प्लास्टिक प्रदुषण से मुक्ति के लिए अन्तर्राष्ट्रीय बैठकों से विश्व की उम्मीदें
प्लास्टिक प्रदूषण दुनिया के हर कोने में फैल चुका है, हमारे पीने के पानी, हमारे द्वारा खाए जाने वाले भोजन और हमारे शरीर में घुल रहा है। प्लास्टिक के अंधाधुंध उपयोग के कारण, 4,200 से ज़्यादा चिंताजनक प्लास्टिक रसायन हमारे शरीर, भोजन और पारिस्थितिकी तंत्र को दूषित करते हैं।

स्विट्जरलैंड के जेनेवा में कल 5 से 14 अगस्त तक प्लास्टिक संधि के लिए अन्तर्राष्ट्रीय वार्ता समिति के प्रतिनिधि मंडल अंतिम बैठक के लिए एकत्रित हुए हैं। जहां प्लास्टिक प्रदुषण को समाप्त करने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय कानूनी रूप से बंधनकारी (आईएलबीआई) समझौता पर अंतिम दौर की बातचीत होगी। इसके पहले मई 2022 में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा ने समुद्री पर्यावरण सहित प्लास्टिक प्रदूषण पर एक अंतरराष्ट्रीय, कानूनी रूप से बाध्यकारी उपाय विकसित करने के लिए प्रस्ताव पारित किया था। तब से अबतक पांच दौर की बातचीत पूर्ण हो चुकी है। अंतिम दौर की बातचीत अगस्त में होने जा रही है। जिसमें मुख्यतः प्लास्टिक उत्पादों के पूरे जीवन काल में प्राथमिक पाॅलिमर उत्पादन से लेकर निपटान तक को ध्यान में रखें जाने की बात होगी।
अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के अनुसार, प्लास्टिक की माँग सन् 2000 के बाद से लगभग दोगुनी हो गई है। एक हालिया अध्ययन के अनुसार, 2022 में फीडस्टॉक सहित 436.66 मिलियन टन पॉलिमर और प्लास्टिक का व्यापार हुआ, जिसमें अंतिम प्लास्टिक उत्पादों की मात्रा 111 मिलियन टन थी। आज, 99% प्लास्टिक जीवाश्म ईंधन से बनता है। जीवाश्म ईंधनों को परिष्कृत करके मोनोमर्स (निर्माण खंड) और फिर पॉलिमर में संसाधित किया जाता है, और उत्पादन के विभिन्न चरणों में मध्यवर्ती पदार्थ और रसायन (अध्ययनों से पता चलता है कि 16,000 से अधिक रसायनों का उपयोग किया जाता है) मिलाए जाते हैं। प्लास्टिक को विनियमित करने का अर्थ अनिवार्य रूप से इन पेट्रोरसायनों को विनियमित करना होगा। प्लास्टिक उत्पादन और उपभोग को विनियमित करने के लिए, इन निर्माण खंडों, जिनमें इनका व्यापार भी शामिल है, पर ध्यान केंद्रित करना अनिवार्य है।
विश्व भर के 600 से अधिक नागरिक समाज समूहों ने प्लास्टिक प्रदूषण को समाप्त करने के लिए एक मजबूत संधि की मांग करते हुए एक घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसमें प्लास्टिक उत्पादन में महत्वपूर्ण कटौती पर जोर दिया गया है। घोषणापत्र में कहा गया है कि "जलवायु, जैव विविधता, मानव स्वास्थ्य, मानवाधिकारों और ग्रह की जीवन को सहारा देने और बनाए रखने की क्षमता पर हानिकारक प्रभाव डालता है।" नागरिक समूहों ने वैश्विक प्लास्टिक उत्पादन में उल्लेखनीय कमी सुनिश्चित करने के लिए संधि की माँग की है।
प्लास्टिक के जीवनचक्र में हानिकारक रसायनों के उन्मूलन, प्लास्टिक संबंधी जानकारी में पारदर्शिता, कार्यान्वयन के लिए स्पष्ट और पर्याप्त वित्तीय प्रतिबद्धताएं और तंत्र, प्रभावित समुदायों के लिए न्यायोचित परिवर्तन, झूठे समाधानों द्वारा जारी अपशिष्ट उपनिवेशवाद और पर्यावरणीय नस्लवाद का अंत, पुन: उपयोग और पुनः भरने की प्रणालियों को प्राथमिकता देने और मानव अधिकारों के संरक्षण का भी आह्वान किया है। कहा गया है कि प्लास्टिक और खतरनाक अपशिष्ट के उत्पादन में प्रयुक्त खतरनाक रसायनों पर बासेल, रॉटरडैम और स्टॉकहोम द्वारा नियंत्रण किया जाता है। विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) द्वारा शासित होता है, और प्रस्तावित आईएलबीआई के प्रावधान डब्ल्यूटीओ समझौतों के विपरीत होंगे। इससे विकासशील देश और वे देश जो पॉलिमर व्यापार पर निर्भर हैं, व्यापार पर अंकुश लगाने से प्रभावित होंगे।
इधर पर्यावरण पर 20वें अफ्रीकी मंत्रिस्तरीय सम्मेलन (एएमसीईएन-20) ने वैश्विक प्लास्टिक संधि का समर्थन करने की प्रतिबद्धता जताई है, तथा प्लास्टिक प्रदूषण पर अंतर्राष्ट्रीय कानूनी रूप से बाध्यकारी साधन विकसित करने के लिए अंतर-सरकारी वार्ता समिति (आईएनसी) के साथ महाद्वीप की सहभागिता की आवश्यकता की पुष्टि की है। 18 जुलाई को नैरोबी में संपन्न हुई इस बैठक में स्वीकार किया गया कि अफ्रीका अपनी प्राकृतिक पूंजी की रक्षा के प्रयासों में एक महत्वपूर्ण मोड़ पर है, जिसमें विविध पारिस्थितिकी तंत्र, परिदृश्य, वायु, समृद्ध जैव विविधता से लेकर विशाल खनिज संपदा, मीठे पानी और समुद्री संसाधन शामिल हैं। इस कार्यक्रम में सदस्य देशों से पर्यावरणीय चुनौतियों से निपटने के लिए "संपूर्ण सरकार" और "संपूर्ण समाज" के दृष्टिकोण को अपनाने तथा समुदायों, महिलाओं और युवाओं को शामिल करने और उन्हें सशक्त बनाने का आह्वान किया गया, ताकि पर्यावरणीय संरक्षण को बढ़ावा दिया जा सके और ऐसे भावी नेताओं को तैयार किया जा सके जो टिकाऊ प्रथाओं को प्राथमिकता दें।
प्लास्टिक प्रदूषण दुनिया के हर कोने में फैल चुका है, हमारे पीने के पानी, हमारे द्वारा खाए जाने वाले भोजन और हमारे शरीर में घुल रहा है। प्लास्टिक के अंधाधुंध उपयोग के कारण, 4,200 से ज़्यादा चिंताजनक प्लास्टिक रसायन हमारे शरीर, भोजन और पारिस्थितिकी तंत्र को दूषित करते हैं। माइक्रोप्लास्टिक मानव रक्त, प्लेसेंटा और अंगों में घुस गया है, जबकि उत्पादन, भस्मीकरण और पुनर्चक्रण से निकलने वाला विषाक्त उत्सर्जन समुदायों के लिए ज़हर बन रहा है। एक नए वैश्विक अध्ययन से पता चला है कि 2018 में दुनियाभर में दिल की बीमारी से हुई 3,56,000 से ज्यादा मौतों का संबंध प्लास्टिक उत्पादों में इस्तेमाल होने वाले एक विशेष रसायन 'डाइ-2-एथाइलहेक्सिल फ्थेलेट (डीईएचपी)' से था। यह रसायन प्लास्टिक को लचीला बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन इसे मानव स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा माना जा रहा है।
सन् 2000 और 2019 के बीच, लगभग 3 करोड़ टन प्लास्टिक समुद्री वातावरण में जमा हो गया है। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि 2050 तक, समुद्रों में मछलियों से ज़्यादा प्लास्टिक हो सकता है। प्लास्टिक प्रदूषण जलवायु परिवर्तन का संकट , प्रकृति, भूमि और जैव विविधता का ह्रास और प्रदूषण एवं अपशिष्ट का संकट पैदा करता है। वैश्विक स्तर पर, अनुमानतः हर साल 1.1 करोड़ टन प्लास्टिक कचरा जलीय पारिस्थितिक तंत्रों में रिसता है, जबकि कृषि उत्पादों में प्लास्टिक के उपयोग के कारण, मल और लैंडफिल से मिट्टी में सूक्ष्म प्लास्टिक जमा हो जाता है। प्लास्टिक प्रदूषण की वार्षिक सामाजिक और पर्यावरणीय लागत 300 अरब अमेरिकी डॉलर से 600 अरब अमेरिकी डॉलर के बीच है।
भारत में कुल प्लास्टिक का 62 प्रतिशत पैकेजिंग के लिए उपयोग किया जाता है - जो वैश्विक औसत 40 प्रतिशत से कहीं अधिक है। प्लास्टिक पैकेजिंग की खपत सालाना 8 से 9 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है।अगर मौजूदा रुझान जारी रहे, तो भारत में प्लास्टिक पैकेजिंग की खपत लगभग दोगुनी हो जाएगी। सन् 2022 में 1.1 करोड़ टन से बढ़कर 2030 तक 2 करोड़ टन हो जाएगी।
ब्रिटेन के लीड्स विश्व विद्यालय के शोधकर्ताओं के अनुसार दुनिया में भारत प्लास्टिक कचरे का सबसे ज्यादा उत्पादन करता है। यहां हर साल 1.02 करोड़ टन प्लास्टिक कचरा पैदा होता है। जीवनचक्र दृष्टिकोणों के लिए वैश्विक प्रयासों के बावजूद, पेट्रोकेमिकल उद्योग में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी, भारत, संधि के दायरे को केवल अनुप्रवाह उपायों तक ही सीमित रखता है। यह मूल कारण का समाधान करने में विफल रहता है, जो कि प्लास्टिक का अनियमित उत्पादन है (जिसमें से 50% एकल-उपयोग वाला है), जो अपशिष्ट प्रणालियों पर अत्यधिक बोझ डालता है और उत्पादन से लेकर उपयोग और अपशिष्ट के रूप में निपटान तक, प्रदूषण और जन स्वास्थ्य के लिए जोखिम पैदा करता है। इससे भी बदतर, अपशिष्ट से ऊर्जा भस्मीकरण, जो विषाक्त पदार्थों और सूक्ष्म प्लास्टिक को छोड़ता है, भारत को इस दिशा में ठोस प्रयास करने की जिम्मेदारी है।
भारत के नागरिक अपने प्रतिनिधिमंडल से आग्रह करते हैं कि इस होने वाले वार्ता में मानव स्वास्थ्य और अपस्ट्रीम समाधानों पर केन्द्रित एक मजबूत वैश्विक प्लास्टिक संधि का समर्थन करें। जबकि प्लास्टिक पैकेजिंग, डिज़ाइन और सामग्री के उपयोग पर जीवनचक्र आकलन के आधार पर स्पष्ट लागू करने योग्य दिशानिर्देशों की तत्काल आवश्यकता है।
(लेखक राज कुमार सिन्हा बरगी बांध विस्थापित एवं प्रभावित संघ से जुड़े हुए हैं)