भारतीय मुक्केबाजी के पहले द्रोणाचार्य विजेता कोच ओपी भारद्वाज का निधन, 10 दिन पहले पत्नी का हुआ था देहांत

मुक्केबाज कोच ओपी भारद्वाज कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी को प्रशिक्षण सन 2008 में दे चुके हैं।

Updated: May 21, 2021, 01:56 PM IST

Photo courtesy: patrika
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दिल्ली। भारत के पूर्व नेशनल मुक्केबाज कोच ओपी भारद्वाज का 82 साल की उम्र में निधन हो गया। वे पहले भारत के पहले द्रोणाचार्य विजेता थे। लंबी बीमारी के कारण शुक्रवार सुबह अंतिम सांस ली। इससे 10 दिन पहले ही उन्होंने अपनी पत्नी को खोया है। साल 1985 में उन्हें बॉक्सिंग कोच के तौर पर द्रोणाचार्य़ अवॉर्ड दिया गया था। वह साल 1968 से 1989 तक नेशनल कोच रहे थे और साथ ही नेशनल सेलेक्टर की भी भूमिका निभाई, उनके कोच रहते भारत ने एशियन गेम्स और कॉमनवेल्थ गेम्स में मेडल जीते थे। उन्होंने कांग्रेस वरिष्ठ नेता राहुल गांधी को भी साल 2008 में दो महीने के लिए बॉक्सिंग की ट्रेनिंग दी थी।

भारद्वाज को 1985 में द्रोणाचार्य पुरस्कार शुरू किए जाने पर बालचंद्र भास्कर भागवत (कुश्ती) और ओ एम नांबियार (एथलेटिक्स) के साथ कोचिंग को दिए जाने वाले इस सर्वोच्च पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। पूर्व मुक्केबाजी कोच और भारद्वाज के परिवार के करीबी मित्र टी एल गुप्ता ने बताया कि उन्हें, ‘स्वास्थ्य संबंधी कई परेशानियों के कारण वह पिछले कई दिनों से अस्वस्थ थे और अस्पताल में भर्ती थे। उम्र संबंधी परेशानियां भी थीं और 10 दिन पहले अपनी पत्नी के निधन से भी उन्हें आघात पहुंचा था।


भारतीय मुक्केबाजी के अग्रज ओपी भारद्वाज राष्ट्रीय खेल संस्थान पटियाला के पहले मुख्य प्रशिक्षक थे। टीएल गुप्ता ने कहा, ‘‘उन्होंने पुणे में सेना स्कूल एवं शारीरिक प्रशिक्षण केंद्र में अपना करियर शुरू किया और सेना मशहूर कोच बने। राष्ट्रीय खेल संस्थान (एनआईएस) ने 1975 में जब मुक्केबाजी में कोचिंग डिप्लोमा का प्रस्ताव रखा तो भारद्वाज को पाठ्यक्रम की शुरुआत के लिय चुना गया था। मुझे गर्व है कि मैं उनके शुरुआती शिष्यों में शामिल था।’’  पूर्व राष्ट्रीय कोच गुरबख्श सिंह भी उनके शुरुआती शिष्यों में शामिल थे। सिंह ने कहा, ‘‘मेरी भारद्वाज जी के साथ बहुत अच्छी दोस्ती थी। मैं एनआईएस में उनका शिष्य और सहायक था। उन्होंने ही भारतीय मुक्केबाजों को आगे तक पहुंचाने की नींव रखी थी। खेल जगत के खिलाड़ियों ने शोक जताया साथ ही उन्हें श्रंद्धाजलि दी।