Digvijaya Singh : दल-बदल कानून में संशोधन की मांग

Anti Defection Law : दलबदलू विधायकों को 6 साल तक चुनाव लड़ने पर हो प्रतिबंध, ना मिले लाभ का कोई पद

Publish: Jun 08, 2020, 07:08 PM IST

गोवा, मणिपुर, मेघालय, अरुणाचल, कर्नाटक और फिर मध्‍य प्रदेश। पिछले कुछ समय में चुने गए विधायकों के दल-बदल कर हारी हुई पार्टियों के साथ जोड़तोड़ से सरकार बनाने की राजनीति परवान चढ़ी है। अब राज्‍यसभा चुनाव के पहले गुजरात में कांग्रेस के विधायकों को ‘तोड़ने’ का काम जारी है। यह लोकतंत्र की विडंबना है कि कानून में कमियां निकालकर स्‍वार्थ साध लिया जाता है। जनता ने जिस व्‍यक्ति को एक विचारधारा के खिलाफ वोट देकर अपना जनप्रतिनिधि चुना था वह जनमत को धता बता कर सदन में जनता की बात नहीं उठाता बल्कि उसी पार्टी में शामिल हो जाता है जिसका विरोध करने के लिए उसे चुना गया था। कांग्रेस के वरिष्‍ठ नेता दिग्विजय सिंह ने इस प्रवृत्ति को रोकने के लिए दल-बदल कानून में संशोधन की मांग की है।

रविवार को भोपाल में पत्रकारों के साथ वीडियो कांफ्रेंस के दौरान दिग्विजय सिंह ने कहा कि 1985 में राजीव गांधी सरकार के लाए दल-बदल विरोधी क़ानून को सख़्त बनाए जाने की ज़रूरत है। इसके तहत पार्टी छोड़कर जानेवाले विधायकों को 6 साल तक के लिए चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगे और पार्टी बदलने पर लाभ के किसी से भी पद से वंचित रखा जाए। उन्होंने कहा कि वतर्मान समय में ये कानून कमज़ोर पड़ चुका है और इसकी कमियों का फ़ायदा उठाया जा रहा है। दिग्विजय सिंह ने माँग की है कि सभी राजनीतिक दलों को एकजुट होकर इस क़ानून में सख़्ती के लिए लड़ाई लड़ने की ज़रूरत है और यह तभी हो सकता है जब सभी मिलकर आवाज़ उठाए। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि अगर ऐसा नहीं हुआ तो हमारे देश में लोकतंत्र नहीं बचेगा और चुनाव की सार्थकता ख़त्म हो जाएगी। कोई भी पार्टी या व्यक्ति पैसे देकर चुने हुए विधायक ख़रीदेगा और अपनी सरकार बना लेगा। उन्होंने जनता से भी अपील की कि ऐसे विधायकों को जिन्होंने जनता के मत को नीलाम किया है, आनेवाले उपचुनाव में उन्हें सबक़ सिखाने की जरूरत है। चाहे वो किसी भी राजनीतिक दल का हो। उनकी इस मांग ने दल बदल कानून को लेकर एक बार फिर बहस छेड़ दी है।

सन् 1967 में हरियाणा की हसनपुर (सुरक्षित) विधानसभा से निर्दलीय विधायक गया लाल ने एक ही दिन में दो बार और 15 दिन में तीन बार पार्टी बदली थी। यह एक रिकॉर्ड था जब किसी जनप्रतिनिधि ने धन और पद के लालच में अपनी पार्टी को कपड़ों की तरह बदला। तब ही से देश में ‘आया राम, गया राम’ मुहावरा बन गया। यह सिलसिला आज तक जारी है। मार्च में मध्‍य प्रदेश की राजनीति में भी वह दौर दोहराया गया.. जब सत्‍ता पक्ष के विधायक और मंत्री बंगलूरु के पाँच सितारा रिसॉर्ट में आराम फरमाते रहे और प्रदेश में कोरोना पैर पसारता रहा। कांग्रेस आरोप लगाती है कि जब जनता की चिंता करनी थी तब तत्‍कालीन स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री तुलसी सिलावट सहित 22 विधायक सत्‍ता का मोलभाव कर रहे थे।

ऐसे मामलों को रोकने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने सन् 1985 में संविधान के 52 वें संशोधन के माध्यम से दलबदल विरोधी कानून पास करवाया। दलबदल विरोधी कानून होने के बाद भी इसमें से पतली गलियां खोज ली गईं। 2019 में कर्नाटक और 2020 में मध्‍य प्रदेश में दल बदल करवाकर सरकारें गिरा दी गईं। महाराष्‍ट्र में आधी रात को भाजपा का मुख्‍यमंत्री बनाने का खेल चला और भोर में शपथ दिलवाई गई फिर बहुमत साबित न होने पर इस्‍तीफा भी दे दिया गया। इन घटनाओं ने दल-बदल निरोधक कानून में सुधार की जरूरत बताई है।

यही कारण है कि कांग्रेस के वरिष्‍ठ नेता दिग्विजय सिंह ने दल बदल कानून को अधिक सख्‍त करने की आवश्‍यकता बताई है। रविवार को मीडिया से बात करते हुए दिग्विजय सिंह ने कहा कि दल बदल करने पर व्‍यक्ति को चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। प्रावधान किया जाना चाहिए कि अगर कोई जनप्रतिनिधि दल बदलता है तो वह 6 साल तक कोई भी चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित हो जाए और उसे लाभ का पद हासिल करने से भी वंचित किया जाए। ऐसे प्रावधानों के जरिए दिग्विजय सिंह लालच के कारण होने वाले दल बदल पर अंकुश लगाने की वकालत करते हैं। दल-बदल निरोधी कानून को ज्यादा सख्त बनाने से कोई भी विधायक या सांसद किसी भी स्थिति में चुनी गई अवधि तक अपनी पार्टी को छोड़ने के लिए स्वतंत्र नहीं होगा। तब देश उपचुनाव के बोझ से भी मुक्ति पाएगा और दल बदल कर किए जाने वाला जनमत का अपमान भी रुकेगा।

दिग्विजय सिंह ने पत्रकारों से चर्चा में कहा है कि वे उप चुनाव में जनता से आग्रह करेंगे कि दगा देने वाले नेताओं को सबक सिखाएं। चुनाव सुधार के साथ यह अधिकार जनता के पास है कि वह दल-बदल करने वालों को चुनाव में सबक सिखाए।