पूर्व रक्षा मंत्री एंटनी ने कहा, पूर्वी लद्दाख से सेना का पीछे हटना चीन के सामने सरेंडर
A K Antony: कैलाश रेंज पर क़ब्ज़ा छोड़ना भारत का रणनीतिक नुक़सान, हमने फिंगर 8 पर दावा कभी नहीं छोड़ा, फिंगर 4 पर हमारी आर्मी पोस्ट भी है, फिर भला फिंगर 3 तक पीछे हटने को क्यों तैयार हुई सरकार

नई दिल्ली। वरिष्ठ कांग्रेस नेता और देश के पूर्व रक्षा मंत्री ए के एंटनी ने मोदी सरकार पर चीन के आगे घुटने टेकने और देश हित के साथ समझौता करने का गंभीर आरोप लगाया है। एंटनी ने कहा है कि केंद्र सरकार ने पूर्वी लद्दाख में गलवान घाटी और पैंगोंग झील इलाके से भारतीय सैनिकों को पीछे हटाने और बफ़र ज़ोन बनाने की शर्तें मानकर दरअसल चीन के सामने देश हित को सरेंडर करने का काम किया है। हालांकि केंद्र सरकार का कहना है कि सैनिकों को पूर्वी लद्दाख के पैंगोंग झील इलाके से पीछे हटाने को लेकर चीन के साथ हुए समझौते में भारत कहीं भी झुका नहीं है।
एंटनी ने कहा, भारत सरकार ने अभी जो समझौता किया है, उसके बाद चीन की सेनाएँ वहीं पर हैं, जहां वे पहले थीं। लेकिन हम अपनी पोजिशन से पीछे हट गए हैं। हमारे सैनिक पैट्रोल प्वाइंट 14 तक गश्त नहीं लगा सकते। दस महीने इसी तरह बीत गए हैं। इसलिए गलवान वैली में पीछे हटना सरेंडर है। बफ़र ज़ोन बनाना भी देश हित को सरेंडर करना है।
एंटनी ने कहा, हमारे बहादुर सैनिकों ने रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण कैलाश रेंज पर नियंत्रण कर लिया था। यह एक चमत्कारिक और शानदार सफलता थी। लेकिन बातचीत में हमने कैलाश रेंज से भी पीछे हटने की बात मान ली। पैंगोंग लेक इलाक़े में हमारे जवान फ़िगर 8 तक गश्त लगाते रहे हैं। चीन की सेना भी फिंगर 4 तक गश्त लगाती थी। यानी फिंगर 4 से फिंगर 8 तक का इलाक़ा विवादित था, जहां दोनों देशों की सेनाएँ गश्त लगाती थीं। इसकी वजह से कई बार टकराव की स्थिति पैदा होती थी। थोड़ी धक्कामुक्की या बैनर दिखाने जैसी बातें होती थीं। लेकिन भारत ने फिंगर 8 तक अपना दावा कभी छोड़ा नहीं। हमारे लिए एलएसी फिंगर 8 तक ही रही है। लेकिन अब जो समझौता किया गया है, उसमें हमने पहले तो रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण कैलाश रेंज को छोड़ दिया और फिर यह भी मान लिया कि चीन फिंगर 8 तक पीछे हटेंगे और हमारी सेनाएं फिंगर 3 तक वापस आएँगी, जहां हमारा परमानेंट बेस है। रक्षा मंत्री के बयान के मुताबिक़ हमारी सेनाएँ अब फिंगर 3 के पास धन सिंह थापा पोस्ट के परमानेंट बेस पर रहेंगी। हम इस बात को भूल ही गए कि फिंगर 4 पर भी हमारी एक पोस्ट है। आपने इस हक़ीक़त को भुलाकर फिंगर 3 तक पीछे हटने की बात मान ली। यह साफ़-साफ सरेंडर है। इसमें चीन का फ़ायदा है।
एंटनी ने कहा कि कैलाश रेंज पर भारतीय सेना का नियंत्रण बेहद महत्वपूर्ण था, क्योंकि वहां से हमारी सेना यह देख पाती थी कि चीन की तरफ़ क्या हो रहा है। वहाँ हमारी सेना की मौजूदगी चीन के लिए बड़ा ख़तरा था। यह हमारे लिए बड़ा बारगेनिंग प्वाइंट था। हम अपनी इस स्थिति का फ़ायदा उठाकर बातचीत के दौरान चीन से अपनी बात मनवा सकते थे। लेकिन वहाँ से पीछे हटने की बात मानकर हमने वो मौक़ा भी गंवा दिया।
एंटनी ने आरोप लगाया कि गलवान घाटी और पैंगोंग झील के जिन इलाक़ों से भारत ने अपने सैनिकों को पीछे हटाने की बात मान ली, उन पर पारंपरिक रूप से भारत का नियंत्रण रहा है। ऐसे में इन इलाक़ों से पीछे हटना या उन पर अपना दावा छोड़ देना, चीन के आगे आत्मसमर्पण करने जैसा है। उन्होंने याद दिलाया कि 1962 में भी गलवान घाटी के भारतीय क्षेत्र होने पर कोई विवाद नहीं था। पूर्व रक्षामंत्री ने कहा कि सैनिकों को पीछे लाना और बफर जोन बनाना अपनी जमीन को सरेंडर करना है।
एंटनी ने कहा कि सरकार को साफ़ करना चाहिए कि भारत-चीन सीमा पर अरुणाचल प्रदेश से लेकर लद्दाख, सिक्किम, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड तक हर जगह वास्तविक स्थिति क्या है। ख़ास तौर पर पैंगोंग त्सो, गलवान, देपसांग, हॉट स्प्रिंग्स, घोघरा में टकराव से पहले वाली स्थिति बहाल करने के बारे में भारत सरकार की क्या योजना है, ये हम जानना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि हम सरकार से जानना चाहते हैं कि भारत-चीन की पूरी सीमा पर अप्रैल 2020 से पहले वाली स्थिति कब आएगी?
एंटनी ने कहा कि सरकार सैनिकों की इस वापसी और बफर जोन बनाने की अहमियत को समझ नहीं पा रही है। एंटनी ने सरकार को आगाह करते हुए कहा कि बफ़र ज़ोन बनने की वजह से चीन किसी भी समय सियाचिन में पाकिस्तान की मदद करने के लिए ख़ुराफ़ात कर सकता है।
एंटनी ने यह भी कहा कि भारत सीमा पर कई चुनौतियों का सामना कर रहा है और पाकिस्तान और चीन के दो मोर्चों पर एक साथ टकराव वाली स्थिति है, ऐसे में रक्षा बजट में बेहद मामूली और अपर्याप्त बढ़ोतरी करना दरअसल देश के साथ विश्वासघात है। पूर्व रक्षा मंत्री ने कहा कि मोदी सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा को ऐसे समय में पर्याप्त महत्व और प्राथमिकता नहीं दे रही है, जब चीन आक्रामक हो रहा है और पाकिस्तान की ओर से भी आतंकवाद को बढ़ावा देने का काम लगातार जारी है। एंटनी ने कहा कि तनाव कम करने के लिए दोनों देशों के सैनिकों का पीछे हटना अच्छी बात है, लेकिन ऐसा करते समय देश की सुरक्षा से समझौता नहीं किया जाना चाहिए।
पूर्व रक्षा मंत्री ने कहा कि सरकार को देशहित से जुड़े ऐसे फ़ैसले लेने से पहले सभी राजनीतिक दलों से सलाह-मशविरा करना चाहिए और राष्ट्रीय सुरक्षा को ध्यान में रखना चाहिए। उन्होंने यह आरोप भी लगाया कि मोदी सरकार ने चीन का तुष्टिकरण करते हुए रक्षा बजट में पर्याप्त बढ़ोतरी नहीं की। साथ ही सरकार यह संदेश भी देना चाहती थी कि वो संघर्ष नहीं चाहती। उन्होंने कहा कि देश के सशस्त्र बल चीन और पाकिस्तान की ओर से गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। यही वजह है कि बजट आवंटन में ज़्यादा बढ़ोतरी की माँग करते रहे हैं। लेकिन सरकार ने हमारे सशस्त्र बलों की मांग नहीं मानी। सरकार ऐसा करके राष्ट्रीय सुरक्षा पर पर्याप्त ध्यान नहीं दे रही है। यह देश के साथ विश्वासघात है।