दफ्तर दरबारी: छत्‍तीगढ़ में खाली मोदी गारंटी, एमपी में कर्मचारियों की मांग होल्‍ड पर

MP Election 2023: किसी भी सरकार की रीढ़ उसके कर्मचारी होते हैं। हर योजना को लागू करने और उसकी सफलता की गारंटी यही कर्मचारी नाराज हैं कि छत्‍तीगढ़ में ‘मोदी गारंटी’ उन्‍हें नहीं मिली है। जबकि राजस्‍थान में उन्हें दीपावली का तोहफा दे दिया। अब एमपी के कर्मचारियों की धड़कनें तेज हैं। सरकार उन्‍हें लाभ देगी, गारंटी देगी या केवल वादा। 

Updated: Nov 05, 2023, 02:13 PM IST

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान

छत्‍तीसगढ़ में बीजेपी ने विधानसभा चुनाव के लिए घोषणा पत्र जारी करते हुए 20 गारंटी दी है। यह घोषणा पत्र कांग्रेस की 17 चुनावी घोषणाओं के बाद गृहमंत्री अमित शाह ने जारी किया है। इस ‘मोदी की गारंटी’ नामक घोषणा पत्र में धान और तेंदूपत्ता खरीद के दाम बढ़ाने और गैस सिलेंडर के दाम करने का वादा किया गया है। महिलाओं, युवाओं के साथ हर वर्ग के लाभ की घोषणा की गई है लेकिन सबके लाभ की बात में कर्मचारी और पेंशनर्स छूट गए हैं। ‘मोदी गारंटी’ पर तीखी प्रतिक्रिया में कर्मचारी और पेंशनर्स संगठन ने कहा है कि हमारे हिस्‍से वादा भी नहीं आया। हमें सिर्फ संघर्ष ही करना है। 

दूसरी तरफ, आचार संहिता के बाद भी राजस्‍थान की कांग्रेस सरकार ने कर्मचारियों को दीपावली मनाने का मौका दे दिया है। सरकार ने चुनाव आयोग से अनुमति ले कर 4 प्रतिशत महंगाई भत्‍ता तथा 6771 रुपए का दिवाली बोनस दे दिया है। 

अब बारी मध्‍यप्रदेश के कर्मचारियों की है। वे बार-बार मांग कर रहे हैं कि केंद्र सरकार की घोषणा के अनुसार कर्मचारियों को 4 फीसदी महंगाई भत्‍ता दिया जाएगा। दिवाली का बोनस तो पिछले 27 बरसों से बंद है। कर्मचारी नेता उमाशंकर तिवारी का कहना है कि जब राजस्‍थान सरकार चुनाव आयोग से अनुमति ले सकती है तो यह काम मध्‍य प्रदेश सरकार को भी करना चाहिए लेकिन अब तक ऐसा कोई प्रस्‍ताव आयोग को नहीं भेजा गया है। 

निराश कर्मचारियों को अब ‘मोदी गारंटी’ से भी उम्‍मीद नहीं है। असल में छत्‍तीसगढ़ के बाद अब मध्‍यप्रदेश में बीजेपी का घोषणा पत्र जारी होना है। यहां भी यह मोदी गांरटी की तरह ही होगा। कर्मचारियों को आशंका है कि उनकी मांगों और अब तक की घोषणाओं को मोदी गारंटी नहीं मिलेगी। तर्क तो यह भी है कि कर्मचारियों की नाराजगी बयानों से आगे वोट के विरोध-समर्थन में तब्‍दील हो तब तो राजनीतिक दबाव कारगर हो। 

लाडली बहना को पैसा देने में झगड़ पड़े आईएएस 

अंतत: तय हो गया है कि लाडली बहना के खातों में सात नवंबर को 1250 रुपए जारी हो जाएंगे। महिला एवं बाल विकास विभाग ने अब तक पंजीकृत 1.31 करोड़ लाड़ली बहना के खातों में छठी किस्त देने के आदेश जारी कर दिए है।

इस आदेश के पहले यह चर्चा थी कि क्‍या यह योजना आचार संहिता के दायरे में आएगी और नवंबर माह में योजना का पैसा मिलेगा या नहीं? सरकार का तर्क था कि योजना आचार संहिता से पहले ही लागू है इसलिए चुनाव आयोग से अनुमति की जरूरत नहीं है। हालांकि, सरकार ने किसी भी प्रक्रिया और कानूनी उलझन से बचने के लिए आचार संहिता के पहले आए आवेदनों के मामले में अभी राशि डालने का निर्णय नहीं लिया है। इन पंजीयनों का सत्‍यापन नई सरकार बनने के बाद ही होगा तब ही राशि भेजी जाएगी। 

राजनीतिक प्रक्रिया तो एक तरफ मगर लाडली बहना योजना में पैसा ट्रांसफर करने को लेकर दो आईएएस के बीच मतभेद की खबरें भी आम हो गई है। पैसा ट्रांसफर करने को लेकर विभाग की प्रमुख सचिव का मानना था कि चुनाव आयोग से अनुमति लेनी चाहिए लेकिन प्रशासनिक मुखिया इससे सहमत नहीं थे। इस मतभेद के कारण विभाग की प्रमुख सचिव टिप लिख कर अवकाश पर चली गई। फिर हुआ वही जो प्रशासनिक मुखिया चाहते थे। महिला एवं बाल विकास विभाग ने खातों में पैसा भेजने के आदेश जारी कर दिए। 

काम, आराम, कमलनाथ का वादा और बीजेपी का इरादा 

मध्‍यप्रदेश बेरोजगारी बड़ा मुद्दा रही है और यही कारण है कि हर चुनाव के पहले युवाओं को नौकरियों देने तथा सरकारी खाली पदों को भरने का वादा किया जाता है। पांच साल बीत जाते हैं घोषणा पूरी नहीं हो पाती है और फिर वादा हो जाता है। 

मध्‍यप्रदेश में भी उम्‍मीद की जा रही है कि अपने घोषणा पत्र में बीजेपी युवाओं को रोजगार देने का वादा करते हुए ‘मोदी गारंटी’ देगी। जबकि कांग्रेस इस मुद्दे पर पहले ही घोषणा कर चुकी है। कमलनाथ ने कांग्रेस की ओर से वादा किया है कि सरकार बनने पर कांग्रेस 2 लाख से अधिक रिक्त पदों पर भर्ती प्रक्रिया पूरी करेगी। साथ ही नया वादा किया है कि ग्रामीण क्षेत्र में 1 लाख नए पद बनाकर भर्ती की जाएगी। यह बेरोजागारी झेल रहे युवाओं के लिए उम्‍मीद की डोर है। 

दूसरी तरफ, पुलिसकर्मियों की छुट्टी का मुद्दा भी चर्चा में आ गया है। कमलनाथ ने वादा किया है कि कांग्रेस की सरकार आते ही पुलिसकर्मियों को साप्ताहिक अवकाश दिया जाएगा। यह शिवराज सरकार की दुखती रग है क्योंकि कमलनाथ के नेतृत्‍व वाली कांग्रेस सरकार ने पुलिस के साप्‍ताहिक अवकाश शुरू किए थे। मार्च 2020 में शिवराज सिंह चौहान के मुख्‍यमंत्री बनने के बाद कोरोना काल में ये अवकाश बंद हो गए थे। फिर शिवराज सरकार ने अगस्त 23 में पुलिस के साप्ताहिक अवकाश शुरू किए थे मगर विधानसभा चुनाव को देखते हुए एक माह में ही डीजपी के आदेश से साप्‍ताहिक अवकाश बंद कर दिए गए। 

कलेक्टरों को चाहिए विवाद से मुक्ति

गृहमंत्री अमित शाह का एक बयान राजनीतिक विवाद का कारण बना था जिसमें उन्‍होंने कहा था कि जो कमल का ध्‍यान नहीं रखने वाले अफसर को छोड़ना नहीं। फिर चुनाव के दौरान वाहनों की चेकिंग में सख्‍ती हुई तो रतलाम के जावरा में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मंच से पुलिस और प्रशासन के अधिकारियों को चेतावनी दे दी। मुख्यमंत्री ने कहा कि चेकिंग के नाम पर यदि व्यापारियों को परेशान किया तो मैं ठीक कर दूंगा। 

एक वीडियो उज्जैन जिले की घट्टिया का भी वायरल हुआ था जहां के विधायक और कांग्रेस प्रत्याशी रामलाल मालवीय ने अधिकारियों को मंच से चेतावनी दी थी कि ज्यादती करना बंद करो। 17 नवंबर के बाद कुछ नहीं कर पाओगे। 

इन बयानों और इनके पीछे राजनीतिक ताप को मध्‍यप्रदेश की ब्‍यूरोक्रेसी बखूबी महसूस कर पा रही है। सालों बाद ऐसा मौका आया है जब ब्यूरोक्रेसी उलझी हुई है कि जनता का फैसला क्या होगा? इसी कारण फैसलों में अतिरिक्त सतर्कता बरती जा रही है। अफसर कोई राजनीतिक विवाद मोल नहीं लेना चाहते हैं। एसडीएम स्‍तर तक यह संदेश साफ है कि राजनीतिक उलझन वाले फैसलों पर बेहद गंभीरता से निर्णय लें। लापरवाही में लेने के देने न पड़ जाएं। 

यह चुनौती जिला निर्वाचन अधिकारी यानी कलेक्‍टर के सामने मंत्री राहुल लोधी, पूर्व मंत्री सुरेंद्र पटवा, कांग्रेस के कद्दावर नेता अजय सिंह जैसे नेताओं के नामांकन पर आपत्ति के रूप में आ चुकी थी। इन आपत्तियों पर सुनवाई का नाजुक पड़ाव तो खूबी से पार कर लिया गया लेकिन अब बारह दिन और फिर ईवीएम की सुरक्षा बड़ा मसला होगा। किस तरह मैदानी पोस्टिंग पाए अफसरों का एक ही जतन है, कोई ऐसा काम न हो जिससे सरकार में आने वाले नेता खफा हो जाएं।