दफ्तर दरबारी: सीएम शिवराज सिंह ने अपने प्रिय अफसरों से ले ली विदाई
MP Election 2023: चुनावी सभाओं में फिर से बहुमत पाने से दावा कर रहे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का एक संवाद इन दिनों चर्चा में है। अपने प्रिय अफसरों से हुई इस औपचारिक मुलाकात में सीएम शिवराज सिंह ने ऐसा कुछ कह दिया कि लोग इसे विदाई मुलाकात मान रहे हैं।

बीजेपी नेताओं खासकर सीएम शिवराज सिंह चौहान द्वारा चुनावी सभाओं में जीत के दावे किए जा रहे हैं। कांग्रेस की जीत की संभावना बताने वाले विभिन्न सर्वे को नकारा जा रहा है। मगर एक बैठक में हुआ संवाद हार की आहट माना रहा है। हुआ यूं कि मंगलवार को कैबिनेट के वक्त मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपर मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव सहित विभागाध्यक्षों से औपचारिक बैठक की।
अपने भाषण में मुख्यमंत्री ने सरकार के कामकाज को गिनाया तथा सहयोग के लिए अफसरों को धन्यवाद दिया। अफसरों के प्रति आभार जताते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने यह भी कह दिया कि अफसर ध्यान रखें कि आचार संहिता के दौरान सरकार की जनहित की योजनाएं जारी रहें। गरीबों के काम नहीं रूकें। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का यह अंदाज चर्चा का विषय बन गया। माना गया कि सीएम का यह भाषण सार्वजनिक रूप से विदाई भाषण की तरह ही था।
इसकी वजह भी है। मुख्यमंत्री चौहान ने अपने प्रिय अफसरों से यह जब यह बात की उसके एक दिन पहले ही बीजेपी ने एक बड़ा राजनीतिक निर्णय लिया था। ऐसा राजनीतिक निर्णय मध्य प्रदेश के राजनीतिक इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ था। यह पहली बार होगा जब केंद्रीय मंत्री, केंद्रीय पदाधिकारी और सांसद नरेंद्र सिंह तोमर, कैलाश विजयवर्गीय, प्रहलाद पटेल जैसे नेता विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं। ये सभी नेता सीएम पद के दावेदार हैं। इसलिए इस तर्क में दम है कि बीजेपी में मुख्यमंत्री के रूप में शिवराज सिंह चौहान की विदाई की स्क्रिप्ट लिख दी गई है। इसी योजना के तहत बीजेपी ने इस बार शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री के रूप में प्रस्तुत भी नहीं किया है। यही कारण है कि अफसरों के साथ चर्चा में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान चुनावी मोड में जरूर रहे लेकिन उनके स्वर में विदाई का भाव दिखाई दिया।
कलेक्टर के अकाउंट से सरकार के घोटाले की पोस्ट
चुनावी सभाओं में घोषणाएं करने के लिए खजाने का मुंह खोल चुके मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कर्मचारियों की मांगें पूरी करने के लिए भी कई घोषणाएं की हैं। राज्य के कर्मचारियों को केंद्र के समान 42 फीसदी महंगाई भत्ता, संविदा कर्मचारियों की प्रतिवर्ष अनुबंध की प्रक्रिया समाप्त करने, कोटवारों व अतिथि शिक्षकों का मानदेय दोगुना करने जैसी घोषणाएं प्रमुख है। मगर कर्मचारियों की नाराजगी ऐसी है कि आंदोलन खत्म नहीं हो रहे हैं। एक माह से जारी पटवारियों की हड़ताल को खत्म करवाने के लिए सरकार को सख्ती करनी पड़ी।
बीजेपी सरकार से नाराजगी का ही परिणाम है कि सड़क पर उतरे कर्मचारी अब सोशल मीडिया पर भी सरकार को कोस रहे हैं। ऐसा ही एक मामला बैतूल में आया जहां कलेक्टोरेट के ऑफिशियल हैंडल से सरकार के घोटालों पर एक पोस्ट की गई। समीक्षा सिंह नामक व्यक्ति की एक पोस्ट को जिला कलेक्टर के ‘एक्स’ अकाउंट से रिपोस्ट किया गया। इस पोस्ट में एक पोस्टर शेयर किया गया था जिसमें 86 हजार करोड़ रुपये के घोटाले के आरोप का जिक्र करते हुए कहा गया था कि जनता इस बार सरकार को हटा देगी।
मामला साइबर पुलिस तक पहुंचा, इस ‘एक्स’ (ट्विटर) अकाउंट को संभालने वाले कर्मचारी की सेवाएं समाप्त कर दी गई मगर मुद्दा तो कायम है। कर्मचारी घोषणाओं से संतुष्ट नहीं है। वे सरकार के घोटालों से भी नाराज हैं और विरोध का कोई भी कदम उठाने से गुरेज नहीं कर रहे हैं फिर भले ही कलेक्टर के अकाउंट से सरकार विरोधी पोस्ट शेयर ही क्यों न करना पड़े।
चुनाव लड़ने के इरादों का क्या होगा
बीजेपी की दूसरी सूची में कद्दावर नेताओं के नाम देख कर बीजेपी से चुनाव लड़ने के इच्छुक अफसरों के मंसूबों पर ठंडा पानी पड़ गया है। टिकट को लेकर बीजेपी-कांग्रेस की प्रक्रियाओं को देखते हुए चुनाव लड़ने के ख्वाब देख रहे प्रदेश के करीब डेढ़ दर्जन अफसरों के पास प्रमुख दलों के अलावा तीसरे दलों सहित एक दर्जन विकल्प हैं।
प्रदेश के कई वर्तमान तथा रिटायर्ड अफसर बीजेपी से ही टिकट पाने की उम्मीद में थे। पहली सूची में जिस तरह जज और डॉक्टर को टिकट मिला था, यह उम्मीद बढ़ भी गई थी लेकिन दूसरी सूची ने तो जैसे धमाका कर दिया और इस धमाके के चुनाव लड़ने के अफसरों के अरमानों के परखच्चे उड़ गए। अब तो बीजेपी के कद्दावर नेताओं को भी भरोसा नहीं है कि उन्हें टिकट मिलेगा तो अफसर किस उम्मीद में रहें?
यही कारण है कि अपनी जमीन पक्की मान रहे अफसर अब कांग्रेस के अलावा सपा, आम आदमी पार्टी सहित निर्दलीय चुनाव लड़ने जैसे विकल्पों को टटोल रहे हैं। हसरत केवल एक ही है चुनाव लड़ना, पार्टी, विचारधारा, चाहे कोई हो, कोई फर्क नहीं पड़ता है। हालांकि, राजनीतिक दलों से टिकट पाने की आखिरी कोशिश कर रहे अफसरों को उनके चाहने वाले सलाह दे रहे हैं कि छोटे दलों में जाने से अच्छा है विचारधारा पर दृढ़ रहा जाए और ठौर बदलने से अच्छा है मूल पार्टी के साथ खड़ा रहा जाए।
वायु सेना एक हफ्ते से अभ्यास कर रही थी और भोपाल पुलिस आराम
जनता की तकलीफ से किसे फर्क पड़ता है, शासन-प्रशासन तो तब जागता है जब वीआईपी को जरा भी कष्ट पहुंचता है। भोपाल में ऐसा ही शनिवार की सुबह भी हुआ। एयर फोर्स अपने स्थापना दिवस पर एयर फोर्स शो की तैयारी के क्रम में बीते आठ दिनों से अभ्यास कर रही थी। लेकिन भोपाल पुलिस सुस्ताती रही। शनिवार सुबह जब दर्शकों की भीड़ जुट गई तो फिक्स बैरिकैड्स लगा कर रास्ता रोकने वाली यातायात पुलिस के हाथ पैर फुल गए।
हर बार की तरह यातायात पुलिस के हाथ से व्यवस्था निकल गई और पुलिसकर्मी सड़क किनारे खड़े हो कर असहाय दर्शक बन गए। जबकि सभी को पता था कि इस ऐतिहासिक शो में बड़ी संख्या में दर्शक जुटने वाले हैं। चार दिन से जब वायुसेना रिहर्सल कर रही थी तब भोपाल पुलिस केवल रूट डायवर्ट करने की औपचारिकता करने में जुटी थी। मुख्य शो के पहले तीन दिनों में जब वायुसेना प्रदर्शन का अभ्यास कर रही थी तब भोपाल की यातायात पुलिस को भी ट्रैफिक संभालने की रिहर्सल कर लेनी थी। लेकिन इतनी सजग कहां हमारी पुलिस? उसे तो पता है कि मेट्रो, फ्लाइ ओवर, कोलार रोड़ निर्माण जैसे बड़े कामों के कारण शहर के अधिकांश हिस्सों में जाम लगना आम बात है।
पीएम, गृहमंत्री जैसे बड़े नेताओं के शहर में आगमन के दौरान तो मुख्य मार्ग पर जाम की स्थिति विकट होती है। नेताओं के आवाजाही वाले मार्ग पर लोग घरों में कैद रहने को मजबूर हो जाते हैं। ऐसे में कुछ घंटे और शहर की यातायात व्यवस्था चरमरा भी जाए तो क्या फर्क पड़ता है? कितना अच्छा होता कि लोग जाम और अव्यवस्था का शिकार नहीं होते और बेहतर एयर शो की यादें लेकर लौटे लोग भोपाल पुलिस को उसकी व्यवस्था के लिए याद करते।