मैं एक ऐसे भारत में बड़ा हुआ हूं जहां व्यक्ति के मरने पर बुरा न बोलने की सीख दी जाती है : शशि थरूर

परवेज़ मुशर्रफ़ के निधन पर कांग्रेस नेता ने ट्वीट किया था, जिसके बाद उन्हें ट्रोल किया गया, अब कांग्रेस नेता ने इस संबंध में स्पष्टीकरण दिया है

Updated: Feb 06, 2023, 03:57 AM IST

नई दिल्ली। पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ के निधन पर ट्वीट करने के बाद कांग्रेस नेता शशि थरूर को सोशल मीडिया पर काफ़ी ट्रोल किया गया। लेकिन ख़ुद कांग्रेस नेता ने अब अपने ट्वीट पर न सिर्फ़ स्पष्टीकरण दिया है बल्कि उन्हें ट्रोल करने वालों को भारतीय संस्कृति का पाठ भी पढ़ाया है।

कांग्रेस नेता शशि थरूर ने ट्रोल्स को जवाब देते हुए कहा है कि भारतीय संस्कृति के अनुसार किसी व्यक्ति के मरणोपरांत बुरे शब्दों का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए। मुशर्रफ़ भले ही भारत के मित्र नहीं थे लेकिन रणनीतिक फ़ायदे को देखते हुए उन्होंने राष्ट्रपति रहते भारत के साथ शांति स्थापित करने पर ज़ोर दिया था। 

शशि थरूर ने ट्वीट किया, मैं एक ऐसे भारत में पला बढ़ा हूं, जहां किसी व्यक्ति के मरने पर अच्छी बातें बोलने की सीख दी जाती है। ज़रूर मुशर्रफ़ भारत के दुश्मन थे और कारगिल के लिए ज़िम्मेदार थे। उन्होंने 2002 से 2007 तक अपने हितों के लिए सही लेकिन उन्होंने भारत के साथ शांति स्थापित करने के लिए काम भी किया था। वह भारत के मित्र नहीं थे लेकिन उन्होंने रणनीतिक फ़ायदे के लिए शांति स्थापित करने के लिए काम किया, जैसा कि हमने भी किया। 

इससे पहले कांग्रेस नेता ने मुशर्रफ़ के निधन पर ट्वीट करते हुए कहा था एक विरलय बीमारी के चलते परवेज़ मुशर्रफ़ का निधन हो गया। किसी ज़माने में भारत के दुश्मन रहे मुशर्रफ़ ने 2002-07 तक भारत के साथ शांति स्थापित करने में अहम भूमिका निभाई थी। मैं ख़ुद इस दौरान उनसे संयुक्त राष्ट्र में वार्षिक तौर पर मिला करता था। मैंने उन्हें अपनी रणनीति में एक स्पष्ट व्यक्ति के तौर पर पाया था।

शशि थरूर की यही बात ट्रोल्स को नागवार गुज़री और उन्होंने कांग्रेस नेता को पाकिस्तान परस्त करार देना शुरू कर दिया। जिसके बाद कांग्रेस नेता ने भारतीय संस्कृति और इतिहास का पाठ पढ़ाकर ट्रोल्स की बोलती बंद कर दी। 

वहीं शशि थरूर ने अपने ऊपर हमलावर बीजेपी नेताओं पर भी पलटवार किया है। कांग्रेस नेता ने कहा, अगर मुशर्रफ सभी देशभक्त भारतीयों के लिए अभिशाप थे, तो बीजेपी सरकार ने 2003 में उनके साथ युद्ध विराम की बातचीत क्यों की और 2004 के संयुक्त वाजपेयी-मुशर्रफ बयान पर हस्ताक्षर क्यों किए? क्या उन्हें तब एक विश्वसनीय शांति साथी के रूप में नहीं देखा गया था?