दफ्तर दरबारी: बदनाम हुए आईएएस अफसरों को सरकार ने दिया तोहफा 

MP IAS Transfer: मध्‍यप्रदेश में यह नई बात नहीं है कि मंच से निलंबित किए गए या सजा के तौर पर पद से हटाए गए आईएएस व आईपीएस अफसरों को ज्‍यादा अच्‍छे पद पर नियुक्ति दी गई है। इस बार हुई प्रशासनिक सर्जरी में भी सरकार ने ऐसे अफसरों को ‘दंड’ की जगह तोहफा दिया। जानिए किस तरह सीएस इकबाल सिंह के निर्णयों को बदलने को मजबूर हुई सरकार।

Updated: Apr 08, 2023, 01:37 PM IST

आईएएस प्रतिभा पाल
आईएएस प्रतिभा पाल

‘बदनाम अगर होंगे तो क्या नाम न होगा।’ मशहूर शायर नवाब मुस्तफा खां शेफ्ता के ख्‍यात शेर की यह पंक्तियां इस बार हुई प्रशासनिक सर्जरी के बाद रह-रह कर याद आई। असल में, ताजा पोस्टिंग में कुछ आईएएस को महत्‍वपूर्ण पदों की जिम्‍मेदारी दे दी गई है जबकि माना जा रहा था कि उनके काम को देखते हुए सरकार उन्‍हें ‘दंड’ देगी। 

‘बदनाम’ हो कर भी तोहफा पाने वाले अधिकारियों की सूची में सबसे पहले नाम इंदौर की निगम आयुक्‍त प्रतिभा पाल का आता है। प्रतिभा पाल की महापौर तथा बीजेपी नेताओं के साथ खटपट की खबरें आती रहती हैं। फिर जब बावड़ी हादसे में 36 लोगों की मृत्‍यु हुई तो माना गया कि नगर निगम और जिला प्रशासन की लापरवाही पर एक्‍शन तय है। दो कर्मचारियों के निलंबन से बात नहीं बनी और जब हादसे के छह दिन बाद प्रतिभा पाल का तबादला होने की खबर आई तो लगा कि जैसे उन्‍हें सजा के तौर पर हटा दिया गया है। मगर जब उनकी नई पोस्टिंग देखी तो अचरज में पड़ गए। 

सरकार ने इंदौर निगम आयुक्‍त प्रतिभा पाल को कलेक्‍टर बना कर रीवा भेज दिया था। आईएएस प्रतिभा पाल की कार्यशैली के समर्थकों को खुशी हुई कि मैडम को सजा नहीं सम्‍मान मिला है। दूसरी तरफ, प्रतिभा पाल के तबादले से बीजेपी नेता ही खुश नहीं हो पा रहे हैं। वजह यह कि एक दबंग अफसर गई तो हर्षिका सिंह के रूप में दूसरी तेज तर्रार अफसर को निगम कमिश्‍नर बना दिया गया है। 

दूसरा चौंकाने वाला नाम आशीष सिंह का है। उज्‍जैन कलेक्‍टर रहते महाकाल लोक का निर्माण यदि आशीष सिंह की उपलब्धि है तो महाकाल लोक में हुए घोटाले पर लोकायुक्‍त द्वारा दिए गए नोटिस से उनकी खासी बदनामी हुई थी। लोकायुक्‍त ने उनके सहित तीन आईएएस को पेशी पर बुलाया था। बाद में उन्‍हें उज्‍जैन से हटा दिया गया था। मगर इस तबादले के छह माह बाद में अधिक ताकतवर पोस्‍ट पर उनकी वापसी हुई है और वे भोपाल कलेक्‍टर बनाए गए हैं। साफ है कि भ्रष्‍टाचार के दाग पर महाकाल लोक निर्माण की सफलता की आभा भारी पड़ी है। 

बदनामी के बाद तोहफा पाने के ये आईएएस बिरले नहीं है। इसके पहले भी सरकार दागी अफसरों को मलाईदार पदों पर बैठाती रही है। यानी, जनता को दिखाने को भले ही सजा दी जाती है मगर निलंबन या तबादले के कुछ समय बाद अफसर अधिक ताकतवर बन कर उभरते हैं और यह परंपरा इस बार भी कायम रही है। 

जब सीएस इकबाल सिंह बैंस के निर्णय की हुई किरकिरी 

मध्‍यप्रदेश के मुख्‍यसचिव इकबाल सिंह बैंस इतने पॉवरफुल हैं कि मंत्रियों की भी उनके आगे एक नहीं चलती है। दो ताकतवर मंत्रियों ने सार्वजनिक रूप से इस बात पर रोष भी प्रकट किया है कि प्रशासन तो सीएस की ही बात सुनता है, मंत्रियों के आदेश सुने नहीं जाते हैं। इसका कारण भी है कि मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सीएस इकबाल सिंह बैंस को फ्री हैंड दे रखा है। पहले के प्रशासनिक मुखिया तो प्रशासनिक सर्जरी के लिए घंटों मुख्‍यमंत्री के साथ बैठकें किया करते थे। हमने देखा है कि मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कभी स्‍टेट हैंगर पर तो कभी रातापानी में जा कर एकांत में बड़े प्रशासनिक व राजनीतिक निर्णय लिए हैं। इकबाल सिंह बैंस को सीएस बनाने के बाद कई फैसले स्‍वंतत्रता लेने की छूट दी गई है। वे हर बार मुख्‍यमंत्री चौहान की उम्‍मीदों पर खरा भी उतरे हैं मगर इसबार गणित फेल हो गया और किरकिरी के बाद आदेश बदलना पड़ा।

हुआ यूं कि भोपाल कलेक्‍टर और गृहमंत्री नरोत्‍तम मिश्रा के दामाद अविनाश लवानिया का तबादला जल निगम में कर दिया गया। मुख्‍यमंत्री सचिवालय में पदस्‍थ कौशलेंद्र विक्रम सिंह को भोपाल कलेक्‍टर बनाया गया था। यह फैसला भारी पड़ गया। कौशलेंद्र विक्रम सिंह को पर्यटन विकास निगम में भेजा गया क्‍योंकि उन्‍हें शंकराचार्य की मूर्ति निर्माण जैसे राजनीतिक महत्‍व के प्रोजेक्‍ट से जोड़ रखना था। लेकिन सबसे ज्‍यादा किरकिरी अविनाश लवानिया के मामले में हुई।

प्रशासनिक सर्जरी करते समय सोचा गया कि गृहमंत्री और मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के संबंधों को देखते हुए आईएएस अविनाश लवानिया को कमतर विभाग दे देना राजनीतिक बाजी साबित होगी मगर ऐसा हुआ नहीं। आईएएस अविनाश लवानिया के लिए ऐसा दबाव बना कि उन्‍हें जल निगम से हटा कर एमपी रोड डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन में एमडी बना दिया गया। जल निगम और रोड विकास दोनों ही सरकार की प्राथमिकता हैं और सीधे मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से सम्‍बद्ध हैं। फिर भी एमपीआरडीसी बड़ा विभाग है। 

इसतरह अविनाश लवानिया के जरिए राजनीतिक उठापटक तो साध ली गई मगर सीएस के प्रशासनिक निर्णय पर सवाल तो उठ ही गए। सवाल यह की क्‍या उन्‍होंने बिना होम वर्क किए प्रशासनिक सर्जरी कर दी? क्या वे आईएएस के तबादले के पहले सीएम चौहान से मशवरा नहीं कर रहे हैं?

मध्‍यप्रदेश में आईएएस इतना परेशान क्यों है?

आईएएस सेवा को देश की सबसे प्रतिष्ठित और सुविधापूर्ण सेवा माना जाता है। इस पद के साथ जुड़ी लक्‍जरी और रौब का ही कमाल है कि आईएएस बनने के लिए हजारों युवा उम्र खपा देते हैं। मगर मध्‍यप्रदेश के आईएएस यहां के वर्क कल्‍चर से तालमेल नहीं बैठा पा रहे हैं। शायद यही वजह है कि वे आईएएस होना भी पसंद नहीं कर रहे हैं। हाल के कुछ मामले तो इसी दिशा में इशारा करते हैं। 

जबलपुर कमिश्‍नर बी. चंद्रशेखर ने समय के पहले ही नौकरी छोड़ने का फैसला ले लिया है। उनके पहले 1993 बैच के आईएएस अफसर डॉ. मनोहर अगनानी ने भी वीआरएस मांग लिया था। सरकार ने उनकी स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के आवेदन को नियम शिथिल करते हुए मंजूर दी है। राज्‍य प्रशासनिक सेवा से प्रमोट हो कर आईएएस बने वरदमूर्ति मिश्रा ने प्रमोशन के कुछ माह में ही आईएएस पद छोड़ कर अपनी नई राजनीतिक पार्टी बना ली है। इन अफसरों के पहले मप्र 1987 बैच की आईएएस अफसर गौरी सिंह और 1984 बैच के आईएएस आलोक श्रीवास्तव ने भी वीआरएस ले लिया था। दोनों आईएएस को वीआरएस देने के लिए नियमों को शिथिल किया गया था। 

एक अन्‍य प्रमोटी आईएएस नियाज खान ने आईएएस नाम से ही तौबा कर ली है। इस पद को शुद्ध आमदनी का माध्‍यम बताते हुए उन्‍होंने सोशल मीडिया से पदनाम हटा दिया है। एक तेज तर्रार महिला आईएएस नेहा मारव्या को नौ महीने से प्रताडि़त किया जा रहा है। उनसे मैदानी पोस्टिंग छीन कर मंत्रालय में उपसचिव बना कर बैठा दिया गया है। उनके बाद की बैच की महिला आईएएस कलेक्‍टर बना दी गई हैं और 2011 बैच की आईएएस नेहा मारव्या के पास नौ माह से कोई काम नहीं है। बताया जाता है कि उनके साथ यह सलूक आजीविका मिशन में घोटाले की जांच के बाद किया गया है। नेहा मारव्‍या ने जिस व्‍यक्ति को भ्रष्‍टाचार का दोषी करार दिया था वह उच्‍च संपर्क रख्‍ता है। फलस्‍वरूप दोषी का तो कुछ न बिगड़ा, जांच अधिकारी सजा भोग रही हैं। नेहा जैसे कई आईएएस हैं जिनके पास काम नहीं है और सीनियर से लेकर जूनियर तक कुछ आईएएस के पास कई विभाग हैं। 

कलेक्टर को क्यों मांगनी पड़ी माफी

चुनाव का मौसम है और कलेक्‍टरों के सिर बड़ा जिम्‍मा हैं। उनके पर जिम्‍मा है कि वे सरकार की छवि चमकाएं। योजनाओं का ऐसा क्रियान्‍वयन करें कि जनता खुश हो जाए और सरकार की जय-जय हो जाए। इसी लक्ष्‍य को लेकर मैदानी पदस्‍थापनाएं की गई हैं। मगर कुछ नए नवेले कलेक्‍टर लक्ष्‍य पूरा करने के जुनून में भी ऐसी गलती कर बैठते हैं कि बाद में माफी मांगनी पड़ती है। 

ऐसा ही कुछ हुआ देवास के युवा कलेक्टर ऋषभ गुप्ता के साथ। गेहूं फसल आने की बाद मंडी में तुलाई को लेकर समस्‍या हुई तो किसान प्रतिनिधि कलेक्‍टर से मिलने गए थे। बैठक में तौल संबंधी शिकायतों पर माहौल गर्मा गया। इस दौरान कलेक्टर ऋषभ गुप्‍ता ने किसान नेताओं को कह दिया कि मैं एक-एक को जानता हूं जो लोग नेतागिरी करते हैं। आप लोग उपार्जन केंद्र में जाकर किसानों को भड़काते हो। कलेक्‍टर ने ऐसे लोगों पर एफआईआर करवाने की धमकी भी दे दी। 

कलेक्‍टर के इस बर्ताव से नाराज किसान नेता बैठक छोड़ कर चले गए। जब भोपाल तक पहुंची तो समझाइश हुई और किसानों को खेद प्रकट कर बैठक में बुलाया गया। किसानों से तेज आवाज में बात कर गए कलेक्‍टर गुप्‍ता भूल गए थे कि चुनाव का समय है और सरकार किसानों की नाराजगी झेलने की स्थिति में नहीं है।

मंदसौर के बाद देवास ही वह क्षेत्र था जहां किसानों की नाराजगी की आग जली थी। ऐसे में देवास से कोई ऐसा मामला उठने देना जो प्रदेश में आग बन कर फैलता, नादानी होती। बताते हैं कि देवास में बरसों से जमे अफसरों ने नवागत कलेक्टर को अंधेरे में रखा तथा किसान नेताओं के बारे में सही फीडबैक नहीं दिया। इस कारण मामला बिगड़ गया, बात भोपाल तक पहुंची और कलेक्‍टर को खेद प्रकट करना पड़ा।