Farmer Protest Live Update: किसानों के दुख से दुखी धर्मेंद्र ने कहा, हमारी किसी की कोई सुनवाई नहीं
अभिनेता धर्मेंद्र ने सरकार से किसानों की समस्याओं का जल्द समाधान निकालने की अपील की है। पूर्व बीजेपी सांसद धर्मेंद्र के बेटे सनी देओल और पत्नी हेमा मालिनी आज भी बीजेपी सांसद हैं।
धर्मेंद्र की सरकार से अपील, जल्द निकालें किसानों की परेशानी का हल
हिंदी फिल्मों के वरिष्ठ अभिनेता और पूर्व बीजेपी सांसद धर्मेंद्र ने मोदी सरकार से किसानों की समस्याओं का जल्द समाधान निकालने का आग्रह किया है। 84 साल के धर्मेंद्र की पत्नी हेमा मालिनी और बेटे सनी देओल अब भी बीजेपी के सांसद हैं। धर्मेंद्र ने एक दिन पहले भी एक ऐसा ही ट्वीट किया था, लेकिन जल्द ही उसे हटा भी दिया था। उन्होंने एक पोस्ट में लिखा था, 'मैं सरकार से अनुरोध करता हूं कि कृपया किसानों की समस्याओं का जल्द समाधान निकालें। दिल्ली में कोरोना वायरस के मामले बढ़ रहे हैं, यह पीड़ादायी है।'
हालांकि उन्होंने बिना वजह बताए इस पोस्ट को हटा लिया था। एक सोशल मीडिया यूज़र ने धर्मेंद्र के इस ट्वीट का स्क्रीनशॉट उनके ट्विटर पर टैग करके सवाल उठाया कि धर्मेंद्र ने अपना ट्वीट किस कारण से हटा लिया। उसने लिखा कि पंजाबियों के आइकन धर्मेंद्र पाजी ने अपना ट्वीट क्यों हटा लिया? कुछ तो मजबूरियां रही होंगी, यूं ही कोई बेवफा नहीं होता।
धर्मेंद्र ने इस ट्वीट में कही गई बातों से दुखी होकर इसका जवाब दिया है, जिसमें उन्होंने फिर से कहा है कि सरकार को किसानों की समस्याओं का हल जल्द निकालना चाहिए।
धर्मेंद्र ने ट्विटर पर दिए इस जवाब में लिखा है, "आपके ऐसे ही कमेंट्स से दुखी होकर अपना ट्वीट डिलीट कर दिया था। जी भर कर गाली दे लीजिए। आप की खुशी में खुश हूं मैं। हां, अपने किसान भाइयों के लिए बहुत दुखी हूं। सरकार को जल्दी कोई हल तलाश कर लेना चाहिए। हमारी किसी की कोई सुनवाई नहीं।"
Aap ke Aise hi comments se dukhi ho kar apna tweet delete kar diya tha ..ji bhar ke gaali de leejiye Aap ki khushi mein khush hoon main..Haan ..Apne Kissan bhaiyon Ke liye ..bahut dukhi hoon ..Sarkaar ko jadldi koi hall tlaash kar Leena chahie. Hamari kisi ki koi sunwai nehin.
— Dharmendra Deol (@aapkadharam) December 4, 2020
किसानों के ऐतिहासिक आंदोलन से उठते अहम सवाल
दिल्ली की ज़्यादातर सीमाएं पिछले नौ दिनों से लगातार बंद हैं। किसानों को दिल्ली में घुसने से रोकने की सरकार की ज़िद के कारण दिल्ली और आसपास के शहरों के लोगों को कई परेशानियों से गुज़रना पड़ रहा है। किसान तो इस ठंड में सड़कों पर रातें गुज़ारने को मजबूर हैं ही। लेकिन किसानों से बार-बार आंदोलन खत्म करने की अपील करने वाली सरकार खुद ये सोचने को तैयार नहीं है कि उसने दिल्ली की तमाम सीमाओं को नौ दिनों से इस तरह सील क्यों कर रखा है? आखिर देश का पेट भरने वाले किसान अगर अपनी राजधानी में आ जाएंगे तो कौन सा कहर टूट पड़ेगा? जिन किसानों के बेटे देश की सरहदों पर और उसके भीतर भी सबकी रक्षा करते हैं, उनसे देश के हुक्मरानों को डर क्यों लग रहा है? ऐसे तमाम सवालों के जवाब किसानों के इस ऐतिहासिक आंदोलन ने हमारे सामने रख दिए हैं। इनके जवाब सरकार भले ही न देना चाहती हो, लेकिन अगर हम गौर से सोचेंगे तो हमें ज़रूर समझ आ जाएंगे।
सुबह 11 बजे किसान नेताओं की बैठक में होगा आगे की रणनीति पर विचार

नौ दिनों से दिल्ली की सीमाओं पर डटे किसान नेताओं की सुबह 11 बजे यानी अब से करीब एक घंटे बाद सिंघु बॉर्डर पर बैठक होने जा रही है। इस बैठक में किसान नेता सरकार के साथ कल साढ़े सात घंटे तक चली मैराथन मुलाकात में सामने आए मुद्दों की जानकारी आपस में साझा करेंगे। इसके साथ ही कल यानि शनिवार 5 दिसंबर को होने वाली अगले दौर की बातचीत के एजेंडे पर भी बात हो सकती है। इस बीच, किसानों का आंदोलन लगातार जारी है। बीती रात भी लाखों किसान दिल्ली की हरियाणा और उत्तर प्रदेश से सटी सीमाओं पर धरना देते रहे। पुलिस ने दिल्ली की तरफ आने वाले प्रमुख रास्तों को अब भी बंद कर रखा है।
हम कृषि क़ानून रद्द करने पर अडिग, सरकार चाहती है संशोधन: किसान नेता

केंद्रीय कृषि कानूनों के विरोध में आंदोलन कर रहे किसान नेताओं ने सरकार के साथ सात घंटे से ज्यादा चली मैराथन बैठक में हुई बातचीत का खुलासा किया है। किसान नेताओं का कहना है कि बैठक के दौरान मोदी सरकार के मंत्री कृषि कानूनों में संशोधन से आगे बढ़ने को तैयार नहीं हुए, जबकि हमारी मांग है कि इन किसान विरोधी कानूनों को पूरी तरह वापस लिया जाए।
किसान नेताओं ने कहा कि हमारी मांग है कि कानून वापस होना चाहिए, जबकि सरकार संशोधन की कोशिश में लगी है। सरकार ने विचार को लिए एक दिन का वक्त मांगा है। उन्होंने कहा कि हम कानूनों को वापस लेने की अपनी पुरानी मांग पर कायम हैं। संशोधन हमें मंजूर नहीं है। कानून वापस लिए जाने तक आंदोलन खत्म करने का कोई सवाल ही नहीं है। कल सुबह 11 बजे सभी किसान संगठनों की बैठक होगी। बैठक में शामिल किसान नेता हरजिंदर सिंह टांडा ने कहा कि बातचीत के दौरान आधे वक्त तक तो यही लगता रहा कि इससे कुछ नहीं निकलने जा रहा। लेकिन उसके बाद ऐसा लगा कि सरकार किसान आंदोलन के दबाव में है, इसलिए कोई रास्ता निकल सकता है।
Talks have made little progress. In the half time it seemed that today's meeting will yield no result, in second half it seemed that there is pressure of farmers agitation, on govt. Talks were held in a conducive atmosphere: Harjinder Singh Tanda, Azaad Kisan Sangharsh Committee pic.twitter.com/NIQSz8S2AK
— ANI (@ANI) December 3, 2020
सरकार को कोई अहंकार नहीं, खुले मन से हुई चर्चा : कृषि मंत्री

किसानों के साथ बैठक के बाद कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने कहा कि चर्चा के दौरान किसानों और सरकार ने खुले मन से अपनी बात रखी। उन्होंने दावा किया कि भारत सरकार को कोई अहंकार नहीं है, बल्कि उसे तो किसानों की पूरी चिंता है। तोमर ने कहा कि हम खुले मन से किसानों के साथ बातचीत कर रहे हैं। किसानों को चिंता है कि नए कानून से मंडी खत्म हो जाएगी। भारत सरकार यह विचार करेगी कि मंडी सशक्त हो और उसका उपयोग और बढ़े। जहां तक नए कानून का सवाल है, प्राइवेट मंडियों का प्रावधान है। प्राइवेट मंडियां आएंगी, लेकिन सरकारी मंडी से कर की समानता हो, इसपर भी सरकार विचार करेगी। यह बात भी सामने आई कि जब मंडी के बाहर कारोबार होगा तो वह पैन कार्ड से होगा। इसलिए ट्रेडर का रजिस्ट्रेशन हो, यह भी हम लोग सुनिश्चित करेंगे।
नरेंद्र तोमर ने कहा कि किसानों का कहना है कि नए कानून में कोई विवाद होने पर एसडीएम कोर्ट में जाने का प्रावधान है। किसानों की चिंता है कि एसडीएम कोर्ट काफी छोटा कोर्ट है। उसे बड़े कोर्ट में जाना चाहिए। हम लोग इस पर भी विचार करेंगे। किसानों ने पराली के ऑर्डिनेंस पर भी बातचीत की। सरकार इस विषय पर भी विचार करेगी।
किसानों और सरकार के बीच मैराथन बैठक में आज भी नहीं निकला कोई नतीजा
केंद्र सरकार के कृषि कानूनों के खिलाफ पिछले आठ दिनों से लगातार आंदोलन कर रहे किसानों और सरकार के बीच आज करीब साढ़े सात घंटे बैठक हुई। फिर भी बैठक में दोनों पक्ष किसी सहमति तक नहीं पहुंच सके। सरकार ने अब किसानों को एक बार फिर से 5 दिसंबर को बातचीत के लिए बुलाया है। दरअसल किसान तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग कर रहे हैं, जबकि सरकार उन्हें यह समझाने पर अड़ी है कि ये कानून उनकी भलाई के लिए ही बनाए गए हैं। इस बीच दिल्ली की सीमाओं पर लाखों किसानों का प्रदर्शन जारी है। किसानों को दिल्ली में घुसने से रोकने के लिए सरकार ने दिल्ली आने वाले ज्यादातर रास्तों को सील कर दिया है।
किसानों को एंटी नेशनल कहने वाले खुद देशद्रोही : सुखबीर बादल
हाल फिलहाल तक बीजेपी के सबसे पुराने सहयोगी रहे शिरोमणि अकाली दल ने किसान आंदोलन के बारे में उल्टे-सीधे बयान देने वाले नेताओं पर बेहद सख्त टिप्पणी की है। SAD प्रमुख सुखबीर बादल ने कहा है कि किसानों को एंटी नेशनल करार देने वाले खुद ही देशद्रोही हैं।
सुखबीर बादल ने कहा कि क्या बीजेपी या किसी और के पास किसी को भी राष्ट्र-विरोधी घोषित करने का अधिकार है? किसानों ने अपना पूरा जीवन देश को समर्पित कर दिया है और अब आप उन्हें देशविरोधी कह रहे हैं। जो लोग उन्हें देशद्रोही कह रहे हैं, दरअसल वे खुद ही देशद्रोही हैं। शिरोमणी अकाली दल के प्रमुख सुखबीर बादल ने कहा, ''किसानों के आंदोलन में कई बुजुर्ग महिलाएं भी शामिल हैं। क्या वे खालिस्तानियों की तरह दिखती हैं? यह देश के किसानों को एक तरह से एंटी-नेशनल बुलाने का तरीका है। उनकी हिम्मत कैसे हुई किसानों को एंटी-नेशनल बुलाने की।
There are elderly women in farmer protests. Do they look like Khalistanis? It is a way of calling farmers of the country as anti-nationals. This is an insult to the farmers. How dare they call our farmers anti-nationals?: Shiromani Akali Dal chief Sukhbir Badal to ANI pic.twitter.com/hdHLnctfyy
— ANI (@ANI) December 3, 2020
किसान नेताओं ने नहीं छुआ सरकारी खाना, अपने साथ ले गए खाने को बांटकर खाया

कृषि बिल ने मोदी सरकार और देश के किसानों के बीच कितनी दूरी पैदा कर दी है, इसकी एक मिसाल आज देखने को मिली। दिल्ली के विज्ञान भवन में किसान नेताओं और सरकार की वार्ता के दौरान ब्रेक हुआ तो किसान नेताओं ने अपने साथ लाए खाने को आपस में बांटकर खाया। सरकारी इंतज़ाम के तहत रखे गए भोजन को उन्होंने हाथ तक नहीं लगाया। इससे पहले बातचीत के पिछले दौर में भी जब कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने किसानों को चाय के लिए आमंत्रित किया था, तो उन्होंने जवाब दिया था कि आप हमारे लंगर पर चलो जलेबी छानकर खिलाएंगे।
संशोधन नहीं चाहिए, रद्द करो क़ानून : किसान नेता
सरकार से बातचीत के दौरान किसान नेता अपनी प्रमुख मांग पर डटे हुए हैं। मीडिया में आई खबरों के मुताबिक किसान मज़दूर संघर्ष कमेटी के महासचिव श्रवण सिंह पंढेर ने कहा कि कृषि कानूनों में संशोधन से बात बनने वाली नहीं है, कृषि कानून रद्द करने के अलावा कोई और चारा नहीं है।
काले क़ानून वापस ले केंद्र सरकार: भूपेश बघेल
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी कहा है कि केंद्र सरकार को किसानों की मांग का सम्मान करते हुए कृषि कानूनों को वापस लेना चाहिए। एक टीवी चैनल से बातचीत में उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार को चाहिए कि वो इस मसले को अपनी ज़िद का मसला न बनाए। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार के बनाए नए कृषि कानून किसानों-मज़दूरों के खिलाफ और पूंजीपतियों के हक में हैं। उन्होंने कहा कि किसान आंदोलन के दबाव में आकर ही केंद्र सरकार आज किसानों से बात करने को तैयार हुई है और आज नहीं तो कल उसे इन काले कानूनों को वापस लेना ही पड़ेगा।
कांग्रेस की मांग, किसानों के मुद्दे पर विचार के लिए जल्द बुलाया जाए संसद का सत्र
लोकसभा में कांग्रेस के नेता और पश्चिम बंगाल कांग्रेस के अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला से संसद का शीतकालीन सत्र फौरन बुलाने की मांग की है। चौधरी ने आज इसके लिए लोकसभा अध्यक्ष को एक चिट्ठी भी लिखी है।
प्रकाश सिंह बादल ने कृषि क़ानूनों के विरोध में पद्मविभूषण लौटाया

पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री और शिरोमणि अकाली दल के संरक्षक प्रकाश सिंह बादल ने भारत सरकार पर किसानों के साथ विश्वासघात का आरोप लगाते हुए पद्म विभूषण लौटा दिया है। प्रकाश सिंह बादल की पार्टी केंद्र सरकार के कृषि बिलों का विरोध करते हुए मोदी सरकार और एनडीए से पहले ही अलग हो चुकी है। शिरोमणि अकाली दल बीजेपी के सबसे पुराने सहयोगियों में शामिल रही है। लेकिन कृषि कानूनों पर मोदी सरकार के अड़ियल रवैये ने उन्हें भी बीजेपी का विरोधी बना दिया है।
किसान मज़दूर विरोधी क़ानून वापस ले सरकार : दिग्विजय सिंह
मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह ने कहा है कि केंद्र सरकार और किसान प्रतिनिधियों के बीच बातचीत होना अच्छी बात है। ठंड में किसानों पर ठंडा पानी बरसाने के बजाय पहले ही चर्चा कर लेते तो बेहतर होता। लेकिन देर से आए दुरुस्त आए। दिग्विजय सिंह ने कहा कि अब सरकार को किसान मज़दूर विरोधी क़ानून वापस ले लेना चाहिए।
केंद्र सरकार किसान प्रतिनिधियों से आज चर्चा कर रही है मुझे प्रसन्नता है। ठंड में किसानों पर ठंडा पानी बरसाने के बजाय पहले ही चर्चा कर लेते। देर से आए दुरुस्त आए। किसान मज़दूर विरोधी क़ानून वापस लें। #किसान_विरोधी_मोदी_सरकार
— digvijaya singh (@digvijaya_28) December 3, 2020
काले कृषि क़ानूनों को रद्द करने से कम कुछ भी मंज़ूर नहीं होना चाहिए : राहुल गांधी
केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे किसानों के प्रतिनिधियों और केंद्र सरकार के बीच हो रही बातचीत से ठीक पहले कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने इस बारे में एक अहम बयान दिया है। राहुल गांधी ने कहा है कि कृषि क़ानूनों को पूरी तरह रद्द करने से कम कुछ भी मंजूर करना हमारे देश और उसके किसानों के हित में नहीं होगा। राहुल गांधी ने ट्विटर पर लिखा है," काले कृषि कानूनों को पूर्ण रूप से रद्द करने से कम कुछ भी स्वीकार करना भारत और उसके किसानों के साथ विश्वासघात होगा।"
काले कृषि कानूनों को पूर्ण रूप से रद्द करने से कम कुछ भी स्वीकार करना भारत और उसके किसानों के साथ विश्वासघात होगा।
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) December 3, 2020
केंद्र सरकार और किसानों की बातचीत में मेरी कोई भूमिका नहीं : कैप्टन अमरिंदर सिंह

पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कहा है कि केंद्र सरकार और किसानों के बीच सीधी बातचीत हो रही है, इसमें मेरी कोई भूमिका नहीं है, न ही ऐसा कोई मसला है जो मुझे सुलझाना है। ये बात उन्होंने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात के बाद कही। अमरिंदर सिंह ने कहा कि मैंने गृह मंत्री अमित शाह के साथ मुलाकात में सिर्फ यह अनुरोध किया कि वे इस मसले का समाधान जल्द निकालें क्योंकि यह मेरे प्रदेश की अर्थव्यवस्था और देश की सुरक्षा से जुड़ा मसला है।
किसानों से चर्चा का सकारात्मक नतीजा निकलेगा: तोमर

नई दिल्ली के विज्ञान भवन में 40 किसानों नेताओं की सरकार के साथ बातचीत चल रही है। सरकार की तरफ से कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर अध्यक्षता कर रहे हैं। मीटिंग से पहले तोमर ने कहा कि किसानों से चर्चा का सकारात्मक नतीजा निकलेगा। बैठक में रेल मंत्री पीयूष गोयल और वाणिज्य एवं उद्योग राज्य मंत्री सोम प्रकाश भी मौजूद हैं। सोम प्रकाश ने कहा है कि बातचीत से ऐसा समाधान निकलने की उम्मीद है, जो किसानों और सरकार को भी मंजूर हो।