जी भाईसाहब जी: राजनीति की पिच पर कैलाश विजयवर्गीय बोल्‍ड, ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया को वॉक ओवर

MP Politics: एमपी बीजेपी की राजनीति में इस बार भी अपनों पर सितम, गैरों पर करम का सिलसिला जारी रहा है। कैलाश विजयवर्गीय जैसे नेता टफ बॉल खेल रहे हैं जबकि ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया खेमा वॉक ओवर पा रहा है।  

Updated: Aug 13, 2024, 05:47 PM IST

मुख्‍यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने विभागों के बंटवारे में तो मंत्रियों के कद का ध्‍यान रखा था लेकिन जिलों का प्रभार देते समय कद्दावर नेताओं को जैसे उनका स्‍थान दिखाते हुए छोटे जिले दे दिए गए हैं। इंदौर को यदि मुख्‍यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने स्‍वयं अपने पास रखा है लेकिन बीते आठ माह के कार्यकाल में अपने वर्चस्‍व और कद के कारण स्‍वत: ही नंबर दो क्रम के मंत्री बन गए नगरीय प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय को बड़ा जिला नहीं दिया गया है। उन्‍हें भोपाल, ग्‍वालियर या जबलपुर का प्रभारी मंत्री बनाया जा सकता था लेकिन बड़े जिलों के बदले उन्‍हें धार और सतना का प्रभारी मंत्री बनाया गया है। दोनों आदिवासी जिले हैं। कैलाश विजयवर्गीय इनसे बड़े जिलों का प्रभार का कौशल रखते हैं। 

उनकी तुलना में ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया के समर्थक मंत्रियों के प्रभार को देखें तो स्थिति साफ होती है। सिंधिया के संसदीय क्षेत्र के जिलों गुना व शिवपुरी में उनके समर्थक मंत्रियों गोविंद सिंह राजपूत तथा प्रद्यूम्‍न सिंह तोमर को प्रभारी बनाया गया है। जबकि जल संसाधन मंत्री तुलसी सिलावट को सिंधिया के गृहनगर ग्‍वालियर का प्रभार सौंपा गया है।

प्रभारी मंत्री जिलों में विकास कार्यों से लेकर तमाम राजनीतिक-प्रशासनिक गतिविधियों का सूत्रधार होता है। सिंधिया के क्षेत्र में उनके अलावा किसी ओर का दखल नहीं होगा। मुख्‍यमंत्री मोहन यादव ने पार्टी में सिंधिया समर्थकों के प्रति फैली नाराजगी को दरकिनार कर दिया है। 

एक दौर था जब बीजेपी और कांग्रेस में रहते हुए ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया और कैलाश विजयवर्गीय में एमपी क्रिकेट में वर्चस्‍व को लेकर संघर्ष होता था। वह दौर तो खत्‍म हुआ लेकिन लगता है अब केंद्रीय मंत्री ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया राजनीति की पिच पर कैलाश विजयवर्गीय पर भारी पड़ रहे हैं। 

दल बदलू नहीं, 100 फीसदी भाजपाई ही चाहिए... 

बाहरी नेताओं को ‘मलाई’ मिलने से बीजेपी में फैल रही नाराजगी का असर जब तब सतह पर आ ही जाता है। कभी पूर्व मंत्री अजय विश्‍नोई तो कभी बुजुर्ग नेता रघुनंद शर्मा पार्टी की रीति-नीतियों पर सवाल उठाते रहे हैं। इस बार छिंदवाड़ा से पहली बार सांसद चुने गए विवेक बंटी साहू ने मोर्चा खोला है। 

अपने संसदीय क्षेत्र में आयोजित एक कार्यक्रम में आक्रामक लहजे में सांसद विवेक साहू ने कहा है कि अब केंद्र और राज्य में हमारी सरकार है। उन्हीं की चलेगी जो 100 परसेंट भाजपाई है, 50 परसेंट वाले नेताओं की नहीं चलेगी। 

यह वही छिंदवाड़ा है जहां लोकसभा चुनाव के पहले बीजेपी ने थोक में कांग्रेस कार्यकर्ताओं और नेताओं को पार्टी की सदस्‍यता दिलाई थी। अब सांसद ऐसा कह रहे हैं तो इसका सीधा मतलब है कि बीजेपी में कांग्रेस से आयातीत नेताओं को वैसी जगह नहीं मिलेगी। 

सांसद विवेक साहू का यह कमेंट असल में मैदान में दिखाई भी दे रहा है। अमरवाड़ा कांग्रेस छोड़ कर आए कमलेश शाह अब बीजेपी के टिकट पर अमरवाड़ा से विधायक चुने गए हैं। कांग्रेस से ही बीजेपी में आए रामनिवास रावत के साथ ही कमलेश शाह को भी मंत्री बनाने की तैयारी थी लेकिन पार्टी नेताओं की नाराजगी के बाद कमलेश शाह को मंत्री बनाने का फैसला रोक दिया गया। अब सांसद विवेक साहू का कहना पार्टी के लिए चेतावनी जैसा है। 

अब किसके हिस्‍से आएगी पदों की रेवड़ियां

संगठन के विस्‍तार की दृष्टि से नए कार्यकर्ता बनाना तथा विपक्ष के नेताओं को तोड़ कर अपनी पार्टी में ले लाना राजनीतिक बाजी की एक बड़ी चाल हो सकती है लेकिन बीजेपी के बड़े नेताओं की अपनी पीड़ा है। 2020 में कमलनाथ सरकार गिरने के बाद कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ 22 कांग्रेसी विधायक भाजपा में आ गए थे। उपचुनाव में इन्‍हीं नेताओं को बीजेपी ने टिकट दिए। जो जीत गए वे मंत्री बने और जो हार गए उन्‍हें निगम और मंडल में अध्यक्ष बनाकर मंत्री का दर्जा दे दिया गया था। इमरती देवी, रघुराज कंसाना, गिर्राज दंडोतिया, रणवीर जाटव, जसवंत जाटव, मुन्ना लाल गोयल, प्रदीप जायसवाल, प्रद्युम्न सिंह लोधी और राहुल लोधी जैसे कांग्रेस छोड़ कर बीजेपी में आए नेताओं को कुर्सी मिल गई जबकि बीजेपी के कई वरिष्‍ठ नेता खाली हाथ रह गए थे। 

बीजेपी इतने नेता हो गए कि पार्टी के जनाधार वाले कुछ नेताओं को टिकट नहीं मिला। जिन्‍हें टिकट मिला उन्‍हें मंत्री पद नहीं मिला। मंत्री बन गए तो विभाग का संकट। अब पार्टी ने अंदरूनी नाराजगी दूर करने के लिए निगम, मंडलों, सहकारी बैंकों आदि संस्‍थानों में नियुक्ति की आस है।विधानसभा और लोकसभा चुनाव के बाद से ही असंतुष्‍ट नेताओं को पुनर्वास का आश्वासन दिया गया था। अब इस बात पर विचार हो रहा है कि जिन नेताओं को मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया है, उन्हें भी निगम-मंडल में समायोजित किया जा सके। यह संकेत मिलते ही पद के आकांक्षी नेताओं की सिंहासन परिक्रमा शुरू हो गई है। कोशिश यही है कि रेवड़ियां बंटे तो उनके हिस्‍से में भी आएं। ऐसा न हो कि मेहनत वे करें और मलाई कोई और खा जाए। 

कांग्रेस को विवादों की नहीं, सक्रियता की जरूरत 

एक तरफ जहां बीजेपी अपने ही नेताओं में वर्चस्‍व का संघर्ष देख रही है तो बतौर विपक्ष कांग्रेस को निरंतर सक्रियता की जरूरत है। आक्रामक विधायक रहे जीतू पटवारी को उनकी सक्रियता और तेवर के कारण ही प्रदेश अध्‍यक्ष बनाया गया था। लोकसभा चुनावों के परिणमा जो भी रहे हों लेकिन कांग्रेस के युवा नेताओं ने विधानसभा के अंदर और बाहर विरोध प्रदर्शन सहित सरकार की नीतियों के खिलाफ एकजुटता दिखाई है। 

कमरा बैठकों के साथ ही सड़क पर आयोजन हो रहे हैं लेकिन इन आयोजनों के समानांतर ही विवादों के साये भी हैं। कांग्रेस के नेताओं की त्रुटियों पर बीजेपी के नेता खासकर प्रवक्‍ता तोबड़तोड़ हमले करते हैं और घेर लेते हैं। इस राजनीतिक शह माह से अलग कांग्रेस के सामने चुनौती है कि वह बतौर विपक्ष निरंतर सक्रियता बनाए रखे।

यह सक्रियता आगामी नगरीय निकाय और पंचायत उपचुनाव के लिहाज से भी आवश्‍यक है। पंचायत चुनाव में 5344 पंच, 34 सरपंच और 4 जनपद सदस्यों के लिए उपचुनाव होंगे। इसके साथ ही 13 नगरीय निकायों में 13 पार्षदों के पद के लिए भी चुनाव होंगे। अगले एक माह जारी रहने वाली इस चुनाव प्रक्रिया में अच्‍छा प्रदर्शन कांग्रेस का मनोबल बढ़ाने में सहायक होगा।