दफ्तर दरबारी: अपने ही मंत्री के आदेश को पलट सुप्रीम कोर्ट जाएगी सरकार 

एक आईएएस ने दिया मंत्री को बदलने का मौका: एमपी में इस सप्‍ताह मंत्री नागरसिंह चौहान से वन मंत्रालय छिन लेना, उनका नाराज होना और फिर मान जाना चर्चा में रहा। इस राजनीतिक घटनाक्रम के पीछे एक प्रशासनिक पहलू भी है। इसी कारण अब सरकार अपने ही मंत्री के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाएगी। 

Updated: Jul 27, 2024, 03:12 PM IST

मुख्‍यमंत्री डॉ. मोहन यादव, बीजेपी प्रदेश अध्‍यक्ष वीडी शर्मा के साथ मंत्री नागर सिंह चौहान
मुख्‍यमंत्री डॉ. मोहन यादव, बीजेपी प्रदेश अध्‍यक्ष वीडी शर्मा के साथ मंत्री नागर सिंह चौहान

मोहन यादव सरकार में कद्दावर नेता बन कर उभरे युवा नेता नागर सिंह चौहान को ताकतवर बना कर वन व पर्यावरण तथा आदिम जाति कल्‍याण विभाग का मंत्री बनाया गया था। उनकी पत्‍नी अनीता चौहान को अलीराजपुर से लोकसभा का टिकट दिया गया था। परिवारवाद का विरोध करने वाली बीजेपी ने पति-पत्‍नी को मंत्री और सांसद बना दिया। इससे नागर सिंह चौहान के कद और पार्टी में महत्‍व का पता चलता है।

लेकिन जब कांग्रेस से बीजेपी में आए विधायक रामनिवास रावत को मंत्री पद देने की बारी आई तो नागर सिंह चौहान से वन मंत्रालय छिन लिया गया। इससे नागर सिंह नाराज हुए। उन्‍हें मनाने की कोशिशें हुईं। वे दिल्‍ली पहुंचे और वरिष्‍ठ नेताओं के साथ मुलाकात की। वे देर रात भोपाल आए और सीएम मोहन यादव, बीजेपी प्रदेश अध्‍यक्ष वीडी शर्मा के साथ हँसी-खुशी की तस्‍वीर जारी हो गई। एक तरह से राजनीतिक मसले का पटाक्षेप हो गया था। मगर बात केवल इतनी नहीं है। 

23 जुलाई को घटे इस राजनीतिक घटनाक्रम के पीछे एक प्रशासनिक पेंच है। एक नोटशीट जिसके कारण विद्रोह करने पर आमादा हुए नागर सिंह चौहान के तेवर मंद पड़ गए। यह प्रशासनिक पेंच आईएए अशोक वर्णवाल के एक नोट से फंसा।  हुआ यूं कि एक माह पहले वन विभाग के मुखिया बने अपर मुख्य सचिव अशोक वर्णवाल ने वन विभाग के अपने पूर्ववर्ती एसीएस जेएन कंसोटिया के आदेश को पलट दिया। एसीएस जेएन कंसोटिया ने यह आदेश तत्‍कालीन वन मंत्री नागरसिंह चौहान की टिप के बाद दिया था। 

यह आदेश कटनी की झिन्ना खदान से जुड़ा है। वनमंत्री रहते हुए नागर सिंह ने इस मामले को सुप्रीम कोर्ट ले जाने से रोक दिया था। एसीएस जेएन कंसोटिया ने तुरंत मंत्री के आदेश का क्रियान्वयन भी कर दिया। अपने आदेश को तत्काल अमल में लाने के लिए कंसोटिया ने बाकायदा कटनी डीएफओ को भी नोटिस जारी किया था। जबकि नए अपर मुख्य सचिव अशोक वर्णवाल ने फाइल पर मंत्री के फैसले को पलटा बल्कि विभाग को सक्रिय भी कर दिया। इस आदेश के बाद सवाल उठ रहे थे कि पूर्व एसीएस कंसोटिया ने आखिर किस दबाव में एसएलपी वापस लेने का आदेश जारी किया था। क्‍या इस मामले में मंत्री की कोई खास रूचि थी?

यह मामला महत्‍वपूर्ण है क्‍योंकि खदान के वन भूमि में आने के कारण रोक लगाई गई थी। आरोप है कि कटनी के खनन कारोबारी आनंद गोयनका, मेसर्स सुखदेव प्रसाद गोयनका ने इस वन भूमि को राजस्व की बताकर पट्टा आवंटित किया गया था। सरकार की उच्‍च स्‍तरीय कमेटी ने जांच में पाया था कि जमीन वन की है। इस के खिलाफ खदान मालिक हाईकोर्ट में गए और केस जीत गए। इस पर वन विभाग को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करनी है। मंत्री नागर सिंह चौहान ने चाहते थे कि सरकार केस को आगे न बढ़ाए लेकिन एसीएस अशोक वर्णवाल के आदेश ने मामला उजागर कर दिया। 

इस तरह एक प्रशासनिक घटनाक्रम ने मोहन सरकार को एक राजनीतिक बदलाव का मौका दे दिया। मुख्‍यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने नागर सिंह चौहान से वन मंत्रालय तो ले ही लिया, आईएएस अशोक वर्णवाल ने उनकी नोटशीट पर आदेश को बदल भी दिया। अब सरकार अपने ही मंत्री के आदेश को रोक कर खदान पर प्रतिबंध के लिए सुप्रीम कोर्ट जाएगी। 

अफसर नहीं अब नेता तय करेंगे कैसा बनेगा भोपाल 

बिना योजना बनाए कॉलोनियां बनाने की अनुमति देने, सिक्‍स लेन या फ्लायओवर बना देने या मेट्रो जैसे प्रोजेक्‍ट को लागू कर देने जैसे उदाहरण देखने हो तो भोपाल इसका सही नमूना है। भोपाल में अरबों रुपए के प्रोजेक्‍ट चल रहे हैं लेकिन सारे काम बिना किसी समग्र योजना के हो रहे हैं। जिसका खामियाजा जनता भोग रही है। जिस विभाग प्रमुख के दिमाग में कोई आइडिया आता है, वह विभाग वैसा काम शुरू कर देता है। एक ही सरकार के विभागों में तालमेल नहीं। एक विभाग करोड़ों खर्च कर सड़क बनाता है तो दूसरा उसे खोद देता है।  

भोपाल अफसरों की मनमानी के कारण आपदा झेल रहा है तो इसका कारण है मास्‍टर प्‍लान का नहीं होना। भोपाल का वर्तमान मास्टर प्लान 1995 में लागू हुआ था जो 2005 में ही खत्म हो चुकी है। बीस सालो से राजधानी में बिना मास्‍टर प्‍लान ही काम हो रहा है। बिना किसी योजना के शहर का विकास करने का नतीजा यह हुआ कि मास्‍टर प्‍लान पर अफसरों और नेताओं की सहमति नहीं बन पाती है और मास्‍टर प्‍लान का ड्राफ्ट हर बार निरस्‍त हो जाता है। इस बार भी यही हुआ। दावे-आपत्तियों की सुनवाई के पांच माह बाद अब मास्‍टर प्‍लान लागू नहीं हो रहा है बल्कि सरकार ने ड्राफ्ट ही निरस्‍त कर दिया है क्‍योंकि अफसरों के बनाए इस मास्‍टर प्‍लान से नेता खुश नहीं थे। अब नई कमेटी में सांसद, सभी विधायकों, महापौर, जिला पंचायत अध्यक्ष, जनपद अध्यक्ष और सरपंच जैसे जनप्रतिनिधियों के साथ अफसरों, आर्किटेक्ट, इंजीनियर्स भी शामिल किए गए हैं। ताकि सबकी सहमति से मास्टर प्लान तैयार किया जा सके। 

नेताओं की मंशा पर अफसर पेंच लगाते हैं और अफसरों के प्‍लान पर नेता पानी फेरते हैं। इस चक्‍कर में भोपाल बेतरतीब विकास का मॉडल बन रहा है। अब देखना है नई जंबो कमेटी कब और कैसा मास्‍टर प्‍लान तैयार करती है। 

अफसर हैरान-परेशान,  कब आएगी तबादला सूची 

पहले विधानसभा चुनाव और फिर लोकसभा चुनाव के कारण वर्ष 2023 से ही निर्वाचन कार्य से सीधे जुड़े कलेक्टर, अपर कलेक्टर, अनुविभागीय अधिकारी, तहसीलदार, नायब तहसीलदार, शिक्षक और पटवारियों के ट्रांसफरों पर प्रतिबंध लगा हुआ है। सरकार ने संकेत दिए थे कि जुलाई में बजट सत्र खत्‍म होने के बाद तबादलों पर से 15 दिनों के लिए रोक हटा ली जाएगी। जिले से जिले के अंदर तबादले के अधिकारी प्रभारी मंत्रियों को देने की तैयारी थी।

जुलाई का अंतिम सप्‍ताह आ गया और अब तक न तो प्रभारी मंत्री नियुक्‍त हुए हैं और न ही तबादलों पर रोक हटी है। राज्‍यस्‍तर पर होने वाले तबादलों की भी कोई सुगबुगाहट नहीं है जबकि बजट सत्र के पहले ही मध्‍य प्रदेश में बड़े स्‍तर पर प्रशासनिक सर्जरी की तैयारी कर ली गई थी। 

खबर थी कि आईएएस और आईपीएस की तबादला सूची विधानसभा सत्र और अमरवाड़ा उपचुनाव के बाद जारी हो जाएगी लेकिन ऐसा हुआ नहीं। फिर मंत्री नागर सिंह चौहान प्रकरण के कारण सूची अटक गई। इस बीच मुख्‍यमंत्री डॉ मोहन यादव दो बार दिल्‍ली भी हो आए हैं। लेकिन सूची है कि जारी ही नहीं हो रही। 

माना जा रहा है आईएएस की सूची में 2015 बैच के आईएएस अफसरों को मैदानी पोस्टिंग दे दी जाएगी। इनमें से दो अफसर कलेक्‍टर बनाए जा चुके हैं। शेष को सूची का इंतजार है। वे देरी के कारण हैरान है जबकि वे आईएएस अफसर परेशान है जिनका रिटायरमेंट करीब है और वे सेवा समाप्ति के पहले कलेक्‍टरी पाना चाहते हैं। वे सूत्रों के जरिए सूची की स्थिति की पड़ताल कर रहे है लेकिन हर बार एक ही जवाब मिलता है, जल्‍द जारी होगी सूची। लेकिन यह जल्‍दी कब आएगा, किसी को खबर नहीं मिल रही है। 

आखिर कलेक्‍टर सोनिया मीणा की मजबूरी क्‍या है?  

युवा आईएएस सोनिया मीणा अपने प्रशासनिक निर्णयों के कारण हमेशा चर्चा में रहती हैं। अपनी पहली पोस्टिंग में ही खनन माफिया के खिलाफ तीखे तेवर दिखलाने वाली आईएएस सोनिया मीणा नर्मदापुरम में कलेक्‍टर हैं और यहां भी उनका बर्ताव विवादों से घिरा है। प्रशासनिक विवाद से अलग वे उन अफसरों में शुमार की जाती हैं जिन्‍हें बार-बार कोर्ट से फटकार मिलती है। सवाल यह है कि आखिर वे बार-बार कोर्ट में हाजिर होने का आदेश मानती क्‍यों नहीं हैं और क्‍यों कोर्ट से फटकार भी मंजूर कर लेती हैं। 

शुक्रवार को हाईकोर्ट में पेश न होते हुए कलेक्‍टर सोनिया मीणा ने सीधे हाईकोर्ट जज को पत्र लिख दिया। इस पत्र में उन्‍होंने बताया था कि वे नागद्वारी मेले की तैयारियों में व्‍यस्‍त हैं और इस कारण पेश नहीं हो सकती हैं। वकील के माध्‍यम से बात रखने की जगह सीधे पत्र लिखने पर जबलपुर हाईकोर्ट के जस्टिस जीएस अहलूवालिया नाराज हो गए। उन्‍होंने कलेक्‍टर का पत्र लेकर आए एडीएम डीके सिंह को भी फटकारा। हाईकोर्ट ने कलेक्‍टर को शाम तक पेश होने के लिए कहा था। इस मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया गया है। 

यह पहला मामला नहीं है जब कोर्ट ने आईएएस सोनिया मीणा को फटकारा है। इसके पहले भी एक मामले में बार-बार के नोटिस के बाद भी वे कोर्ट में उपस्थित नहीं हो रही थी। तब भी सख्‍ती के बाद में कोर्ट में उपस्थित हुई थीं जिसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था। आईएएस सोनिया मीणा भले ही तुलनात्‍मक रूप से कम अनुभवी है लेकिन वे नियम कायदों की अच्‍छी जानकार हैं। बार-बार कोर्ट की अवेहलना करना तथा पेश न होने के कारण फटकार खाने की मजबूरी समझ से परे है।