हिरासत में यातना केस में पूर्व IPS संजीव भट्ट बरी, कोर्ट में नहीं साबित हो पाया आरोप

पोरबंदर की एक अदालत ने 1997 के हिरासत में यातना मामले में पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट को बरी कर दिया है। हालांकि, अभी वे जेल में ही रहेंगे।

Updated: Dec 08, 2024, 06:59 PM IST

अहमदाबाद। गुजरात के पोरबंदर की एक अदालत ने 1997 के हिरासत में यातना मामले में पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट को बरी कर दिया है। हालांकि, संजीव फिलहाल कोर्ट से बाहर नहीं आ पाएंगे क्योंकि वे 1990 के एक और मामले में वे जेल में उम्र-कैद की सजा काट रहे हैं।

कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि संजीव भट्ट उस समय पुलिस अधिकारी थे और उन पर केस चलाने के लिए जरूरी मंजूरी भी नहीं ली गई थी। कोर्ट ने माना कि याचिकाकर्ता साबित नहीं कर सके कि संजीव भट्‌ट ने शिकायतकर्ता को अपराध कबूल करने के लिए मजबूर किया था।

दरअसल, 1994 के हथियार बरामदगी मामले के 22 आरोपियों में से एक नारन जादव ने 6 जुलाई 1997 को मजिस्ट्रेट कोर्ट में भट्‌ट के खिलाफ शिकायत की थी। उसने कहा था कि उसे पुलिस कस्टडी में संजीव भट्ट और कांस्टेबल वजुभाई ने TADA और आर्म्स एक्ट के मामले में कबूलनामा करने के लिए शारीरिक और मानसिक रूप से टॉर्चर किया था।

संजीव भट्ट तब सुर्खियों में आए थे जब उन्होंने 2002 के गुजरात दंगों में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की भूमिका का आरोप लगाते हुए शीर्ष अदालत में एक हलफनामा दायर किया था। भट्ट 2002 के गुजरात दंगों से संबंधित में कथित सबूत गढ़ने के मामले में कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ और गुजरात के पूर्व पुलिस महानिदेशक आर बी श्रीकुमार के साथ भी आरोपी हैं।

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गुजरात सरकार ने भट्ट को अनुपस्थिति के कारण पुलिस सेवा से हटा दिया था। भट्ट को इससे पहले जामनगर में 1990 के कस्टडी में मौत के मामले में उम्र कैद और 1996 में पालनपुर में राजस्थान के एक वकील को फंसाने के लिए ड्रग्स रखने के मामले में मार्च 2024 में 20 साल जेल की सजा हुई थी। फिलहाल भट्ट राजकोट सेंट्रल जेल में बंद हैं।