भोपाल में फुले फिल्म का ख़ास शो, दिग्विजय सिंह के साथ कांग्रेसजनों ने देखा समाज सुधारक फुले दंपति का संघर्ष
150-200 साल पहले भारत में सामाजिक न्याय, स्त्री शिक्षा और दलितों के आत्मसम्मान के लिए ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले के संघर्ष को दर्शाती यह फिल्म आज भी प्रासंगिक है: दिग्विजय सिंह

भोपाल। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह द्वारा मंगलवार को समाज सुधारक महात्मा ज्योतिबा फुले के जीवन और विचारों पर आधारित फिल्म "फुले" की स्पेशल स्क्रीनिंग का आयोजन किया गया। भोपाल के डीबी मॉल स्थित सिनेप्लेक्स में आयोजित इस स्क्रीनिंग को देखने पीसीसी चीफ जीतू पटवारी, पूर्व नेता प्रतिपक्ष डॉ गोविंद सिंह, पूर्व मंत्री पीसी शर्मा, प्रदेश महिला कांग्रेस की अध्यक्ष विभा पटेल समेत बड़ी संख्या में कांग्रेस कार्यकर्ता, छात्र और समाजसेवी शामिल हुए।
इस मौके पर दिग्विजय सिंह ने कहा कि "फुले दंपत्ति ने उस दौर में सामाजिक न्याय, स्त्री शिक्षा और दलितों के आत्मसम्मान के लिए जो संघर्ष किया, वह आज भी प्रासंगिक है" सिंह ने पार्टी कार्यकर्ताओं और आमजन से अपील की कि वे फुले की विचारधारा को जनता तक पहुँचाएं और सामाजिक समानता के संघर्ष में सक्रिय भूमिका निभाएं।
वहीं, पीसीसी चीफ जीतू पटवारी ने कहा कि आज जब संविधान पर हमले हो रहे हैं और हाशिए के लोगों की अधिकार छीनने की कोशिशें हो रही हैं, तब फुले की चेतना को फिर से खड़ा करना हमारी जिम्मेदारी है। फिल्म की स्क्रीनिंग के बाद कई दर्शकों ने अपने विचार साझा किए और कहा कि यह फिल्म न केवल प्रेरणादायक है बल्कि वर्तमान सामाजिक चुनौतियों को समझने के लिए भी जरूरी है।
मध्य प्रदेश कांग्रेस SC/ST सेल के अध्यक्ष प्रदीप अहिरवार ने कहा कि पहली बार फुले दंपत्ति ने शिक्षा की अलख जगायी और दलितों व महिलाओं के लिए शिक्षा के द्वार खोले। वर्तमान परिस्थितियों में देश में जो सामाजिक न्याय की बात चल रही है उसके बीज भी फुले दंपति ने ही डाले।
बता दें कि फ़िल्म "फुले" महात्मा ज्योतिराव फुले और उनकी पत्नी सावित्रीबाई फुले के जीवन और संघर्ष पर आधारित है। यह फिल्म भारत में जाति और लैंगिक भेदभाव के खिलाफ फुले दंपति के संघर्ष को दिखाती है। फ़िल्म फुले का सन्देश समाज में व्याप्त जातिगत और लैंगिक भेदभाव के खिलाफ एक मजबूत आवाज है। यह फिल्म दर्शकों को यह समझने के लिए प्रेरित करती है कि कैसे ज्योतिबा और सावित्रीबाई फुले ने आज से लगभग डेढ़ सौ साल पहले के समाज को बदलने और आगे ले जाने में महती भूमिका निभायी। स्त्री शिक्षा की बात हो या समाजिक गैर-बराबरी की या फिर विधवा बाल विवाह की, समाज में फैली कुरीतियों के खिलाफ फुले दंपति ने उस दौर में आवाज उठायी जब लोग परंपरा के खिलाफ बोलने से भी डरते थे।
"फुले" फिल्म इस बात पर जोर देती है कि शिक्षा, समाज में बदलाव लाने का सबसे प्रभावी साधन है, खासकर वंचित और दलित वर्गों के लिए। ज्योतिराव और सावित्रीबाई ने लड़कियों और पिछड़ी जातियों के लिए स्कूल खोलकर इसकी मिसाल कायम की। देश की प्रथम महिला शिक्षक सावित्री बाई फुले के जीवन से प्रेरित यह फिल्म महिलाओं की शिक्षा और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने का संदेश देती है। फुले दंपति का जीवन दर्शाता है कि सच्चा सुधार तभी संभव है जब समाज के सबसे हाशिए पर मौजूद लोगों को मुख्यधारा में लाया जाए।
फिल्म यह प्रेरणा देती है कि सामाजिक अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना और शिक्षा के माध्यम से समाज को बदलना हर व्यक्ति का कर्तव्य है। यह आयोजन सिर्फ एक फिल्म का प्रदर्शन नहीं, बल्कि फुले विचारधारा के प्रचार-प्रसार की दिशा में एक अहम राजनीतिक पहल के रूप में भी देखा जा रहा है।