दफ्तर दरबारी: अपराध से रंगे हैं पुलिस के हाथ, पूरे सिस्टम पर ही सवाल
MP Crime: प्रदेश सरकार कोशिश कर रही है कि अपराध कम हो लेकिन प्रदेश में निरंतर अपराध बढ़ते जा रहे है। पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू होने के बाद भी इंदौर-भोपाल में अपराध सबसे ज्यादा हैं। और तो और खुद पुलिस के हाथ अपराधों से रंगे हुए हैं।
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलया कोय।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।
कबीरदास जी का यह दोहा मध्य प्रदेश पुलिस पर उपयुक्त साबित हो सकता है। जिन पुलिस अफसरों और पुलिसकर्मियों पर अपराधों के नियंत्रण का जिम्मा है वे खुद अपराधों में लिप्त हैं। यानी इंदौर-भोपाल जैसे शहरों में पुलिस कमिश्नर प्रणाली जिन अपराधियों के कारण बदनाम हो रही है उनमें पुलिसकर्मी भी हैं। मतलब मध्य पुलिस की भरपूर बदनामी हो रही है और इस बदनामी का कारण खुद पुलिसकर्मी भी हैं।
यह खुलासा विधानसभा में दिए गए एक उत्तर से हुआ। कांग्रेस विधायक बाला बच्चन ने बढ़ते अपराधों पर सवाल पूछा। एमपी के सीएम डॉ. मोहन यादव ही गृहमंत्री भी हैं तो उन्होंने जो बताया वह चौंकाने वाला था। सीएम डॉ. मोहन यादव ने लिखित जवाब में बताया कि बीते दो सालों में प्रदेश में पुलिस अधिकारी-कर्मचारियों पर 164 मामले दर्ज किए गए हैं। इनमें सबसे ज्यादा 25 मामले भोपाल में और 20 मामले ग्वालियर में दर्ज हुए हैं। अभिरक्षा में मौत के एक मामले अलावा अन्य हत्या, चोरी व मारपीट आदि के प्रकरण हैं। बलात्कार और अपहरण के मामलों में इंदौर शहर प्रदेश के सभी जिलों से आगे है। अपहरण के मामले में भोपाल तीसरे स्थान पर है। सर्वाधिक दर्ज अपराधों के मामले में दूसरे नम्बर (19,449) पर इंदौर शहर तथा तीसरे नम्बर पर भोपाल शहर (17,204) है।
अपराधों की बढ़ती संख्या के कारण मध्य प्रदेश पुलिस के साथ ही भोपाल और इंदौर में लागू पुलिस कमिश्नर प्रणाली सवालों से घिर गई है। इस प्रणाली को लागू हुए 4 साल हो गए। यह प्रणाली को लागू करते हुए कहा गया था कि यह प्रणाली अपराधों पर नियंत्रण करेगी और मामलों का निराकरण तेजी से हो सकेगा। आंकड़े बता रहे हैं कि पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू करने के बावजूद बड़े शहरों में अपराधों में नियंत्रण नहीं हो पाया है। सरकार का तर्क है कि जिन जिलों में जनसंख्या ज्यादा है वहां अपराधों की संख्या भी ज्यादा है। तर्क चाहे जो हों, बीते कुछ समय से भोपाल में सार्वजनिक रूप से दबंगई और अपराध के मामलों ने कानून व्यवस्था की पोल खोल दी। अपराधी तो ठीक जब पुलिसकर्मियों पर ही मामले दर्ज होने की संख्या बढ़ रही है तो साफ है कि पुलिस की धमक पहले जैसी कायम नहीं रही।
... और पूर्व मंत्री के दामाद को मिल गया पावर
पूर्व गृहमंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा की शिवराज सरकार में तूती बोलती थी। उनके साथ उनके रिश्तेदारों का भी सिक्का चलता था। विधानसभा चुनाव 2023 हारने के बाद डॉ. नरोत्तम मिश्रा हाशिए पर चले गए। साथ ही उनके करीबी भी परिदृश्य से गायब होते गए। इन लोगों में भोपाल कलेक्टर रहे उनके दामाद आईएएस अविनाश लवानिया भी थे। प्रदेश कैडर के 2009 बैच के आईएएस अधिकारी अविनाश लवानिया को निजाम बदलने के बाद लूप लाइन भेज दिया गया था।
बढ़े दिनों बाद आईएएस अविनाश लवानिया को अब दिल्ली में नया ठिकाना मिल गया है। केंद्र सरकार ने उन्हें प्रतिनियुक्ति पर बुलाते हुए कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय में डायरेक्टर नियुक्त किया है। यह नियुक्ति सेंट्रल स्टाफिंग स्कीम के अंतर्गत पांच साल के लिए की गई है।
यूं तो अधिकारियों को समय-समय पर केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर जाने का मौका मिला है लेकिन आईएएस अविनाश लवानिया को अचानक यह जिम्मेदारीचर्चा का विषय बन गई। अंदरखाने की खबर है कि आईएएस अविनाश लवानिया को नई जिम्मेदारी केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज चौहान की बदौलत मिली है। वे शिवराज सिंह चौहान जिनके मुख्यमंत्री रहते हुए अविनाश लवानिया को भोपाल का कलेक्टर बनाया गया था। यानी संकट में पुराने संबंध ही काम आए और सरकार के संकट मोचक कहे जाने वाले तत्कालीन गृहमंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा के करीबियों को संकट से उबारने में शिवराज सिंह चौहान की सहमति काम आई।
आईएएस खुद मैदान में, मजबूरी या मजबूती?
सरकार की छवि चमकाने का जिम्मा जिस जनसंपर्क विभाग के पास है इनदिनों उसी विभाग की छवि अंदरूनी विवादों के चलते धूमिल हो रही है। बीते दिनों एक फैसले से जनसंपर्क विभाग में भूचाल आ गया। भोपाल स्थित मुख्यालय से लेकर समस्त जिलों के जनसंपर्क अधिकारी और कर्मचारी कलमबंद हड़ताल पर चले गए हैं। हड़ताल का कारण विभागीय पदों पर प्रशासनिक सेवा और राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों को नियुक्त करने का निर्णय था। सरकार की ओर से जारी होने वाले प्रेसनोट और खबरों का प्रसारण रूक गया। मुख्यालय के बाहर एकत्रित जनसंपर्क अधिकारियों ने प्रदर्शन किया।
बात बिगड़ती देख जनसंपर्क आयुक्त आईएएस दीपक सक्सेना तुरंत सक्रिय हुए। बंद कमरे की बैठक के बाद राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी गणेश जायसवाल की नियुक्ति का आदेश फिलहाल रोक दिया गया। खबर है कि राज्य सरकार ने ऐसे तीन अधिकारियों की नियुक्ति की योजना बनाई है। अभी तो मामला शांत है लेकिन अपने योजना की किरकिरी होते देख जनसंपर्क आयुक्त आईएएस दीपक सक्सेना ने एक समानांतर तंत्र विकसित करने की तैयारी कर ली। प्रेस नोट, कवरेज, फोटो रिलीज आदि की व्यस्था जनसंपर्क अधिकारियों और कर्मचारियों के जिम्मे हैं। वे ही सारे संपर्क सूत्र संभालते हैं।
अब जनसंपर्क आयुक्त इस सिस्टम के समानांतर अपना अलग नेटवर्क तैयार कर रहे हैं। वे व्हाटस ग्रुप बना कर पत्रकारों को जोड़ रहे हैं तथा आग्रह कर रहे हैं कि पत्रकार अपने साथियों को इन ग्रुप को जॉयन करने के लिए प्रेरित करें। यानी भविष्य में कभी ऐसी कोई स्थिति बन जाए तो जनसंपर्क आयुक्त खुद अपने नेटवर्क का उपयोग कर खबरों को जारी करने तथा सूचनाओं के आदान-प्रदान का काम कर लेंगे। वे अपनी मजबूरी को मजबूत सिस्टम से ढंक देना चाहते हैं।
हर फ्रेंड जरूरी होता है... प्रतिनियुक्ति खत्म हो कैसे?
शिक्षा विभाग, पुलिस, स्वास्थ्य, नगरीय प्रशासन या आदिम जाति कल्याण विभाग। मध्य प्रदेश सरकार का ऐसा कोई विभाग नहीं है जहां या जहां से कर्मचारी-अधिकारी मनचाही जगह पर प्रतिनियुक्ति पर न गए हों। सरकार का प्रावधान है कि आवश्यकता और योग्यता होने पर एक से दूसरे विभाग में प्रतिनियुक्ति पर कर्मचारी को भेजा जा सकता है। आमतौर पर प्रतिनियुक्ति की अवधि विभागवार 2 से 5 वर्ष की है। लेकिन मनचाही जगह, पद और कार्य पाने के लिए हजारों कर्मचारी अपने मूल विभाग का काम छोड़ कर दूसरे विभाग में जमे हुए हैं। सरकार हर साल प्रतिनियुक्ति खत्म करने के आदेश निकालती है लेकिन जो अफसर जमा है वह और मजबूती से पद पर जम जाता है।
अब विधानसभा के शीतकालीन सत्र में नगरीय प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने कहा है कि प्रभाव बनाकर प्रतिनियुक्ति पर आए अधिकारियों को वापस भेजा जाएगा। बीजेपी के विधायक बृजबिहारी पटेरिया ने कहा, नगर निगम भोपाल को चारागाह बना दिया गया है। यहां दूसरे विभाग के अधिकारी आकर आदेश जारी कर रहे हैं। पशुपालन विभाग में पदस्थ अधिकारी पीपी सिंह द्वारा आदेश जारी किया जा रहा है। अधिकारी प्रतिनियुक्ति पर हैं और मनमानी कर रहे हैं। इसके जवाब में मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि जो लोग प्रतिनियुक्ति पर हैं, उन्हें वापस भेजने के लिए विभाग को कहा है। गड़बड़ी के मामले में सख्त कार्रवाई की जाएगी। विधायकों ने आरोप लगाया कि जब वे विधानसभा में प्रश्न लगाते हैं तब अधिकारी को हटा दिया जाता है और विधानसभा खत्म होने के बाद अफसर फिर अपने पद पर लौट आते हैं।
मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने कहा जरूर है कि जरूरत न होने पर अफसर को मूल विभाग में भेज दिया जाएगा लेकिन यह जरूरत विभाग तय नहीं करते। यह तो अधिकारी खुद तय करता है और अपने प्रभाव से पद पा लेता है। इन्हें सरकार चाह कर हटा भी नहीं पाती क्योंकि जब अफसर किसी का रिश्तेदार, आर्थिक मामलों में प्रभावी हो तो काम नहीं ‘फ्रेंड’ जरूरी हो जाता है।




