एमपी में अमानवीयता का अवसर बनी आपदा, मास्क 8 गुना महंगे, दवाओं के दाम आसमान पर

इंदौर में 30 रुपये के मास्क की MRP 249 रुपये, 26 हजार का इंजेक्शन 40 हजार में बिका, कांग्रेस ने बीजेपी के राज में महालूट और आपदा में अमानवीयता का अवसर खोजने का लगाया आरोप

Updated: Dec 11, 2020, 10:43 PM IST

Photo Courtesy: financial express
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इंदौर। एक तो कोरोना का कहर दूसरा दवाओं की कालाबाजारी ने लोगों की जीना दूभर कर दिया है। खुद को जनता का हितैषी बताने वाली बीजेपी सरकार दवाओं की कालाबाजारी और मुनाफाखोरी पर लगाम लगाने में नाकाम साबित हो रही है। 30 रुपये वाला N-95 मास्क बाजारों में 200 रुपये से भी महंगा बिक रहा है।

प्रदेश में दवाओं की महंगाई बेकाबू होने पर कांग्रेस ने बीजेपी सरकार को आड़े हाथों लिया है। कांग्रेस ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह पर निशाना साधते हुए ट्वीट किया है कि इंदौर में महामारी में भी महालूट हो रही है, एमआरपी से आठ गुना महंगे दामों पर मास्क मिल रहे हैं। दवाए और पल्सीमीटर में भी मुनाफाखोरी हो रही है।

 गौरतलब है कि इंदौर कलेक्टर मनीष सिंह ने भी कोरोना के इलाज में काम आने वाले रेमडेसिविर इंजेक्शन पर 20 प्रतिशत मुनाफा लेने की एडवाइजरी जारी की थी। जबकि क्वॉलिटी ड्रग संचालक डॉक्टर मकरंद शर्मा का कहना है कि अगर पैथोलॉजी क्लीनिक, अस्पताल, दवा दुकानें अपना फायदा कम कर लें तो कोरोना का इलाज पचास फीसदी तक सस्ता किया जा सकता है। वावजूद इसके इंदौर में दवाओं के दामों पर कोई लगाम नहीं लग पा रही है।

 गौरतलब है कि कंपनियों से 30 रुपये में मिलने वाला  N-95 मास्क स्टॉकिस्ट्स 50 से 100 रुपये में दुकानों को देते हैं, जो रिटेल मार्केट में 200 से 249 रुपये के बीच मिलता है। इन मास्क की MRP असली रेट से 8 गुना ज्यादा बताई गई है। कोरोना की दवाएं भी दो-तीन गुना महंगी बिक रही हैं।

आपको बता दें कि कोरोना मरीजों की इम्युनिटी बढ़ाने में काम आने वाली दवाएं स्टॉकिस्ट को करीब 3 हजार में मिलती हैं, जिन्हें 4 हजार में बेचा जाता है, इनकी एमआरपी 34 प्रतिशत ज्यादा है। वहीं कोरोना इलाज में कारगर फेवीपिरावीर 400 टेबलेट कंपनी से 970 रुपये में लेकर मरीजों को 1300 रुपये में बेची जा रही है।

 ऑक्सीजन लेवल चेक करने में काम आने वाले पल्स ऑक्सीमीटर कंपनी से 400 से 600 में लेकर बाजार में 2000 रुपये तक में बेचा जाते हैं। इलाज तो इलाज, कोरोना की जांच में उपयोगी रैपिड किट पर भी 3-4 गुना तक मुनाफा कमाया जाता है। कंपनी से 500 से ज्यादा रैपिड किट खरीदने पर एक किट करीब 265 रुपए में मिलती है, जिससे टेस्ट के लिए मरीजों से 900 से 1200 रुपए तक वसूले जा रहे हैं।

मध्य प्रदेश सरकार भी प्राइवेट लैब्स को अधिक कीमत पर ही पेमेंट कर रही है। स्टाकिस्ट जिन दामों में दवाएं और इंजेक्शन दुकानों को दे रहे हैं, उनका अधिकतम खुदरा मूल्य उससे 300 गुना तक ज्यादा है, जिससे कोरोना इलाज महंगा होता जा रहा है। सरकार दवाओं के दामों को कंट्रोल नहीं कर पा रही है।