जी भाईसाहब जी: जैसी होगी बस्ती, वैसा होगा नेताजी के गले का दुपट्टा
MP Politics: बीजेपी मे टिकट वितरण का कौन सा फार्मला लागू होगा यह तो तय नहीं है लेकिन बड़ी संख्या में नेता स्वयं को अलग थलग महसूस कर रहे हैं। इन नेताओं ने अपने लिए दूसरी संभावनाएं तलाशनी शुरू कर दी है। नई पार्टियों के उदय में इन नेताओं को अपना भविष्य नजर आ रहा है दूसरी तरफ नाराज नेताओं को मनाने के लिए बीजेपी ने अंतत: अपने वरिष्ठ नेताओं की शरण में आना पड़ा है।

विधानसभा चुनाव 2023 के लिए राजनीतिक दलों ने कमर कस ली है तो भला नेताजी भी कैसे पीछे रह सकते हैं? नेताजी अपनी पार्टी से टिकट पाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। यदि टिकट कट गया तो दूसरी पार्टी में जाने की संभावना भी बनाए रखी है। किसी पार्टी ने टिकट नहीं दिया तो जातीय समीकरण देख कर निर्दलीय मैदान में कूद जाने से भी गुरेज नहीं करेंगे। मतलब, खेलेंगे नहीं तो खेल बिगाड़ेंगे। पंचायत चुनाव में हम देख भी चुके हैं कि नेताजी रात को किसी और पार्टी में थे। किसी और पार्टी से समर्थन पा कर चुनाव लड़ा और जीतने के बाद किसी ओर पार्टी में चले गए। यही अब विधानसभा चुनाव में भी होगा। नेताओं के गले में अलग अलग पार्टी के दुपट्टे हैं। जैसा अवसर और जैसी मतदाताओं की बस्ती गले में वैसा दुपट्टा आगे कर लेंगे।
नेताओं के अंदाज को देख कर उनका पाला बदलने के आसार समझ आ रहे हैं। चंबल क्षेत्र में ऐसे ही एक नेताजी हैं बीजेपी विधायक संजीव सिंह कुशवाह। जब बीजेपी से टिकट नहीं मिला तो वे 2018 में बसपा से चुनाव लड़ कर जीत गए। दस माह पहले वे फिर बीजेपी में शामिल हो गए हैं। उन्होंने दोनों पार्टियों में अपनी संभावना बनाए रखी है। इसी संभावना को बताता उनका एक फोटो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुआ। इसमें वे बहुजन समाज पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ बैठे नजर आ रहे हैं और उनक गले भगवा के साथ बसपा का दुपट्टा भी है। जब उनसे दो दुपट्टों का राज पूछा गया तो उन्होंने कहा कि हमने पार्टी जरूर बदल ली है लेकिन हमारे लिए भिंड की जनता समान है। अगर वह सम्मान से बसपा का गमछा पहना रही है तो इसमें क्या हर्ज है। मैंने जनता का सम्मान रखा है।
ऐसे ही एक और नेता है बीजेपी विधायक नारायण त्रिपाठी। नारायण त्रिपाठी मैहर क्षेत्र से समाजवादी पार्टी, कांग्रेस और भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं। वे विधानसभा के चार चुनाव जीते हैं और एक लोकसभा चुनाव हारे हैं। विंध्य क्षेत्र में ब्राह्मण और पृथक विंध्य राज्य कर राजनीति करने वाले नारायण त्रिपाठी ने विंध्य जनता पार्टी बना ली है। अभी वे बीजेपी में हैं लेकिन विंध्य जनता पार्टी के जरिए विंध्य क्षेत्र की 30 सीटों पर अपने प्रभाव का उपयोग करना चाहते हैं। पंचायत चुनाव में उनके समर्थकों ने अच्छा प्रदर्शन किया था। उन्हें उम्मीद है कि 30 सीटों पर अच्छा प्रदर्शन कर वे विधानसभा में पॉवर गेम खेल पाएंगे।
ऐसे अनेक विधायक और पूर्व विधायक हैं जो अपनी पार्टी में सुनवाई न होने पर दूसरे दल में जाने को तैयार बैठे हैं। इस तरह अब प्रदेश में अन्य दलों के असंतुष्ट नेताओं के लिए आम आदमी पार्टी, पूर्व आईएएस वरदमूर्ति मिश्रा की वास्तविक भारत पार्टी के बाद अब विंध्य जनता पार्टी नया ठिकाना हो सकता है।
बीजेपी को याद आ गई वो भूली दास्तां
मैदान में जब नए दलों की आमद और नेताओं के पाला बदलने की आशंका बलशाली हो तो सत्ताधारी दल में बेचैनी को समझा जा सकता है। इतने बरस की सत्ता के विरोध में उपजी लहर को जातीय समीकरणों से साधने का जतन किया जा रहा है मगर पार्टी के अंसतुष्ट नेता बड़ी चुनौती बने हुए हैं। 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ आए विधायकों को एडजस्ट करने के लिए बीजेपी ने अपने पुराने और जमीनी नेताओं को किनारे कर दिया है। कई नेता क्षेत्रीय राजनीतिक का शिकार हुए हैं। कुछ नेताओं को उम्र के फार्मूले के कारण मार्गदर्शक मंडल में शामिल कर सक्रिय राजनीति से बाहर कर दिया है कुछ नेता युवाओं को प्राथमिकता देने के कारण बीजेपी की मुख्य धारा से बाहर हो गए।
इस नई कार्यप्रणाली में संगठन ने प्रदेश अध्यक्ष, मंत्री, सांसद, महापौर रहे नेताओं को भी तवज्जो देना बंद कर दी है। सरकार और संगठन की ऐसी कार्यप्रणाली के कारण नाराज नेताओं की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। अब जब पानी सिर ऊपर जाता दिखाई दे रहा है तो युवाओं को मौका देने की नीतियां बनाने वाली बीजेपी को अब अपने भूले बिसरे नेता याद आ गए हैं।
मैदान में खासकर अपने कार्यकर्ताओं व पुराने नेताओं की नाराजगी को दूर करने के लिए चुनाव से पहले बीजेपी ने केंद्रीय मंत्री, राष्ट्रीय पदाधिकारी सहित 14 बड़े नेताओं को मैदान में उतार दिया है। इनमें से कुछ नेता खुद हाशिए पर हैं मगर नई जिम्मेदारी मिलने से उनके राजनीतिक अरमान फिर उड़ान भरने लगे हैं। पार्टी ने इन नेताओं से कहा है कि वे तय जिलों में जा कर निष्क्रिय वरिष्ठ नेताओं से बात करें, उन्हें मैदान में सक्रिय करें तथाा उनसे मिला फीडबैक संगठन तक पहुंचाए। इसी जिम्मेदारी के तहत सोमवार को राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय जबलपुर पहंचे थे। पूर्व मंत्री जयभान सिंह पवैया उज्जैन और केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर इंदौर का दौरा कर चुके हैं। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह को नर्मदापुरम, हरदा, बैतूल, मंडला, डिंडौरी, प्रभात झा को खरगोन, खंडवा, बुरहानपुर, पूर्व महापौर कृष्ण मुरारी मोघे को सागर, दमोह, विदिशा, रायसेन और पूर्व मंत्री माया सिंह को राजगढ़, दतिया, नरसिंहपुर में समन्वय का काम दिया गया है।
पुराने चावल की तरह अनुभवी इन नेताओं के सक्रिय होने से इनकी पीढ़ी के नेताओं को अपनी बात की सुनवाई होने की आस बंध गई है। देखना होगा कि एक अनार सौ बीमार वाली स्थिति से जूझ रही पार्टी कैसे टिकट वितरण का फार्मूला तय करती है।
सुविधा के परिवारवाद पर टिका ज्योतिरादित्य सिंधिया का दावा
यह कोई नया मौका नहीं है कि एमपी बीजेपी में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के विकल्पों पर बात हो रही है। कई मौके आए जब दावों से कहा गया कि शिवराज सिंह चौहान की सत्ता जा रही है मगर एक भी दावा, भविष्यवाणी या आकलन सही साबित नहीं हुआ है। अब तब बीजेपी प्रधानमंत्री मोदी के नाम पर वोट मांगने की रणनीति पर काम शुरू कर चुकी है तो कयास लगाए जाने लगे हैं कि अब शिवराज के बाद कौन? बीजेपी के तमाम वरिष्ठ नेताओं के साथ केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का विकल्प माना जा रहा है।
बीजेपी संगठन में जारी आकलन के अनुसार अभी सिंधिया को सीएम फेस बनाने पर असमंजस है। इसका कारण गद्दारी का आरोप तो हैं परिवारवाद का मुद्दा कमजोर पड़ जाने का डर भी है। ज्योतिरादित्य सिंधिया पर कांग्रेस ने हाल ही में तीखे हमले किए हैं। खुद बीजेपी बरसों उनके और महल की राजनीति के खिलाफ मोर्चा खोले हुए थी। इन आरोपों से मुंह मोड़ना संभव नहीं है।
दूसरा आकलन है कि सिंधिया को सीएम बनाने पर परिवारवाद की राजनीति का बीजेपी का मुद्दा कमजोर हो जाएगा। राजस्थान में उनकी बुआ वसुंधरा राजे, एमपी में दूसरी बुआ यशोधरा राजे की सक्रियता तथा बेटे महाआर्यमन सिंधिया को टिकट देने के कयास। राजस्थान में वसुंधरा राजे का कोई विकल्प पार्टी के पास नहीं है। ऐसे में मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया को आगे करने का मतलब होगा एक परिवार के इर्दगिर्द राजनीति का सिमट जाना। ऐसा हुआ तो बीजेपी कैसे परिवारवाद के मुद्दे पर कांग्रेस को घेर पाएगी? हालांकि, बीजेपी ने अपनी सुविधानुसार परिवारवाद को परिभाषित किया है और कई नेताओं के उत्तराधिकारियों को राजनीति में बढ़ावा दिया है मगर यदि पार्टी की मंशा सिंधिया को आगे नहीं करने की नहीं होगी तो परिवारवाद को उनकी राह रोकने का एक कारण बनाया जाएगा।
चिंता में मध्य प्रदेश के किसान, उनके दर्द की दवा कहां
किसान बड़े मतदाता है और मंदसौर गोलीकांड के बाद 2018 में किसानों ने सत्ता परिवर्तन में बड़ी भूमिका निभाई थी। इसबार फिर बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि के कारण किसानों की फसलें खराब हुई है। बिगड़ी फसल के आकलन में देरी हुई है। जिन किसानों की फसल अच्छी हुई है उन्हें भी ठीक दाम नहीं मिल रहे हैं। कर्ज माफी और फसलों का मुआवजा मुद्दा बना हुआ है। किसान नाराज है और सरकार में सुनवाई हो नहीं रही है। आलम यह है कि इंदौर में एक पखवाड़े में तीन बार किसान सड़क पर उतर चुके हैं। किसानों की नाराजगी का मालवा निमाड़ की सीटों पर सीधा असर होगा। बीजेपी को समझ नहीं है कि किसानों के दर्द की दवा किस तरह की जाए।
इधर, कांग्रेस ने एलान कर दिया है किसानों के मुद्दे पर सरकार को घेरने के लिए आंदोलन करेगी। पूर्व कृषि मंत्री सचिन यादव ने कहा है कि कांग्रेस बीजेपी को दृष्टि पत्र में किए गए वादे याद दिलाएगी। साथ ही कांग्रेस मिशन 2023 के वचन पत्र में गेहूं की समर्थन मूल्य खरीदी को 3000 रुपए करने की तैयारी कर रही है। माना जा रहा है कि किसानों के मुद्दे पर बीजेपी जल्द कोई कदम उठाएगी क्योंकि आदिवासी, महिलाओं और युवाओं के लिए की गई घोषणा जीत के लिए काफी नहीं मानी जा रही है।