जी भाईसाहब जी: बीजेपी में पावर वायरस, शिकार हो गए सीएम मोहन यादव
MP Politics: बीजेपी में एक खास तरह का वायरस जड़े जमा रहा है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव जाने-अनजाने में ही इस वायरस का शिकार हो गए हैं। दो ताकतवरों की लड़ाई में अब स्थिति ऐसी है कि मामले को न उगलते बन रहा है और न निगलते।

एमपी बीजेपी में वर्चस्व की राजनीति का वायरस तेजी से फैल रहा है। प्रदेश के हर क्षेत्र में बड़े नेताओं के बीच यह वायरस फैल चुका है और अब तो यह वायरस मुखिया को भी चपेट में ले रहा है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव जाने-अनजाने इस वायरस का शिकार हुए हैं और अब स्थिति ऐसी है कि मामले को न उगलते बन रहा है और न निगलते।
मुख्यमंत्री मोहन यादव बीते दिनों खाद्य मंत्री गोविंद राजपूत के सुरखी विधानसभा के जैसीनगर में एक कार्यक्रम में पहुंचे थे। मंत्री गोविंद सिंह राजपूत के भाई जिला पंचायत अध्यक्ष हीरा सिंह राजपूत ने जैसीनगर का नाम बदल जय शिव नगर करने की मांग की। आदत के मुताबिक मांग स्वीकार करते हुए सीएम मोहन यादव ने नाम बदलने का ऐलान कर दिया। उन्होंने कहा कि आप प्रस्ताव भेजिए, हम जय शिव नगर कर देंगे।
इसके दो दिन बाद भूपेंद्र सिंह समर्थक कहे जाने वाले क्षत्रिय नेताओं ने सागर कलेक्ट्रेट में पहुंचकर विरोध में ज्ञापन दे दिया। उन्होंने कहा है कि राजा जयसिंह के नाम पर जैसीनगर का नाम है। नाम बदलना राजा जयसिंह का अपमान है। दांगी समाज ने भी मुख्यमंत्री की घोषणा का विरोध कर दिया।
इसके बाद खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री गोविंद राजपूत ने एक कार्यक्रम में पूर्व गृहमंत्री व खुरई विधायक भूपेंद्र सिंह का नाम लिए बगैर कहा, "अभी 'जैसीनगर' का नाम बदलकर 'जयशिव नगर' करने का प्रस्ताव गया भी नहीं और 'उनके पेट में चूहा काटने लगे'। विरोध करने अपने लोग, भतीजों और कांग्रेस के चार- पांच लोगों को भेज दिया ज्ञापन देने। बोल रहे हैं कि जयशिव नगर बन गया है, जैसीनगर जयशिव नगर बन गया तो 'हमारे राजाओं का अपमान' हो रहा है। भैया अपनो घर देखो, हमाए जैसीनगर पर पथरा ने फेंको। तुम्हें जो बनाने सो जाओ तुम्हाओ घर है, तुम्हाई विधानसभा है सो उते करो।"
गोविंद सिंह ने तो राजा जयसिंह की मूर्ति लगाने की घोषणा भी कर दी। अभी भूपेंद्र सिंह की प्रतिक्रिया नहीं आई है लेकिन क्षत्रिय महासभा ने कहा है कि वह भोपाल तक विरोध प्रदर्शन करेगी। राजनीतिक वर्चस्व के लिए पिछले कई माह से आमने-सामने आए दो नेताओं की लड़ाई में मुख्यमंत्री की घोषणा उलझ गई है। बुंदेलखंड में नेताओं के बीच वर्चस्व का ऐसा ही संघर्ष कुछ माह पहले भी उजागर हुआ था जब सीएम मोहन यादव की उपस्थिति में उपेक्षा से नाराज पूर्वमंत्री भूपेंद्र सिंह और गोपाल भार्गव मंच छोड़ कर चले गए थे।
तब मुख्यमंत्री मोहन यादव ने रंजिश भूलाने की सलाह दी थी लेकिन अब तो उनकी घोषणा फांस की तरह अटक गई है। यह कम राजनीतिक संकट नहीं है कि क्षेत्रीय विधायक एवं खाद्य मंत्री गोविंद सिंह राजपूत की जिद को तवज्जो दी जाए या भूपेंद्र सिंह समर्थक क्षत्रिय सभा की बात मानी जाए। शह मात का यह खेल दिलचस्प हो गया है।
हाथियों की लड़ाई में कमजोर संगठन देखे दिल्ली की ओर
कहावत मशहूर है कि दो सांडों की लड़ाई में बागड़ का नुकसान। कुछ ऐसा ही हाल हो रहा है एमपी बीजेपी का। एक समय देश में बीजेपी का सबसे मजबूत और आत्मनिर्भर संगठन कही जाने वाली एमपी बीजेपी अब सबसे कमजोर संगठन में शुमार हो रही है। यह आकलन पार्टी के अंदरूनी झगड़ों पर पार्टी के निर्णयों को देख कर किया जा रहा है। केवल सागर ही नहीं बल्कि पूरे बुंदेलखंड, ग्वालियर-चंबल, मालवा, विंध्य क्षेत्र में बीजेपी के ताकतवर नेताओं की लड़ाई पर एक्शन लेने की जगह संगठन चुप्पी साधे हुए है।
सागर में खाद्य मंत्री गोविंद सिंह राजपूत और पूर्व गृहमंत्री भूपेंद्र सिंह के बीच लंबे समय से तलवारें खिंची हुई है। ग्वालियर में केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को तवज्जो देना कई बीजेपी नेताओं को राज नहीं आया लेकिन अब तो सिंधिया और विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर के बीच सीधी लड़ाई देखने को मिल रही है। सागर शहर में विधायक शैलेंद्र जैन और महापौर संगीत सुशील तिवारी के बीच झगड़ा कई बार आम हो चुका है। महापौर संगीता सुशील तिवारी दशहरा आयोजन में शामिल नहीं हुई। उन्होंने कहा कि किसी के कहने पर निगमायुक्त ने उनका अपमान किया है। विंध्य में ब्राह्मण नेताओं के रूप में उप मुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ल, विधायक रीति पाठक और सिद्यार्थ तिवारी के बीच का विवाद कई बार सतह पर आ चुका है। इंदौर में विधायक बंटे हुए हैं। वे मंत्री कैलाश विजयर्गीय के आमंत्रण पर भी एक साथ नहीं आए थे।
बीजेपी के टिकट पर सबसे ज्यादा चुनाव जीतने वाले नेता पूर्व मंत्री गोपाल भार्गव ने सागर में जारी विवाद पर दु:ख जताते हुए कहा है कि बात किसी से छिपी नहीं है। संगठन को इस बारे में कुछ करना चाहिए। गोपाल भार्गव सच ही कह रहे हैं। वे भी जानते हैं कि इनदिनों बीजेपी का संगठन पंगु है। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा ने ऐसे मामलों पर नेताओं को तलब भी किया लेकिन वर्तमान अध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल बड़े नेताओं के मामले में जूनियर की तरह बर्ताव कर रहे हैं। एक समय सारे अधिकार अपने पास रखने वाला बीजेपी संगठन अब हर बात पर दिल्ली की ओर देख रहा है। सभी को इंतजार है कि बुंदेलखंड और ग्वालियर में जारी आपसी वर्चस्व की लड़ाई में दिल्ली ही कुछ बोले।
रेस्टोरेंट पर छापे वाले मंत्री जी जहरीली दवा पर चुप
मध्य प्रदेश में आजकल जिसे जो करना है वह काम न कर दूसरे के काम में दखल दे रहा है और यह पहले को नागवार गुजर रही है। ऐसा ही कुछ स्वास्थ्य राज्य मंत्री नरेंद्र शिवाजी पटेल को लेकर कहा जा रहा है। छिंदवाड़ा और बैतूल जिले में जहरीले कफ सिरप 'कोल्ड्रिफ' से अब तक 16 बच्चों की जान जा चुकी है। एक माह बाद दोषी को खोजने का काम हुआ लेकिन इस पूरे मामले पर स्वास्थ्य राज्य मंत्री नरेंद्र शिवाजी पटेल गायब ही रहे। जबकि बीते कुछ माह में उनकी छवि छापे वाले मंत्री की बन गई थी।
उन्हें याद दिलाया जा रहा है कि जब बेटे को एक मारपीट के मामले में पुलिस ने पकड़ा था तब वे थाने में धरने पर बैठ गए थे। ग्वालियर में जब एक रेस्टोरेंट में उन्हें पहचाना नहीं गया और वीआईपी आवभगत नहीं हुई तो मंत्री जी नाराज हो गए। उन्होंने फूड सेफ्टी विभाग की टीम को मौके पर बुला लिया और रात करीब 11.15 बजे तक सैंपल कलेक्ट करवाए। इतना ही नहीं वे अपने क्षेत्र में अवैध खनन को रोकने के लिए दल-बल के साथ सड़क पर उतरे थे तथा गाड़ियों को पकड़वाया था। लेकिन जब विभाग का मामला आया और खुद उनके प्रभार वाले जिले बैतूल में बच्चों की मौत हुई तो वे कहीं दिखाई नहीं दे रहे हैं।
उनके इस बर्ताव पर प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता भूपेंद्र सिंह ने तंज कसा है कि बेटे को बचाने धरने पर बैठने वाले मंत्री जी के विभाग की नाकामी के चलते बच्चों की मौत हुई तो वे परिजन से मिलने तक नहीं पहुंचे। यहां तक मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव भी पीडि़तों से मिल आए मगर स्वास्थ्य राज्यमंत्री नरेंद्र शिवाजी पटेल ने चूक कर दी।
बहनें पैसा तो ले रही है मगर साथ नहीं दे रही हैं
2023 के विधानसभा चुनाव में लाड़ली बहना योजना को गेमचेंजर माना गया था। इस एक योजना ने सरकार विरोधी लहर को खत्म कर दिया था। लेकिन यह योजना सरकार के खजाने पर बोझ बनती जा रही है। इसे चलाए रखने के लिए सरकार हर दूसरे-तीसरे माह कर्ज ले रही है। एक तरफ कर्ज का बोझ तो दूसरी तरफ बीजेपी विधायक की तकलीफ यह है कि पैसा ले कर भी बहनें सीएम मोहन यादव के कार्यक्रमों में नहीं आती हैं।
यह निष्कर्ष कमरे में नहीं निकाला गया बल्कि विदिशा जिले के कुरवाई से बीजेपी विधायक हरि सिंह सप्रे ने सार्वजनिक रूप से यह का है। मुख्यमंत्री की यात्रा के पहले जनता के बीच पहुंचे विधायक हरि सिंह सप्रे ने कहा कि सरकार फ्री फंड का पैसा बांट रही है। यह पैसा पाने के लिए बहनों ने कोई आंदोलन नहीं किया नहीं था। पैसा ले रहे हो तो अब मुख्यमंत्री आते हैं तो कम से कम उनके कार्यक्रम में तो आओ।
विधायक का यह कहना राजनीतिक कार्यक्रमों में जनता की उपस्थिति की हकीकत बताने को काफी है कि भीड़ जुटाने के लिए हर समय मशक्कत करनी पड़ती है। यह माना जाने लगा है कि योजना के हितग्राहियों को सीएम के कार्यक्रम में तो आना ही चाहिए। यदि नहीं आते हैं तो ऐसे लोगों की फ्री फंड की योजनाओं का लाभ देना बेकार है।