भोपाल। एक ओर मुख्यमंत्री मोहन यादव किसानों को पर्याप्त बिजली देने का भरोसा दिला रहे हैं। वहीं, दूसरी ओर मध्यप्रदेश मध्यक्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी ने ऐसा आदेश जारी किया है जिसने किसानों और बिजली कर्मचारियों दोनों को सकते में डाल दिया है। कंपनी ने साफ निर्देश दिए हैं कि किसानों को तय सीमा से ज्यादा बिजली देने पर ऑपरेटर से लेकर वरिष्ठ अधिकारियों तक का वेतन काटा जाएगा।

मुख्यमंत्री मोहन यादव ने हाल ही में समाधान योजना के शुभारंभ अवसर पर कहा था कि किसानों को सिंचाई के लिए रोजाना कम से कम 10 घंटे बिजली मिलेगी। लेकिन कंपनी के आदेश ने उनके इस बयान की सीधी अवहेलना कर दी है। कंपनी की ओर से जारी आदेश में लिखा गया है कि किसी भी स्थिति में कृषि फीडर पर 10 घंटे से ज्यादा बिजली नहीं दी जाएगी, चाहे मिट्टी में नमी हो, खराब मौसम हो या तकनीकी कारणों से लोड बढ़े।

आदेश कंपनी के चीफ जनरल मैनेजर ए.के. जैन ने जारी किया है। इसके तहत भोपाल, ग्वालियर, सीहोर, राजगढ़, नर्मदापुरम, रायसेन, हरदा, विदिशा, अशोकनगर, गुना, भिंड, मुरैना, श्योपुर, शिवपुरी और दतिया जिलों में यह निर्देश लागू किए गए हैं।

कंपनी के आदेश के मुताबिक, अगर किसी कृषि फीडर पर तय सीमा से ज्यादा बिजली दी जाती है तो, पहली बार ऐसा करने पर ऑपरेटर का एक दिन का वेतन काटा जाएगा। अगर यह गलती लगातार दो दिन तक दोहराई गई तो संबंधित जूनियर इंजीनियर का एक दिन का वेतन कटेगा। पांच दिन तक ऐसा होने पर एक्जीक्यूटिव इंजीनियर की सैलरी भी जाएगी और सात दिन लगातार बिजली अधिक देने की स्थिति में उपमहाप्रबंधक या महाप्रबंधक का भी वेतन काट लिया जाएगा।

कंपनी के इस आदेश से प्रदेशभर में हड़कंप मच गया है। एक तरफ किसान यह सोचकर चिंतित हैं कि अब सिंचाई के लिए बिजली कब और कितनी मिलेगी वहीं, दूसरी ओर बिजली विभाग के कर्मचारी और अधिकारी असमंजस में हैं कि सीएम के आदेश का पालन करें या कंपनी के निर्देशों का।

इस विवाद ने राजनीतिक तूल भी पकड़ लिया है। कांग्रेस ने इस मुद्दे पर सरकार को घेर लिया है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी और नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंगार ने आदेश को किसान विरोधी बताया और बीजेपी सरकार पर तीखा हमला बोला। सिंगार ने सवाल उठाया कि आखिर प्रदेश में क्या बिजली की कमी हो गई है जो किसानों को तय समय से ज्यादा बिजली देना अपराध बना दिया गया? कांग्रेस नेताओं का कहना है कि मुख्यमंत्री किसानों को भरोसा दिला रहे हैं जबकि, उनकी ही सरकार के अधीन आने वाली कंपनी उनके वादों की धज्जियां उड़ा रही है।