जी भाईसाहब जी: पीएम मोदी मुस्कुराए, इसका मतलब समझाएं
PM Modi Visit: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मध्य प्रदेश आना एक आयोजन भर नहीं होता है बल्कि हर यात्रा के पीछे एक राजनीतिक संदेश छिपा होता है। इस बार भी जब वे 31 मई को भोपाल आए तो आयोजन भले ही देवी अहिल्या बाई होल्कर की 300 वीं जयंती के प्रसंग पर महिला सम्मेलन का हो लेकिन इसके कई राजनीतिक अर्थ भी निकले।

डॉ. मोहन यादव के मुख्यमंत्री बनने के बाद 31 मई को भोपाल में महिलाओं से जुड़ा पहला इतना बड़ा सम्मेलन था जिसमें प्रधानमंत्री मोदी शामिल हुए। ऑपरेशन सिंदूर के बाद महिलाओं की भागीदारी वाले इस सम्मेलन में मंच पर सीएम मोहन यादव के साथ मुस्कुराते हुए पीएम मोदी की तस्वीरें वायरल हुई। प्रधानमंत्री मोदी मंच पर मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के साथ बेहद आत्मीयता और प्रसन्नता से बात करते नजर आए। ये तस्वीरे डॉ. मोहन यादव के समर्थकों के लिए सुकूनदेह साबित हुई क्योंकि पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल में ऐसी पीएम मोदी की मुस्कुराते हुए तस्वीरें दुर्लभ ही रहीं। पीएम मोदी को प्रसन्नचित्त देख अंदाजा लगाया गया कि वे मोहन सरकार के कामकाज से खुश हैं।
अगर इस प्रसन्न मुलाकात का यही अर्थ है तो इस अर्थ से उन नेताओं के समर्थक भी बहुत खुश हैं जो नेता हाशिए पर हैं और जिन्हें पीएम मोदी के दौरे पर विशिष्ट दायित्व दिया गया था। इन नेताओं में पूर्व मंत्री और बीजेपी के सबसे वरिष्ठ विधायक गोपाल भार्गव, सागर क्षेत्र में राजनीतिक वर्चस्व का संघर्ष कर रहे पूर्व गृहमंत्री भूपेंद्र सिंह और पूर्व केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते शामिल हैं। इन तीनों को भोपाल बुलाया गया था तथा एयरपोर्ट पर पीएम मोदी की अगवानी करने का दायित्व दिया गया था। जबकि पूर्व गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा को दतिया एयरपोर्ट के उद्घाटन अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में शामिल किया गया। एयरपोर्ट का उद्घाटन पीएम मोदी ने वर्चुअली भोपाल से किया था।
ये सभी नेता बीजेपी की राजनीति में हाशिये पर हैं। ऐसे में पीएम मोदी के कार्यक्रम में विशेष तौर पर बुलाए जाने को भविष्य के संकेत माना जा रहा है। अब इन नेताओं के समर्थक भी उम्मीद जता रहे हैं कि पीएम-सीएम की जुगलबंदी की तरह इन नेताओं के हिस्से में भी पीएम मोदी की मुस्कान फलीभूत होगी और इनके दिन भी बहुरेंगे। ये नेता भी मंत्री पद या मंत्री दर्जा पद पाएंगे। संभव है, इन्हीं में से कोई बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष बना दिया जाए।
यह पहली बार नहीं है जब पीएम मोदी के साथ अपने नेता की गर्मजोश मुलाकात देख समर्थकों ने हजार उम्मीदें पाल ली हों। इसके पहले जुलाई 2023 में डूमना एयरपोर्ट पर पीएम मोदी की अगवानी करने पहुंचे पूर्व मंत्री गोपाल भार्गव की ठहाके मारते तस्वीरें वायरल हुई थीं। तब भी ऐसी ही उम्मीद बंधी थी लेकिन भार्गव को कोई पद नहीं मिला। तब आम राय बनी थी कि पीएम मोदी का मुस्कुरा कर मिलना कोई आश्वासन नहीं है। फिर भी उम्मीद तो उम्मीद है और नेताओं के समर्थकों को उम्मीद है कि पीएम मोदी का यह दौरान और जोशीली मुलाकात कुछ तो लाभ देगी।
अहिल्या बाई की स्मृति लेकिन सुमित्रा ताई नजरअंदाज
इंदौर के होल्कर राजघराने की रानी अहिल्या बाई की 300 वीं जयंती पर भोपाल में भव्य कार्यक्रम हुआ। कार्यक्रम के केंद्र में पीएम मोदी और महिलाएं थीं। लेकिन इस कार्यक्रम में पूर्व लोकसभा अध्यक्ष और इंदौर की राजनीति की धूरी सुमित्रा महाजन मुख्य कार्यक्रम में दिखाई नहीं दीं। अन्य बड़े नेताओं की दूरी का राजनीतिक अर्थ तो समझ आता है लेकिन सुमित्रा महाजन जैसी उम्रदराज महिला नेता का महिला सम्मेलन में नहीं आना चौंकाता है।
यह इसलिए भी चौंकाता है कि इंदौर की लंबे समय तब सांसद रही सुमित्रा महाजन ने देवी अहिल्या बाई के योगदान को स्थाई बनाने के लिए अकेले ही पहल की है। इंदौर की महारानी देवी अहिल्या बाई ने देशभर के कई घाट, मंदिर, धर्मशालाएं बनवाई, लेकिन उनकी स्मृति में कोई बड़ा स्मारक अब तक नहीं सका है। इसकी पहल लोकसभा की पूर्व अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने की है। स्मारक के लिए एक ट्रस्ट बनाया गया है। जिसकी अध्यक्ष सुमित्रा महाजन है। ट्रस्ट को दो साल पहले रामपुरा कोठी व आसपास की तीन एकड़ जमीन सौंपी गई। इस स्मारक की लागत 100 करोड़ रहेगी। पहले चरण में 40 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। स्मारक के लिए उद्योगपति विनोद अग्रवाल ने पांच करोड़ रुपए देने की घोषणा की है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा है कि मध्य प्रदेश शासन स्मारक में सहयोग करेगा और शेष राशि के लिए हम केंद्र सरकार से भी मदद लेने का प्रयास करेंगे।
इतना ही नहीं वे देवी अहिल्या बाई होल्कर की 300 वीं जयंती के कार्यक्रम आयोजन के पहले बीजेपी महिला मोर्चा के मातृ सम्मेलन में बतौर मुख्य अतिथि शामिल भी हुई हैं। इतनी सक्रियता और जुड़ाव के बाद भी मुख्य कार्यक्रम में उनकी अनुपस्थिति के भी अपने राजनीतिक कारण हैं और इन्हीं के आधार पर निष्कर्ष निकाले जा रहे हैं।
ऐतिहासिक चरित्रों के जरिए राजनीतिक चमक के जतन
जब बीजेपी नेतृत्व ने उज्जैन के विधायक डॉ. मोहन यादव को मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री घोषित करते हुए अपना भरोसा जताया था तब डॉ. मोहन यादव के सामने सबसे बड़ी चुनौतियां थीं, पार्टी नेतृत्व के फैसले को सही साबित करना और पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की तुलना में सफलता की बड़ी रेखा खींचना।
पार्टी नेतृत्व तो उनके शासन से खुश है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने शिवराज सरकार की सफलता की छाया से बाहर निकलते हुए अपने रास्ते तय किए हैं। इनमें एक कदम है ऐतिहासिक चरित्रों के माध्यम से बीजेपी की राजनीति को चमकाने का जतन। सीएम डॉ. मोहन यादव ने राम वनगमन पथ के समानांतर कृष्ण पाथेय के निर्माण पर बल दिया। गीता जयंती उत्सव के रूप में मनाई गई। हर जिले में गीता भवन के निर्माण की योजना है। उज्जैन में विक्रमोत्सव, इंदौर में अहिल्या बाई स्मृति प्रसंग, पचमढ़ी में राजा भभूति सिंह अभ्यारण्य जैसे कार्यों की एक ऐसी शृंखला है जो हिंदुत्व की राजनीति में नए चरित्रों को शामिल कर रही है।
इस तरह मोहन सरकार नए प्रतीकों को खड़ा कर विपक्ष ही नहीं पार्टी के भीतर के पूर्व से तय प्रतीकों, मुहावरों और उदाहरणों को बदल रही है।
बत्ती गुल और बिजली मंत्री आए बगीचे में
बारिश आई नहीं है और प्रदेश में बिजली की आंख मिचौली जारी है। बिजली सरप्लस स्टेट में बिजली कटौती हो रही है। जनता परेशान है और बिजली मंत्री प्रद्युमन सिंह ने नया अभियान छेड़ दिया है। उन्होंने अपने घर के सामने बने पार्क में तंबू तान दिया है। उन्होंने कहा है कि पर्यावरण जागरूकता के लिए वे एसी में नहीं रहेंगे। उन्होंने एयर कंडीशनर और डीजल पेट्रोल जैसी सुविधाओं को बिल्कुल कम करने का फैसला किया है, क्योंकि इससे बिजली की बहुत ज्यादा खपत होती है। एसी की उपयोग न करने के लिए उन्होंने तय किया कि वे रात में घर पर नहीं सोएंगे, बल्कि निजी निवास के पास बने पार्क में पंखे के नीचे सोएंगे। अब कार का उपयोग नहीं करेंगे। सिर्फ वीवीआईपी यात्रा के दौरान ही कार का इस्तेमाल करेंगे, बाकी सारा काम बाइक से करेंगे। इससे पहले उन्होंने बिना प्रेस के कपड़े पहनने का निर्णय किया है जिसे वे निभा भी रहे हैं।
मंत्री तोमर के इस फैसले की आलोचना भी हो रही है। कहा जा रहा है कि मध्य प्रदेश में बिजली कंपनियों के अधिकारी मनमानी कर रहे हैं। भ्रष्टाचार बढ़ गया है। हर महीने रखरखाव पर मोटा खर्च बताया जाता है, रखरखाव के लिए घंटों बिजली काटी जाती है लेकिन जरा सी बारिश होते ही या बिजली के चमकते ही, बिजली गायब हो जाती है। गांव तो ठीक शहरों में 7-7 घंटे का अंधेरा पसरा है। ऐसे में ऊर्जा मंत्री को अपने विभाग में सुधार करना चाहिए न कि जनता को नसीहत देना चाहिए। इस आलोचना पर ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर ने कहा है कि ये तीनों बड़े फैसले ग्वालियर में बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए लेना पड़े हैं।
बिजली मंत्री तोमर का यह कदम और दिनों में होता तो स्वागत योग्य होता लेकिन भ्रष्टाचार, लापरवाही सहित कई आरोपों से घिरे बिजली विभाग को सुधारना, बिजली कंपनियों का घाटा कम करना बतौर मंत्री उनकी पहली जिम्मेदारी होनी चाहिए। मगर लगता है कि वे बीमार को दवाई देने की जगह सेहतमंद रहने की सुझाव दे रहे हैं।