जी भाईसाहब जी: गढ़ ग्वालियर से बेदखल ज्योतिरादित्य सिंधिया

MP Politics: ग्‍वालियार की राजनीति में महल यानी सिंधिया घराने का महत्‍व सभी जानते हैं। मगर इनदिनों ग्‍वालियर में महल की राजनीतिक का चेहरा बदला हुआ है। कभी सारे सूत्र अपने हाथ में रखने वाले कर्ताधर्ता अब किनारे-किनारे की राजनीति कर रहे हैं। यह मजबूरी है या राजनीति का अपना कोई पैंतरा?

Updated: Feb 19, 2025, 08:18 AM IST

केंद्रीय मंत्री ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया
केंद्रीय मंत्री ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया

महल से संचालित होने वाली ग्‍वालियर की राजनीति में यह चौंकाने वाली खबर है कि केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने गढ़ कहे जाने वाले ग्वालियर की राजनीति से ‘बेदखल’ हैं। यह दूरी उन्‍होंने स्‍वयं बनाई है या दूरी बनाने पर मजबूर कर दिया गया है यह ग्‍वालियर की राजनीतिक के त्रिकोण का हिस्‍सा है। ग्‍वालियर में बीजेपी की राजनीति में यह त्रिकोण कांग्रेस छोड़ कर आए नेताओं के कारण बना है। 

2020 में ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया के साथ कांग्रेस नेताओं के बीजेपी में आ जाने के कारण मूल बीजेपी नेताओं में असंतोष घर कर गया है। जिन नेताओं ने महल यानी सिंधिया घराने के विरोध में पूरा जीवन खपा दिया अब वे सिंधिया और उनके समर्थकों के साथ एक जाजम पर बैठ रहे हैं। कांग्रेस से आए नेताओं को बीजेपी में मिल रही तवज्‍जो बीजेपी के मूल नेताओं में असंतोष बढ़ा रही है। यही कारण है कि ग्‍वालियर में ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया की सक्रियता कम से कम होती जा रही है। 

बीते दिनों उन्होंने अपने संसदीय क्षेत्र गुना में जन सुनवाई की लेकिन ग्वालियर में उनकी उपस्थिति औपचारिक ही है। इसकी वजह बीजेपी सांसद भारत सिंह कुशवाहा से उनकी पटरी नहीं बैठना है। वे पहले ग्‍वालियर के विकास कार्यों का निरीक्षण किया करते थे। अधिकारियों के साथ बैठक भी किया करते थे लेकिन लोकसभा चुनाव के बाद से सांसद भारत सिंह कुशवाह से उनकी खटपट सतह पर आई हैं उन्‍होंने दूरी बना ली है। साफ दिखाई दे रहा है कि वे अब ग्वालियर संसदीय क्षेत्र के विकास कार्यों में शामिल नहीं हो रहे हैं। जीवाजी विश्वविद्यालय में महाराज जीवाजी राव सिंधिया की प्रतिमा के अनावरण समारोह अनबन खुलकर नजर आई। ज्‍योति‍रादित्‍य सिंधिया के मार्गदर्शन में हुए इस कार्यक्रम में सारे नेताओं को बुलाया गया लेकिन सांसद भारत सिंह कुशवाह को दूर रखा था। 

इसी तरह विजयपुर उपचुनाव में भी केंद्रीय मंत्री ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया का चुनाव प्रचार करने नहीं जाना एक बड़ा मुद्दा बना था। प्रदेश संगठन ने कहा था कि बुलाने के बाद भी सिंधिया नहीं आए। इस मामले पर छिड़ा बयान युद्ध हाईकमान के निर्देश के बाद ही थमा था। कुल मिला कर माजरा यह है कि केंद्रीय नेतृत्‍व के कारण सिंधिया की जगह बनी हुई है अन्‍यथा स्‍थानीय राजनेताओं ने ज्‍योतिदित्‍य सिंधिया को लोकल पॉलिटिक्‍स से ‘बेदखल’ कर रखा है। 

जीतू पटवारी का सीएम मोहन यादव को समर्थन! 

यह पढ़ कर आप  चौंक सकते हैं कि कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी ने सीएम डॉ. मोहन यादव का समर्थन किया है। यह समर्थन सियासी नहीं है बल्कि प्रदेश की आर्थिक सेहत के लिए किया गया है मामला ग्लोबल इन्वेस्टर समिट का है। जीतू पटवारी ने कहा कि हम जीआईएएस के पक्ष में हैं लेकिन...। उनके इस लेकिन में ही पूरा मुद्दा छिपा हुआ है। 

जीतू पटवारी की यह राय सही प्रतीत होती है कि निवेश से ही प्रदेश का आर्थिक विकास संभव है। किसी भी सरकार का उद्देश्य प्रदेश के युवाओं को रोजगार देना और प्रदेश की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ बनाना होना चाहिए। इस दृष्टि से, निवेश आकर्षित करना एक महत्वपूर्ण पहल है। यह भी महत्वपूर्ण है कि सिर्फ एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर करने से विकास नहीं होगा। ऐसी इंवेस्‍टर्स समिट व्‍यर्थ है जब तक कि प्रस्‍तावों को धरातल पर नहीं उतारा जाता है। जीतू पटवारी ने याद दिलाया कि पिछले इन्वेस्टर समिट में जो वादे किए गए थे, वे आज तक अधूरे हैं। कई उद्योगों की घोषणाएं की गईं, लेकिन ज़्यादातर या तो शुरू ही नहीं हो पाईं या फिर अधर में लटकी रहीं।

जीतू पटवारी की यह बात महत्‍वपूर्ण है क्‍योंकि शिवराज सिंह चौहान सरकार में 7 इंवेस्‍टर्स समिट का आयोजन हुआ है। जनवरी 2023 में हुई सातर्वी इंवेस्‍टर्स समिट के समापन पर तत्‍कालीन मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बताया था कि निवेशकों ने राज्य में 15 लाख 44 हजार 550 करोड़ रुपये के निवेश की इच्छा जताई थी। यह अभी धुंध में ही है कि इसमें से कितना निवेश आया है। विपक्ष बार-बार निवेश पर श्‍वेत पत्र लाने और धरातल पर हुए काम को उजागर करने की मांग करता रहा है। इस बार भी सरकार एक दर्जन से ज्‍यादा निवेश अनुकूल नीतियां प्रस्‍तुत कर रही है। इसीलिए जीतू पटवारी ने इस उम्‍मीद से समर्थन की बात कही है कि निवेश प्रस्‍तावों से आगे जा कर प्रदेश में वास्‍तव में निवेश हो और रोजगार बढ़ें। यह आयोजन भी सिर्फ एक इवेंट बन कर न रह जाए। 

उपनेता प्रतिपक्ष हेमंत कटारे पर केस का कितना असर 

इसे संयोग मानिए या रणनीतिक दांव कि आईएसबीटी पर स्थित पेट्रोल पंप जमीन आवंटन मामले में ईओडब्ल्यू ने उपनेता प्रतिपक्ष हेमंत कटारे उनके भाई, पत्नी, मां सहित दो अफसरों पर केस दर्ज किया है। कांग्रेस इसे संयोग मानने के लिए तैयार नहीं हैं। उसका कहना है कि हेमंत कटारे परिवहन घोटाले में पूर्व परिवहन मंत्री भूपेंद्र सिह की घेराबंदी कर रहे थे। उनका यह काम सरकार को नागवार गुजरा और दबाव बनाने के लिए कटारे और उनके परिवार के खिलाफ मामला दर्ज किया गया। 

उप नेता प्रतिपक्ष हेमंत कटारे पर एफआईआर दर्ज होने पर स्‍थानीय नेताओं ने तो प्रतिक्रिया दी ही है पूर्व केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश ने बीजेपी सरकार पर हमला बोला है। जयराम रमेश ने सोशल साइट एक्‍स पर लिखा कि अजब-गजब मध्य प्रदेश भाजपा सरकार, नर्सिंग घोटाले और परिवहन घोटाले का खुलासा करने वाले उपनेता प्रतिपक्ष हेमंत सत्यदेव कटारे पर फर्जी मुकदमा दर्ज, लेकिन घोटाले में शामिल एक आरक्षक जिसकी 100 करोड़ से अधिक संपत्ति मिली, इस प्रकरण में भाजपा के मंत्री एवं किसी भी अफसर पर कोई एफआईआर नहीं, कोई कार्रवाई नहीं।

विपक्षी नेताओं और कार्यकर्ताओं पर मामले दर्ज कर राजनीतिक दबाव बनाना अब आम बात हो गई है। उप नेता प्रतिपक्ष हेमंत कटारे और परिवार पर केस दर्ज करना भी ऐसा ही कदम माना जा रहा है। कटारे पर किया गया यह केस कांग्रेस के लिए एकजुट हो कर सरकार को खासकर भ्रष्टाचार के मुद्दे पर घेरने का मौका हो सकता है। 

हरीश चौधरी के आने से कांग्रेस को उम्मीद

पुनर्जीवित होने के लिए कांग्रेस के पास एक अवसर और आया है। यह मौका है नए प्रभारी का आना। कांग्रेस पार्टी ने भंवर जितेंद्र सिंह की जगह अब राजस्थान के पूर्व मंत्री हरीश चौधरी को मध्य प्रदेश का प्रभारी बनाया है। भंवर जितेंद्र को विधानसभा चुनाव के बाद प्रदेश कांग्रेस का प्रभार सौंपा गया था। लगभग 13 माह बाद ही उन्‍हें हटा दिया गया है। इसके पहले जेपी अग्रवाल, रणदीप सुरजेवाला और मुकुल वासनिक प्रभारी बनाए गए थे लेकिन उनका कार्यकाल भी लंबा नहीं चला। 

इन चार प्रदेश प्रभारियों के पहले मोहन प्रकाश और दीपक बाबरिया प्रभारी रहे हैं जिन्‍हें ज्यादा समय का कार्यकाल मिला है। दीपक बाबरिया ने संगठन को सशक्‍त बनाने के लिए कड़ा परिश्रम किया था। उसके बाद ही कांग्रेस ने बीजेपी को हरा कर सत्ता में वापसी की थी। अप्रैल 2018 में कमलनाथ मध्‍य प्रदेश कांग्रेस के अध्‍यक्ष बनाए गए थे। तब से लेकर दिसंबर 2023 तक मोहन प्रकाश, दीपक बावरिया, मुकुल वासनिक, जेपी अग्रवाल और फिर रणदीप सुरजेवाला को मध्यप्रदेश कांग्रेस का प्रभारी बना गया था। दिसंबर 2023 के विधानसभा चुनाव के बाद कमलनाथ के बदले जीतू पटवारी प्रदेश अध्‍यक्ष बनाए गए। संगठन ने रणदीप सुरजेवाला की जगह भंवर जितेंद्र को प्रभारी बना कर भेजा था। अब हरीश चौधरी को प्रभार दिया गया है। 

केंद्रीय नेतृत्‍व ने प्रदेश संगठन को सुदृढ़ करने की अपनी योजना के अनुसार प्रभारी बदला है। भंवर जितेंद्र के कार्यकाल में पार्टी ने मैदानी उपस्थिति तो जरूर दिखाई लेकिन  प्रदेश कांग्रेस कार्यकारिणी के गठन को लेकर की गई उनकी घोषणाएं कभी पूरी नहीं हो सकीं। उनके फैसलों से स्‍थानीय नेतृत्‍व सहमत नहीं दिखा। 

अब हरीश चौधरी के आने से कांग्रेस के मैदानी और संगठनात्‍मक मुद्दों के हल होने की उम्‍मीद है। इस उम्‍मीद पर खरे उतरना प्रभारी महासचिव हरीश चौधरी के लिए चुनौती है। प्रदेश कांग्रेस को ऐसा प्रभारी चाहिए जो प्रदेश संगठन के कार्यों में बराबरी का साथ दे कर संगठन को मजबूत करने का काम करें। सरकार को घेरने के साथ मैदान में संगठन को बीजेपी के समान ताकतवर और सक्रिय बनाए रखने के लिए योजनाबद्ध ढंग से कार्य करना होगा। इसके लिए प्रभारी को समन्‍वय और संतुलन की राजनीति के साथ कार्यकर्ताओं में विश्‍वास बढ़ाने के जतन करने होंगे। लड़ाई आसान नहीं है और इस मुश्किल संघर्ष के लिए उतना ही मजबूत राजनीतिक कौशल और करिश्‍मे की दरकार है। कार्यकर्ता अपने नए प्रभारी की ओर इसी उम्‍मीद में देख रहे हैं।