दफ्तर दरबारी: क्यों सीएम डॉ. मोहन यादव को बदनाम कर रही है एमपी पुलिस
MP News: ऐसा क्यों हो रहा है कि मोहन सरकार की पुलिस धैर्य खो रही है। मुख्यमंत्री के जन्मदिन पर भोपाल में पत्रकार के खिलाफ कार्रवाई के बाद अब भिंड में पत्रकारों की पिटाई के कारण पुलिस ने अपने गृहमंत्री यानी डॉ. मोहन यादव और डीजीपी कैलाश मकवाना के नेतृत्व को ही सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया है।

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव हर संभव सुशासन की मिसाल स्थापित करने का प्रयास कर रहे हैं लेकिन अफसरशाही अपने मुखिया के मंसूबों पर पानी फेर रही हैं। ताजा मामला भिंड का है। स्थानीय पत्रकारों का आरोप है कि भिंड जिले के एसपी डॉ. असित यादव को पुलिस के खिलाफ खबरें लिखना और प्रसारित करना नागवार गुजरा। एसपी ने लगभग आधा दर्जन पत्रकारों को चाय पर बुलाया और फिर उनको अपने चैंबर में चप्पलों से पिटवाया।
विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस पर एमपी पुलिस द्वारा पत्रकारों के साथ की गई मारपीट खबरों में रही। पत्रकारों का आरोप है कि उन्हें सिर्फ इसलिए पीटा गया क्योंकि उन्होंने पुलिस के खिलाफ अवैध रेत खनन और वसूली की खबरें प्रकाशित की थीं। इस घटना के बाद से पत्रकारों में डर का माहौल है। कई पत्रकारों ने तो भिंड जिला ही छोड़ दिया है। पत्रकारों ने भोपाल आ कर उच्च अधिकारियों से मुलाकात की है।
पुलिस के इस बर्ताव पर तीखी प्रतिक्रिया हुई है। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी ने कहा है कि कई पत्रकारों को चप्पलों से पीटवाना क्या भाजपा शासित मध्यप्रदेश में "नया लोकतंत्र" है? खनन माफियाओं को लेकर सवाल पूछने पर अगर पत्रकारों को पुलिस थाने में चप्पलों से पीटा जाता है, तो आम जनता की क्या बिसात बचती है? क्या सीएम डॉ. मोहन यादव इस घटना पर कार्रवाई करेंगे या चुप्पी साधकर यह संदेश देंगे कि माफियाओं के संरक्षण में पुलिस की गुंडागर्दी आपकी सरकार में फल-फूल रही है?
आईपीएस डॉ. असित यादव 2016 में पुलिस हिरासत में आरएसएस कार्यकर्ता की मौत के मामले में बालाघाट एसपी के पद से हटाए गए थे। अब पत्रकारों की पिटाई और माफिया को संरक्षण के आरोपों से घिर हैं। ऐसा क्यों हो रहा है कि मोहन सरकार की पुलिस धैर्य खो रही है। मुख्यमंत्री के जन्मदिन पर भोपाल में पत्रकार के खिलाफ कार्रवाई के बाद अब भिंड में पत्रकारों की पिटाई के कारण पुलिस ने अपने गृहमंत्री यानी डॉ. मोहन यादव और डीजीपी कैलाश मकवाना के कुशल नेतृत्व को ही सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया है।
भोपाल यौन शोषण मामले में शॉर्ट एनकाउंटर पुलिस की राहत
बिल्ली के भाग्य से छींका टूटने वाली कहावत इनदिनों भोपाल पुलिस पर सटीक रूप से लागू होती है। कॉलेज की छात्राओं के यौन उत्पीड़न, कृत्यों का फिल्मांकन, पीड़ितों को नशीला पदार्थ देना, ब्लैकमेल करना और धर्म परिवर्तन जैसे मामले में पुलिस की भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं। आरोप है कि जिस मामले में 100 से अधिक लड़कियों को प्रभावित किया है उस पूरे प्रकरण की आरंभिक शिकायतों पर पुलिस लापरवाह बनी रही।
खबरें बताती हैं कि बीजेपी से जुड़े संगठनों के पदाधिकारियों के परिवार की बच्चियों की शिकायत पर दबाव में कार्रवाई हुई तो मामला बढ़ता गया। गुपचुप तरीके से की गई शिकायत उजागर हुई तो होश उड़ गए। इस मामले ने सांप्रदायिक रंग ले लिया है। पीड़ितों पर धर्म परिवर्तन के दबाव के आरोप और धाराओं के बाद हिंदू महिलाओं ने न्याय की मांग करते हुए विरोध प्रदर्शन किया। पुलिस की किरकिरी हो रही थी कि भाग्य ने साथ दिया।
शुक्रवार रात को एक आरोपी फरहान को एक अन्य संदिग्ध के ठिकाने की पुष्टि तथा साक्ष्य एकत्र करने के लिए ले जाया जा रहा था। जब अशोका गार्डन पुलिस थाने की टीम उसे घटनास्थल पर ले जा रही थी तब फरहान ने वाहन रोकने का अनुरोध किया और कहा कि उसे शौच जाना है। सरवर गांव के पास रुकने पर सब-इंस्पेक्टर फरहान के साथ उतरा। फरहान ने अधिकारी की सर्विस रिवॉल्वर छीनने का प्रयास किया। इस दौरान हुई झड़प में बंदूक चल गई और आरोपी के पैर में गोली लग गई।
मुख्य आरोपी फरहान को शॉर्ट एनकाउंटर पर प्रतिक्रिया में सहकारिता, खेल और युवा कल्याण मंत्री विश्वास कैलाश सारंग ने कहा कि उसे पैर में नहीं छाती में गोली मारनी थी। इस शॉर्ट एनकाउंटर ने पुलिस के लिए राहत का काम किया। इसे पुलिस का पराक्रम मान कर निंदा के बदले उसकी तारीफ होने लगी।
पराली जलाने को मजबूर किसान, असहाय प्रशासन
प्रशासन चाहे तो क्या नहीं कर सकता? लेकिन किसानों के परानी जलाने के मामले में जिला प्रशासन एकदम असहाय हो गया है। यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि पराली जलाने के मामले में मध्यप्रदेश देश में नंबर वन है। एमपी पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार 1 से 24 अप्रैल 2025 के बीच प्रदेश में आग की 83,659 घटनाएं दर्ज की गई हैं। इनमें से 90 प्रतिशत पराली जलाने के मामले हैं। भोपाल संभाग 20 हजार से ज्यादा मामलों के साथ टॉप पर है। पराली जलाने से प्रदूषण ही नहीं फैल रहा बल्कि आग लग रही है। जंगल जल रहे हैं। मवेशी और इंसान भी चपेट में आ रहे हैं। विदिश में नौ घर जल कर खाक हो गए तो उज्जैन के नागदा में रेलवे ट्रेक के पास तक आग पहुंच गई। सतना में बवंडर में फंसी महिला की जल कर मौत हो गई।
ऐसे मामलों को देखते हुए सरकार ने पराली जलाने पर रोक लगाने के साथ कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। जिलों में कलेक्टर जुर्माना के साथ ही एफआईआर तक की कार्रवाई कर रहे है। इसके बावजूद पराली जलाने के मामले कम नहीं हो रहे है। मोहन यादव सरकार ने 1 मई से नया नियम लागू किया है जिसके अनुसार नरवाई जलाई तो सीएम किसान कल्याण योजना का लाभ नहीं मिलेगा और साथ ही साथ ऐसे किसानों से फसल भी नहीं खरीदी जाएगी। इसके बाद भी पराली जलाने पर लगाम नहीं लग रही है।
किसानों की मजबूरी यह है कि हार्वेस्टर वाले धान की नीचे से कटाई नहीं करते हैं। हाथ से फसल काटना लगभग बंद हो गया है। शासन की सख्ती प्रशासन के क्रियान्वयन में नहीं आ रही है और यह असहायता हादसों को जन्म दे रही है। बेहतर है प्रशासन प्रतिबंधों की जगह नवाचारी उपाय पर फोकस करे।
तबादलों की बेला करेगी अफसरों की मुराद पूरी
प्रदेश में तबादलों से प्रतिबंध हट गया है। सरकार की तबादला नीति जारी हो गई है। संभावना है कि छोटे कर्मचारियों के साथ ही प्रदेश के आईएएस और आईपीएस अधिकारियों की तबादला सूची भी जल्द जारी होगी। जबलपुर कमिश्नर अभय कुमार वर्मा 30 अप्रैल को रिटायर हो गए हैं। वहां अभी नए अधिकारी की पोस्टिंग किया जाना बाकी है, वहीं इसी माह 31 मई को दतिया कलेक्टर संदीप कुमार मॉकिन और 30 जून को सागर संभागायुक्त वीरेंद्र सिंह रावत भी रिटायर हो जाएंगे। इनके सहित कुछ और संभागों में कमिश्नर बदल जाएंगे। कुछ जिलों में कलेक्टरों को तीन वर्ष का समय हो गया है। 9 जिला कलेक्टर, दो नगर निगम आयुक्त के अतिरिक्त कुछ निगम बोर्ड के प्रबंध संचालकों के तबादले भी संभावित हैं।
मोहन सरकार इसी माह कुछ अपर मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव और सचिव स्तर के अफसरों के दायित्व भी बदल सकती है। आईपीएस अफसरों की तबादला सूची का लंबे समय से इंतजार है। पीएचक्यू काफी पहले गृह विभाग को प्रस्ताव भेज चुका है। सीएम की हरी झंडी मिलते ही अधिकारियों के तबादले किए जा सकते हैं। इस कवायद के बीच अफसरों की मुराद है कि वे मनचाही पोस्टिंग पा जाएं। इसके लिए वे हर संभव जगह माथा टेक रहे हैं।