दफ्तर दरबारी: शिवराज सिंह के प्रिय आईएएस पर फंदा, खुश है प्रताड़ित हर बंदा
MP Politics: कहते हैं बारह बरस बाद घूरे के दिन भी फिरते हैं। यानी सब दिन एक समान नहीं होते हैं। मध्य प्रदेश के राजनीतिक और प्रशासनिक जगत में भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। जिनका इकबाल कल तक बुलंद था वे आज संकट में हैं। और इनका संकट में होना, दूसरों के लिए खुशी का सबब बन गया है।

समय किसी का भी हो, बदलता जरूर है... यह वाक्य मुश्किल वक्त में दिलासा देने के काम आता है तो किसी को रूआब में देख कर पीड़ित लोग इसी से अपना ढांढस बंधाते हैं। मध्य प्रदेश में भी ऐसा ही कुछ हुआ है। असल में, एक समय में सत्ता के केंद्र तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बेहद विश्वसनीय आईएएस इकबाल सिंह बैंस की मुसीबतें कम नहीं हो रही हैं। उनके प्रभाव का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 2013 के चुनाव के समय तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान केंद्र से उनकी प्रतिनियुक्ति समय से पहले खत्म कर भोपाल लाए थे। तब उन्हें मुख्यमंत्री का प्रमुख सचिव बनाया गया था। तर्क दिया गया था कि वे ही ऐसे काबिल अफसर हैं जो मुख्यमंत्री की मंशा को प्रशासन में क्रियान्वित करवा सकते हैं।
जब 2013 के चुनाव के बाद फिर शिवराज सिंह चौहान सत्ता में लौटे तो उन्होंने इकबाल सिंह बैंस को ही मुख्य सचिव बनाया। 2013 के बाद से 2023 तक इकबाल सिंह बैंस के सितारे बुलंद रहे। बीच में डेढ़ वर्ष के लिए कांग्रेस की सरकार में वे थोड़ा साइड लाइन किए गए लेकिन जमावट के लिहाज से प्रशासन में उनकी तूती बोलती थी। बीजेपी सत्ता में शिवराज शासन के दौरान वे कई मंत्रियों से ज्यादा ताकतवर थे। उनकी जरूरत इतनी पाई गई कि तत्तकालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उन्हें छह-छह माह के लिए दो बार एक्सटेंशन दिलवाया। यानी तय सीमा के बाद भी उन्होंने मुख्य सचिव पद पर एक साल से अधिक समय तक काम किया।
प्रमुख सचिव और मुख्य सचिव के रूप में इकबाल सिंह बैंस अपने व्यवहार के कारण कुख्यात थे। उनका सख्त लहजा तथा प्रशासनिक तौर तरीकों से अन्य कर्मचारी ही नहीं आईएएस भी परेशान और आतंक में रहे हैं। एकतरफा कार्य और निर्णय करने के आदी इकबाल सिंह बैंस पर नौकरी के दौरान ही कई तरह के आरोप लगे लेकिन इन पर कार्रवाई नहीं हो पाई। एक युवा आईएएस नेहा मारव्या का तो आरोप है कि उन्होंने हाईकोर्ट को दी जांच रिपोर्ट में आईएएस बैंस के प्रिय अधिकारी के भ्रष्टाचार की जांच की अनुशंसा कर दी थी इस कारण आईएएस नेहा मारव्या को प्रताडि़त किया गया। उन्हें लूप लाइन में रख अपमानित किया गया। हालांकि, अब नेहा मारव्या का समय बदल गया है और वे कलेक्टर हैं। समय तो उस वक्त के पॉवरफुल सीएस इकबाल सिंह बैंस का भी बदला है। वे जब सत्ता में थे तब लगाए गए आरोप अब शिकायतों और जांच के रूप में उनके लिए परेशानी बन रहे हैं।
पूर्व मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस पर आरोप लगते रहे हैं कि उन्होंने 2017 में अपने चहेते अधिकारी ललित मोहन बेलवाल को वन विभाग से प्रतिनियुक्ति पर लाकर आजीविका मिशन का सीईओ बना दिया था। ललित मोहन बेलवाल 2018 में रिटायर हुए लेकिन जून 2020 में उन्हें संविदा आधार पर पुनः आजीविका मिशन का मुख्य कार्यकारी अधिकारी बना दिया। एक वर्ष के लिए की गई इस नियुक्ति के फौरन बाद बेलवाल ने पोषण आहार बनाने का काम एग्रो इंडस्ट्रीज कॉरपोरेशन से लेकर आजीविका मिशन को दे दिया।
इस काम में दोनों अधिकारियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे। कैग रिपोर्ट से कहा गया कि 2018-19 से लेकर सन 2021-22 तक 481.79 करोड़ का घोटाला हुआ। बार-बार की शिकायत पर लोकायुक्त ने जांच के लिए प्रकरण दर्ज कर लिया है। जांच के बाद आगे की कार्रवाई होगी। हालांकि, इकबाल सिंह बैंस पर कार्रवाई सरकार के रूख पर निर्भर करेगा लेकिन फिलहाल पूर्व आईएएस इकबाल सिंह बैंस और उनके खास अफसर ललित मोहन बेलबाल पर शिकंजा कसने की खबर से ही वे अफसर और कर्मचारी खुश हो गए हैं जो बीते कई सालों से आईएएस इकबाल सिंह बैंस का सख्त रवैया झेल रहे थे। अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे के भाव से ही वे उत्साहित हैं।
कलेक्टर साहब के स्वागत में गोबर और कीचड़
जिले में पदस्थ अफसरों पर एक खास विचारधारा और सत्ता के हित में काम करने का आरोप लगता रहता है। फिर भी कलेक्टर सहित ऐसे अफसरों को सत्ताधारी दल की फटकार भी पड़ती रहती है। ऐसे अफसर विपक्ष के विधायकों और चुने गए जन प्रतिनिधियों के निशाने पर आ जाते हैं। रतलाम कलेक्टर को बीते सप्ताह ऐसी ही चेतावनी का सामना करना पड़ा। सैलाना रतलाम से भारत आदिवासी पार्टी के विधायक कमलेश्वर डोडियार ने आदिवासियों के साथ कलेक्टर कार्यालय पर प्रदर्शन किया।
जिला प्रशासन को 29 समस्याओं की लिस्ट थमाते हुए विधायक कमलेश्वर डोडियार ने अपने भाषण में एक महीने का अल्टीमेटम दिया है। उन्होंने कहा हम अगले महीने फिर आएंगे। इस बार हमने बाहर बैठकर ज्ञापन सौंपा और आवेदन-निवेदन किया है। मांगें पूरी नहीं हुई तो हम सीधे कलेक्टर के चैंबर में जाएंगे। कलेक्टर का चैंबर छोटा है। जब बड़ी संख्या में लोग अंदर घुसेंगे, तो उन्हें पसीना आ जाएगा। उन्होंने कहा कि चाहे माला पहनानी पड़े, गोबर लाना पड़े, या कुछ और, हम लाएंगे। बारिश का समय है, कीचड़ हो जाएगा, तो कीचड़ भी लाएंगे।
माला से लेकर गोबर-किचड़ लाने का संदेश साफ है। कमलेश्वर डोडियार ने अपनी छवि भी आक्रामक नेता की बनाई है। ऐसे में उनका भाषण किसी भी अफसर के लिए चेतावनी की ही तरह है।
क्या आईएएस हैं विकास में अड़ंगा
भोपाल और इंदौर ही नहीं, प्रदेश के कई नगरीय निकायों में विकास कार्य समय से पीछे चल रहे हैं और इस कारण उनकी लागत भी बढ़ रही है। काम में देरी और लागत में वृद्धि के बढ़़ते बोझ का कम करने के लिए नगरीय प्रशासन विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव संजय शुक्ला ने महापौरों को एक पत्र लिखा है। इस पत्र में उन्होंने लिखा कि महापौर परिषयद यानी एमआईसी विकास कार्यों की योजनाओं पर जल्दी निर्णय लें। उन्हें रोक कर न रखे। समय सीमा तय की गई कि महापौर परिषद विकास कार्यों की फाइलों पर दस दिन के अंदर फैसला करें।
उम्मीद की गई थी कि इससे योजनाओं की फाइल अटकने की समस्या से निजात मिलेगी लेकिन हुआ उल्टा। भोपाल महापौर मालती राय ने जवाबी पत्र में कहा है कि महापौर परिषद या महापौर-पार्षद काम नहीं अटकाते हैं। अफसर कामकाज में बाधा बनते हैं। शहरों में विकास कार्य में देरी हो रही है तो इसका कारण राजनीति नहीं अफसर हैं। महापौर ने निगम आयुक्त जैसे आईएएस अफसरों को ही कठघरे में खड़ा कर पूरे प्रदेश की समस्या को सतह पर ला दिया है। असल में कई नगरीय निकायों में अफसरों और जनप्रतिनिधियों के बीच तालमेल का अभाव है। योजनाओं की तैयारी, बजट आदि कार्य अफसरों के अधीन होने से चुने गए महापौर-पार्षद अक्सर अलग-थलग पड़ जाते हैं। इस आपसी खींचतान को एसीएस संजय शुक्ला और महापौर मालती राय के पत्राचार ने सिद्ध कर दिया है।
नेता और एसडीएम की टसल, सड़क पर किरकिरी
शहरों में अतिक्रमण पर अक्सर यह टिप्पणी की जाती है कि नगरीय निकायों की नाक के नीचे अतिक्रमण होता रहता है और अफसर, मैदानी अमला आंख मूंदे बैठा रहता है। आरोप लगते हैं कि अधिकांश अतिक्रमण राजनीतिक प्रश्रय से होते हैं। तो दूसरी तरफ नगरीय निकायों की अतिक्रमण हटाने की मुहिम भी आरोपों के घेरे में होती है। ऐसा ही एक विवाद सड़क पर आ गया जब अफसर और पार्षद ने खुल कर आरोप लगाए। मामला खंडवा का है। वहां अतिक्रमण हटाने पर उस समय विवाद हो गया जब नेता प्रतिपक्ष मुल्लू राठौर और एसडीएम बजरंग बहादुर के बीच तीखी बहस हो गई।
नेता प्रतिपक्ष मुल्लू राठौर के अनुसार, जिस दुकान को तोड़ा जा रहा था, उसके मालिक के पास हाईकोर्ट से स्टे ऑर्डर था। उन्होंने आरोप लगाया कि दुकान का मालिक अल्पसंख्यक समुदाय से है। भूमाफियाओं के साथ मिलकर निगम प्रशासन ने हठधर्मिता पूर्वक दुकान को तोड़ा है। इस दौरान उन्होंने एसडीएम कार्यालय में भ्रष्टाचार होने के आरोप भी लगाए।
जाति और धर्म का मुद्दा उठने और एसडीएम कार्यालय में भ्रष्टाचार के आरोप लगने पर एसडीएम बजरंग बहादुर नाराज हो गए। उन्होंने इसे शासकीय कार्य में बाधा मानते हुए तत्काल नेता प्रतिपक्ष की गिरफ्तारी के निर्देश दे दिए। पुलिस बल उन्हें हिरासत में लेने की प्रक्रिया शुरू की, लेकिन वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के दखल से विवाद टल गया।