरह के बहाने दे रहें हैं। तालाब का जो काम बारिश के पहले ही पूर्ण होना था, उसे अपूर्ण बता कर भ्रष्टाचार को ढकने की कोशिश करते दिखाई दिए। दूसरा इसी जिले में कान्हा नेशनल पार्क के पास बोडा छपरी सरोवर लगभग सूखा पङा है।ग्रामिणों का आरोप है कि सरोवर बनाने में गड़बड़ी की गई है।सरोवर का गहरीकरण नहीं किया गया है।
सौंदर्यीकरण को लेकर पेङ पौधे लगाए गए थे, वे सूख गये हैं। वहीं महिला समूहों द्वारा मिलकर 50 हजार मछलियों के बच्चे छोङे गए परन्तु पानी नहीं होने से मछलियाँ मर गई। जिससे महिला समूहों को हजारों का नुकसान हो गया। आदिवासी बाहुल्य डिंडोरी जिले में 101 अमृत सरोवरों का निर्माण कराया गया है।
जिला मुख्यालय से 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित सरही ग्राम पंचायत में 57 लाख की लागत से बनाये गए तालाब में बारिश के मौसम में पानी लबालब भरा हुआ था, लेकिन घटिया निर्माण के कारण के चलते पानी का तेजी से रिसाव हो गया और बारिश का मौसम जाने से पहले ही सरोवर सूख गया।ग्रामिणों द्वारा अमृत सरोवर योजना में हुए भ्रष्टाचार की शिकायत भी की गई, लेकिन कोई कार्यवाही या जांच नहीं हुआ। उपरोक्त कुछ उदाहरणों से अमृत सरोवर योजना में मध्य प्रदेश का स्थान नहीं होने को समझा जा सकता है।