जबलपुर: जमतरा पुल का अंत, 97 साल पुरानी विरासत अब बनी इतिहास, ग्रामीणों में फूटा गुस्सा
जबलपुर की ऐतिहासिक धरोहर जमतरा पुल, जो 1927 में बना था और हजारों ग्रामीणों की जीवनरेखा था, अब इतिहास बन गया है। रेलवे ने इसे जर्जर बताकर ध्वस्त कर दिया, जबकि ग्रामीणों ने विरोध किया और जनप्रतिनिधियों से गुहार लगाई।

जबलपुर| जिले की ऐतिहासिक धरोहर और हजारों ग्रामीणों की जीवनरेखा माने जाने वाला जमतरा पुल अब सिर्फ यादों में रह गया है। नर्मदा नदी पर बना यह 97 साल पुराना रेलवे पुल बुधवार को पूरी तरह ढहा दिया गया। दक्षिण-पूर्व-मध्य रेलवे द्वारा पुल को 'जर्जर' घोषित कर नीलामी के जरिये करीब तीन करोड़ रुपये में इसे ध्वस्त कर दिया गया, जबकि ग्रामीणों ने इसका विरोध करते हुए कई स्तरों पर गुहार लगाई।
ब्रिटिश काल में 1927 में निर्मित यह पुल नैरोगेज रेलवे लाइन का हिस्सा था, जिससे जबलपुर, मंडला, नैनपुर और बालाघाट की छोटी लाइन की ट्रेनें चला करती थीं। 2015 में ब्रॉडगेज लाइन बनने के बाद नैरोगेज सेवा बंद हो गई और पटरियां हटा दी गईं, लेकिन पुल बरकरार था। इसके बाद यह पुल स्थानीय लोगों और पर्यटकों के लिए उपयोगी मार्ग और आकर्षण का केंद्र बन गया।
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पुल से होकर रोजाना सैकड़ों ग्रामीण, स्कूली बच्चे और व्यापारी यात्रा करते थे, जिससे उन्हें 25 किलोमीटर की बजाय महज 10 किलोमीटर में शहर पहुंचने की सुविधा मिलती थी। साथ ही, मां नर्मदा के दर्शन और धार्मिक अनुष्ठानों के लिए भी यह स्थान लोकप्रिय था।
हालांकि रेलवे ने इसे जर्जर बताकर तोड़ने की कार्यवाही शुरू की और अंग्रेजी डिजाइन में बने इस मजबूत स्टील पुल को मजदूरों ने एक सप्ताह की मेहनत से काटा। स्थानीय लोगों का दावा है कि इसकी मजबूती हावड़ा ब्रिज के समान थी। बावजूद इसके, ग्रामीणों द्वारा किए गए विरोध, प्रदर्शन और जनप्रतिनिधियों से मदद की अपीलों को नजरअंदाज कर दिया गया।
इस पुल के टूटने से ग्रामीणों की परेशानियाँ कई गुना बढ़ गई हैं। स्कूली बच्चों की पढ़ाई, किसानों और छोटे व्यापारियों की रोज़मर्रा की यात्रा और बीमारों के इलाज की सुविधाएं अब कठिन हो गई हैं क्योंकि उन्हें 25 किलोमीटर लंबा रास्ता तय करना होगा।
जमतरा पुल महज एक ढांचा नहीं था, बल्कि जबलपुर की पहचान, संस्कृति और इतिहास का अहम हिस्सा था। लेकिन प्रशासन की बेरुखी और जनप्रतिनिधियों की चुप्पी के कारण यह विरासत हमेशा के लिए खत्म हो गई।