शहडोल में 16 हज़ार से ज्यादा बच्चे कुपोषित, क्या कर रही है शिवराज सरकार

स्वास्थ्य मंत्री के साथ भोपाल से अफसरों की टीम गई है, लेकिन आरोप लग रहे हैं कि मौत के असली कारणों को छिपाने की कोशिश हो रही है

Updated: Dec 08, 2020, 05:01 PM IST

Photo Courtesy: Financial Express
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भोपाल। मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल इलाके शहडोल में लगातार 16 मासूम बच्चों की मौतों के बाद अब जिले में बड़ी संख्या में बच्चों के कुपोषित होने की बात भी सामने आ रही है। खबर है कि शहडोल में 16,314 बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। इनमें से 1328 कुपोषित बच्चों की सेहत काफी नाज़ुक स्थिति में है। ये आंकड़े बता रहे हैं कि शहडोल में स्वास्थ्य और पोषण से जु़ड़ी सरकारी योजनाओं पर ठीक से अमल नहीं हो रहा है।

महिला बाल विकास के आंकड़ों के अनुसार जिले में सबसे ज्यादा बुढ़ार में कुपोषित बच्चे हैं। यहां से सबसे ज्यादा बच्चों को रैफर किया जाता है। इनमें अनूपपुर ओर उमरिया के आंकड़ों को जोड़ लिया जाए तो इस इलाके में कुपोषित बच्चों की तादाद 30 हजार के पार पहुंच सकती है।

शहडोल के ही एक स्थानीय निवासी ने दैनिक भास्कर को बताया कि आंगनवाड़ी केंद्रों पर मिलने वाली फ्री खिचड़ी और सोया बर्फी के पैकेटों से बैच नंबर और उत्पादन की तारीख तक गायब रहती है। कुपोषण के दंश ने किस तरह से लोगों को प्रभावित कर रखा है, इसका दर्द उमरिया की निवासी सुनीता बताती हैं। सुनीता के तीन बच्चों में से दो गंभीर रूप से कुपोषण के शिकार हो चुके हैं।

पहले बच्चों की मौत और फिर उनके बढ़ते कुपोषण के आंकड़ों की वजह से राज्य सरकार और प्रशासन पर सवाल उठने शुरू हो गए हैं। बच्चों की मौतों का आंकड़ा बढ़ गया तब जा कर सरकार की नींद खुली। सोमवार को स्वास्थ्य मंत्री प्रभुराम चौधरी एनएचआरएम की टीम के साथ भोपाल से शहडोल पहुंचे। पूरी टीम ने लगभग 106 गांवों का सर्वे किया तो और भी कुपोषित बच्चे मिले। हालात इतने खराब हैं कि भोपाल से खुद स्वास्थ्य मंत्री और अफसरों की टीम के शहडोल पहुंचने के बावजूद बच्चों की मौत की असली वजह छिपाए जाने के आरोप लग रहे हैं।

गौर करने की बात यह है कि राज्य सरकार हर साल कुपोषण मिटाने पर 1497 करोड़ रुपए खर्च करती है। अब सवाल यह उठता है कि अगर कुपोषण को मिटाने के लिए वाकई इतनी बड़ी रकम खर्च होती है तो आखिर इतनी खराब हालत की वजह क्या है? लॉकडाउन के बाद आंगनवाड़ियों में बच्चों का आना कम हो गया है। ऐसे में आजीविका मिशन ओर आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के जरिए बच्चों के घरों तक आहार पहुंचाने का इंतज़ाम किया जाना चाहिए था, जैसा कि छत्तीसगढ़ की सरकार ने किया है। लेकिन मध्य प्रदेश में हालत ये है कि तमाम आंगनवाड़ी केंद्रों पर ताले पड़े हुए हैं।