MP: खंडवा, बुरहानपुर के बाद बैतूल में भी दिखा चित्तीदार उल्लू, शोधकर्ताओं ने शुरू की पड़ताल

दो दशक से दुनिया में लुप्त मान लिए गए चित्तीदार उल्लू को एक बार फिर खंडवा, बुरहानपुर के बाद बैतूल में देखा गया है। जीव वैज्ञानिक इनके आशियानों की ख़ोज कर रहे है।

Publish: Feb 10, 2023, 09:25 AM IST

भोपाल। मानव सभ्यता के विकास के साथ कई जीव–जंतुओं के विलुप्त होने सिलसिला लागतार जारी है। हालांकि अब वैज्ञानिकों ने लगभग दो दशक पहले तक पूरी दुनिया से लुप्त मान लिए गए फारेस्ट स्पॉटेड आउलेट यानी चित्तीदार उल्लू को ढूंढ निकाला है। जानकारी के मुताबिक इन पक्षियों की संख्या में भी इज़ाफा हुआ है। इनको महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के खंडवा, बुरहानपुर के बाद बैतूल भी देखा गया है। शोधकर्ता इनके आशियाने को खोजने की कवायद में जुट गए है। 

जानकारी के मुताबिक वर्तमान में फारेस्ट स्पॉटेड आउलेट की बड़ी संख्या गुजरात, मध्य प्रदेश व महाराष्ट्र की उत्तरी सीमा में लगभग 650 किलोमीटर क्षेत्र में फैले जंगलों तक ही सीमित है। बताया जा रहा है कि 150 साल पहले तक यह पक्षी ओडिशा और छत्तीसगढ़ के जंगलों में भी बहुत पाए जाते थे। इस जीव की लंबाई मात्र आठ से नौ इंच होती है, इसलिए इसे छोटा उल्लू भी कहा जाता है। यह मुख्य रूप से पेड़ों की कोटरों में रहना पसंद करते हैं। 

फारेस्ट स्पॉटेड आउलेट की खोज सन् 1872 में ब्रिटिश पक्षियों के जानकार एलन आक्टेवियन ह्यूम ने की थी। इस पक्षी को जब लगभग 113 सालों तक नहीं देखा गया तो इसे विलुप्त मान लिया गया। मगर फिर इसकी तस्वीर 1997 में अमेरिका की पक्षी विज्ञानी पामेला रासमुसेन के साथ डा. प्राची मेहता ने खींची थी। जिसके बाद वैज्ञानिकों ने इस पक्षी को खोजने की कवायद शुरू कर दी। 


बताया गया कि एक समय पर पूरे विश्व में यह केवल 25 ही बचे थे। लगभग 20 साल पहले तक इनकी संख्या 250 थी, जो बढ़कर लगभग 800 हो गई है। जीव विज्ञानिकों का कहना है कि पुराने पेड़ों में ही कोटरों का विकास होता है, लेकिन लगातार जंगलों के कम होने से इस तरह के पेड़ों की संख्या कम हो गई। और ये पक्षी पलायन करते गए और इनकी संख्या तेजी से कम होती गई। भारत में यह जीव चित्तीदार उल्लू के नाम से प्रसिद्ध है। 

इस बारें में ज्यादा जानकारी देकर रिसर्च अफसर, वाइल्ड लाइफ रिसर्च एंड कंजर्वेशन सोसाइटी के धीरज कुमार ने बताया कि इस पक्षी के बैतूल में होने के कई प्रमाण मिले हैं। जल्दी ही हम बैतूल में इनका पता लगाने के लिए शोध शुरू करेंगे, ताकि इस पक्षी के संरक्षण को लेकर कार्य किया जा