15 महीने के संघर्ष के बाद गांव की ओर निकला किसानों का कारवां, जगह-जगह भव्य स्वागत कर रहे लोग

15 महीने चली लड़ाई को जीतकर घर को निकले किसान, विजय मार्च के दौरान बंटी मिठाईयां, हाइवे के किनारे जहां से निकल रहा किसानों का काफिला फूल बरसा रहे देशवासी, भावुक करने वाला नजारा

Updated: Dec 11, 2021, 12:31 PM IST

नई दिल्ली। दिल्ली के सिंघु और टिकरी बॉर्डर पर 15 महीनों से संघर्ष कर रहे किसानों ने आज अपने डेरे को खाली कर दिया है। सुबह से ही सिंघु बॉर्डर का नजारा भावुक कर देने वाला था। आंदोलनकारी किसान अपनी गृहस्थी समेट रहे थे, तंबू उखाड़ रहे थे, ट्रैक्टर पर लोडिंग हो रही थी, कारवां तैयार हो रहा था।

किसानों के चेहरे पर जीत की खुशी साफ देखी जा सकती थी, लेकिन इन 15 महीनों में उन्हें जो झेलना पड़ा इस विशाल दुख के अनुभव को भी उन्होंने शायद समेट लिया था। सिंघु बॉर्डर पर किसानों ने पहले अरदास की, फिर सुबह का नाश्ता किया और अपने गांवों की ओर बढ़ चले। टीकरी बॉर्डर पर सुबह से युवाओं ने डीजे लगा दिया था, ताकि किसान अपनी जीत का जश्न मना सकें। 

गांवों से आए युवाओं ने यहां किसानों के बीच मिठाईयां बांटी और उनके साथ नाचकर जश्न मनाया। टीकरी बॉर्डर फतह मार्च भी निकाला गया। इस जश्न के बीच किसान आखिरकार जब गांव की ओर निकले तो लोगों ने दिल खोलकर उनका स्वागत किया। ट्रैक्टर-ट्रॉली या पैदल जा रहे किसानों पर जगह-जगह फूल बरसाए जा रहे हैं। ट्रैक्टरों पर घर जाने वाले किसानों को बधाई देने के लिए हाइवे के किनारे विशेष व्यवस्था की गई है।

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फतेहाबाद में दिल्ली से लौटने वाले किसानों का ढोल-नगाड़ों के साथ नाचते-गाते और फूल बरसाकर स्वागत किया गया। किसानों के स्वागत में देसी घी की जलेबियां बनाई गई थी। किसान मोर्चा के नेताओं ने बताया की दिल्ली से जबतक किसानों का आखिरी जत्था और आखिरी ट्रैक्टर लौट नहीं जाता तब तक, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश आदि इलाकों में किसानों का स्वागत कार्यक्रम जारी रहेगा। 

पंजाब के फरीदकोट में शादी जैसा माहौल है। लोगों का कहना है कि 15 महीनों बाद खुशी का ये माहौल आया है। यहां गांव की महिलाओं ने रात को पूरे गांव में घूम घूम कर पंजाबी रिवाज से जागो निकाला, गिद्दा के गीत गाए और खुशी मनाई। किसानों ने कहा कि ऐसा लग रहा है जैसे हमारी शादी हो रही है। उधर जींद पटियाला में भी नेशनल हाइवे पर महिलाएं नाचती दिखीं। 

किसानों के लिए यह जीत इसलिए बेहद खुशी लेकर आया है क्योंकि आंदोलन को दौरान उन्हें कभी आतंकी तो कभी खालिस्तानी तो कभी टुकड़े-टुकड़े गैंग और न जाने क्या क्या संबोधनों से पुकारा गया। लेकिन ठंड, गर्मी और बरसात सहकर वे सत्याग्रह पर डटे रहे। आज जब उनकी संघर्ष रंग लाई है तो जश्न लाजमी है।