भारत में वायु प्रदूषण बनी जानलेवा हेल्थ इमरजेंसी, 80 पद्म पुरस्कार विजेता डॉक्टरों ने दी चेतावनी
80 से अधिक पद्म सम्मानित डॉक्टरों ने चेतावनी दी है कि भारत में वायु प्रदूषण हेल्थ इमरजेंसी बन चुका है। हर साल 17 लाख मौतें हो चुकी हैं और गंभीर बीमारियां तेजी से बढ़ रहीं।
नई दिल्ली। देशभर के 80 से अधिक पद्म सम्मान प्राप्त चिकित्सकों ने पहली बार संयुक्त रूप से सरकार और देशवासियों को चेतावनी दी है कि भारत में एयर पॉल्यूशन अब साधारण पर्यावरणीय समस्या नहीं बल्कि एक गंभीर हेल्थ इमरजेंसी का रूप ले चुका है। विशेषज्ञों के अनुसार, जहरीली हवा से हर साल लगभग 17 लाख लोगों की मौत हो रही है। जबकि, लाखों लोग दीर्घकालिक बीमारियों और जेनिटिक नुकसान की चपेट में आ रहे हैं। डॉक्टरों ने इस स्थिति को चिकित्सकीय रूप से अस्वीकार्य बताते हुए कहा कि यह मृत्यु दर अब स्वास्थ्य व्यवस्था की क्षमता से कहीं आगे जा चुकी है।
डॉक्टरों का कहना है कि भारत में श्वसन समस्याओं से होने वाली मौत में एक-तिहाई और स्ट्रोक मामलों में 40 प्रतिशत मौत लंबे समय तक प्रदूषित हवा के संपर्क में रहने के कारण हुई हैं। चिंताजनक बात यह है कि हर साल लगभग 4 लाख बच्चे जहरीली हवा से संबंधित स्थितियों के कारण मर रहे हैं। विशेषज्ञों ने उत्तर भारत में पीएम2.5 स्तर के लगातार WHO की सुरक्षित सीमा से 20 से 40 गुना अधिक रहने को बेहद डरावनी स्थिति बताते हुए कहा कि देश की करीब 70 प्रतिशत आबादी रोजाना खतरनाक हवा में सांस लेने को मजबूर है।
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इन चेतावनियों का आधार ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज रिपोर्ट, WHO और UNICEF के अनुमान, लैंसेट एनालिसिस और माइक्रोप्लास्टिक पर हाल में हुए अंतरराष्ट्रीय शोध हैं। रिपोर्ट के अनुसार, माइक्रोप्लास्टिक और नैनोप्लास्टिक अब फेफड़ों और रक्त तक पहुंच चुके हैं। खास कर उन क्षेत्रों में जहां भारी ट्रैफिक होती है। पद्मश्री डॉ. संजीव बगई के अनुसार, ये सूक्ष्म कण मस्तिष्क, हृदय, प्लेसेंटा और यहां तक कि स्तन के दूध तक पहुंच रहे हैं।
डॉक्टरों ने यह भी बताया कि माइक्रोप्लास्टिक मानव स्वास्थ्य के लिए एक बहु-प्रणाली खतरा बन चुका है जो कैंसर, हार्मोनल असंतुलन, मधुमेह, बांझपन, दिल के दौरे और स्ट्रोक की आशंका बढ़ा रहा है। फोर्टिस C-DOC के अध्यक्ष पद्मश्री डॉ. अनूप मिश्रा ने कहा कि एयर पॉल्यूशन केवल पर्यावरणीय मुद्दा नहीं बल्कि फेफड़ों, हृदय और मेटाबॉलिक स्वास्थ्य के लिए सीधा खतरा बन चुका है। उन्होंने बताया कि देश में अस्थमा, हार्ट अटैक, स्ट्रोक और अनियंत्रित मधुमेह के मामलों में तेजी से वृद्धि दर्ज की जा रही है।
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वरिष्ठ न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. कामेश्वर प्रसाद के अनुसार प्रदूषण प्रबंधन की कुंजी विश्वसनीय मापन व्यवस्था है। इसलिए उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों विशेषकर NCR में अधिक गुणवत्ता वाले मॉनिटरिंग स्टेशन तत्काल बढ़ाने की जरूरत है। वहीं, डॉक्टरों ने बताया कि जहरीली हवा लंबे समय में भारत को स्थायी गैर-संचारी रोगों की महामारी की ओर धकेल रही है।
एडवाइजरी में आम घरों के लिए तुरंत अपनाए जा सकने वाले उपाय बताए गए हैं। इनमें बाहर जाने पर N95 मास्क का उपयोग, HEPA एयर प्यूरीफायर, गीले पोछे से सफाई, धूपबत्ती व कॉइल से परहेज, रसोई में वेंटिलेशन व्यवस्था और उच्च AQI वाले दिनों में बच्चों की बाहरी गतिविधियां सीमित करना शामिल हैं।
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विशेषज्ञों ने सरकार से राष्ट्रीय स्तर पर आपातकालीन उपायों की मांग की है। इनमें वायु गुणवत्ता सीमा को कठोर करना, गंभीर प्रदूषण वाले दिनों को स्वास्थ्य आपातकाल घोषित करना, औद्योगिक उत्सर्जन नियंत्रण, निर्माण गतिविधियों से निकलने वाली धूल में कमी, पुराने डीजल वाहनों का चरणबद्ध निष्कासन और इलेक्ट्रिक पब्लिक ट्रांसपोर्ट बढ़ाना शामिल है। साथ ही एक राष्ट्रीय माइक्रोप्लास्टिक मॉनिटरिंग प्रोग्राम शुरू करने की भी मांग की गई है।
डॉक्टरों का कहना है कि जब तक सिस्टम स्तर पर व्यापक बदलाव नहीं किए जाते और राजनीतिक इच्छाशक्ति सामने नहीं आती, तब तक इस स्थिति से निपट पाना संभव नहीं होगा। विशेषज्ञों ने साफ हवा को एक मौलिक मानव अधिकार घोषित करने की मांग करते हुए कहा कि यदि अभी भी सामूहिक कदम नहीं उठाए गए तो भारत को आने वाली पीढ़ियों की सेहत पर स्थायी नुकसान झेलना पड़ सकता है।
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