जी भाईसाहब जी: एमपी में 150-200 की लड़ाई, खोने-पाने का संघर्ष
Mission 2023:बीजेपी में जारी बैठकों का परिणाम नहीं निकलने से बेचैनी बढ़ती जा रही है जबकि प्रदेश अध्यक्ष सहित जिला संगठन के कई पद खाली पड़े हैं। कार्यकर्ता हताश और निराश है। दूसरी तरफ, कांग्रेस नेतृत्व ने प्रदेश के सभी नेताओं को एक जाजम पर बैठा कर उनकी बात सुनने की पहल की है। दोनों दलों में जारी बैठकों के नतीजों पर कार्यकर्ताओं की निगाहें लगी हुई हैं।

बीजेपी के पास खोने को बहुत, आंतरिक संघर्ष ने बढ़ाई मुश्किल
एमपी में मिशन 2023 के फतह करने की तैयारी कर रही कांग्रेस और बीजेपी में अब 150 और 200 की लड़ाई छिड़ गई है। 2003 के चुनाव से सत्ता में वापसी करने वाली बीजेपी के पास खोने के लिए बहुत कुछ है तो कांग्रेस के पास पाने के लिए काफी कुछ है। खोने और पाने के इस संघर्ष को गुटबाजी, संगठन में असंतोष जैसे पहुलओं ने और बढ़ा दिया है। दोनों पार्टियों में मीटिंग का दौर जारी है और कोशिशें भी की जा रही हैं कि कमियों से पार पा कर जीत का वरण कर लिया जाए।
कांग्रेस नेताओं की दिल्ली में राहुल गांधी से मुलाकात की खबरें जबसे आनी शुरू हुई हैं ठीक उसी समय बल्कि उससे थोड़ा पहले बीजेपी में आतंरिक असंतोष फूट कर सतह पर आना शुरू हो गया था। बीजेपी पिछले 23 सालों में सत्ता में रही है (2018 के चुनाव के बाद सवा साल कांग्रेस सत्ता में रही)। इस दौरान संगठन में वे सारी बुराइयां आ गईं जो एक सत्ताधारी दल में आती हैं। शुचिता, चाल, चरित्र और चेहरे की बात करने वाली पार्टी बीजेपी से ये सारी विशेषता दूर होती जा रही हैं। पुराने नेता हैरतअंगेज पीड़ा से इस बदलाव को देख रहे हैं।
2020 में सरकार बनाने के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया तथा उनके समर्थकों को पार्टी में शामिल करने के बाद बीजेपी का आंतरिक संघर्ष बढ़ गया है। पुराने कार्यकर्ता तथा नेता स्वयं को अलग-थलग महसूस करने लगे हैं। दीपक जोशी के रूप में विरोध खुल कर सामने आया तो जैसे असंतोष को भाषा मिल गई। एक के बाद एक कई नेताओं ने खुल कर अपनी नाराजगी जाहिर करना आरंभ कर दी है।
इन संकेतों को समझ कर बीजेपी ने कोर ग्रुप सहित शीर्ष नेताओं की बैठकों का दौर आरंभ कर दिया है। भोपाल में राष्ट्रीय प्रभारियों के साथ संगठन के तमाम बड़े नेताओं की बैठकें जारी है मगर अब तक इनके परिणाम मैदान तक नहीं पहुंचे हैं। संगठन ने 11 फीसदी वोट शेयर बढ़ाने का लक्ष्य दिया है मगर कार्यकर्ता इंतजार कर रहे हैं कि इन बैठकों का कुछ परिणाम निकले तथा उनकी नारजगी दूर हो तो वे काम करें। संगठन जानता है कि कार्यकर्ता काम करेंगे तभी 51 फीसदी वोट पाने का सपना देखा जा सकता है।
बीजेपी में जारी बैठकों का परिणाम नहीं निकलने से बेचैनी बढ़ती जा रही है जबकि प्रदेश अध्यक्ष सहित जिला संगठन के कई पद खाली पड़े हैं। कार्यकर्ता हताश और निराश है। वे इस उम्मीद व आक्रोश की मिली जुली अवस्था में है कि मई भी गुजर गया है अब तो संगठन कुछ निर्णय ले।
दूसरी तरफ, कांग्रेस नेतृत्व ने प्रदेश के सभी नेताओं को एक जाजम पर बैठा कर उनकी बात सुनने की पहल की है। यह पहल प्रतीकात्मक भी है तो भी इसलिए महत्वपूर्ण है कि नेताओं ने कुछ अपने दिल की बात रखी है। राहुल गांधी के साथ मुलाकात में जो भी बातें हुई, उनका उद्देश्य यही था कि एकजुट हो कर चुनाव लड़ना है तथा जीत कर सत्ता में लौटना है। केंद्रीय नेतृत्व ने टीम को एकजुट कर ही लक्ष्य दिया है कि इस बार मध्य प्रदेश में 150 सीट जीतना है।
230 सदस्यों वाली विधानसभा में बीजेपी ने 200 से ज्यादा तथा कांग्रेस ने 150 सीट जीतने का दावा किया है। सारी लड़ाई इसी लक्ष्य के इर्दगिर्द है। बीजेपी का संघर्ष ज्यादा है क्योंकि उसने लक्ष्य भी बड़ा रखा है और कांटें भी उसकी राह में ही सबसे ज्यादा बिछे हैं। जबकि कांग्रेस सत्ता पाने के संघर्ष में ज्यादा एकजुट दिखाई दे रही है।
‘सागर’ मंथन में बीजेपी के लिए गरल ही गरल
बीजेपी जब सारे मतभेद को खत्म कर चुनाव के पहले एकजुट हो जाना चाहती है ऐसे समय में ‘सागर’ के राजनीतिक मंथन ने गरल यानी विष उगलना शुरू कर दिया है। सत्ता और संगठन भी पिछले कई दिनों से महसूस कर रहे थे कि सागर में सबकुछ ठीक नहीं है। लेकिन बात परदे के पीछे थी। अब जब मंत्रियों के मतभेद खुल कर सामने आए तो बंद मुट्ठी खुल गई।
सागर में चल रहा घमासान भोपाल तक पहुंचा और कैबिनेट बैठक के बाद पीडब्लूडी मंत्री गोपाल भार्गव, राजस्व मंत्री गोविंद सिंह राजपूत विधायक शैलेंद्र जैन, विधायक प्रदीप लारिया और सागर जिलाध्यक्ष गौरव सिरोठिया ने नगरीय विकास मंत्री भूपेंद्र सिंह के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया। सभी ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से शिकायत कर मंत्री भूपेंद्र सिंह को तानाशाह करार दे दिया। जब यह खबर बाहर आई खलबली मच गई। बाद में शिकायत का खंडन करता मंत्री गोपाल भार्गव का वीडियो बयान आया।
बात ठंडी भी नहीं पड़ी थी कि मंत्री गोविंद सिंह राजपूत के पुत्र आकाश राजपूत ने फेसबुक पर नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेंद्र सिंह के खिलाफ पोस्ट कर तंज कस दिया। वहीं सागर महापौर संगीता तिवारी के पति सुशील तिवारी ने बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष के खिलाफ एक पत्र जारी कर दिया। यह पत्र पहले वायरल हो चुका है और इसे गलत करार दिया जा चुका है। फिर भी यह पोस्ट की गई। जवाबतलब हुआ तो पोस्ट हटा ली गई। सुशील तिवारी ने कहा कि उनके पीए ने गलती से यह पोस्ट कर दी थी।
मतलब मंत्रियों का झगड़ा ब्राह्मण बनाम पिछड़ा वर्ग, शिवराज सिंह चौहान बनाम वीडी शर्मा हो गया। गोपाल भार्गव जैसे मंत्री ने जब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के खास मंत्री भूपेंद्र सिंह की शिकायत कि तो भूपेंद्र सिंह के खास समर्थक सुशील तिवारी ने प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा को घेरे में ले लिया। यही से सवाल उठा कि जब लड़ाई मंत्रियों में थी तो वीडी शर्मा को क्यों निशाना बनाया गया? यह शिवराज सिंह चौहान के समर्थक मंत्री भूपेंद्र सिंह के खेमे से वीडी शर्मा पर हुआ हमला बीजेपी की आंतरिक राजनीति का एक सबूत है जहां मामला शिवराज सिंह चौहान वर्सेस प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा हो गया है। और बीजेपी की चिंता यह है कि यह आपसी मनमुटाव कई जिलों में फैल रहा है। यानी, सागर मंथन से निकला गरल अपना दायरा बढ़ा रहा है।
चुनाव में और ऊंचा व अलग होगा हिन्दुत्व का सुर
विधानसभा चुनाव 2023 में जीत के लिए तमाम समीकरणों को साधने एक जतन किए जा रहे हैं। 2018 के चुनाव में आदिवासी सीटों पर हुई हार को देखते हुए बीजेपी ने चुनाव के दो साल पहले ही आदिवासी वोट बैंक को साधने के प्रयास शुरू कर दिया था। फिर, महिलाओं के लिए लाड़ली बहना योजना लाई गई। बेरोजगार युवाओं के लिए सरकारी नौकरी से अलग सीखो कमाओ योजना प्रस्तुत की गई। यानी चुनाव को प्रभावित करने वाले हर मोर्चे पर पलड़ा अपनी और भारी करने का जतन जारी है।
लेकिन वोट मांगने के लिए विकास ही केवल मुद्दा नहीं है। हिंदुत्व भी बीजेपी की राह है और उस बार डिजिटल हिंदू कांक्लेव इस अभियान का नया रंग होगा। आपको याद दिला दूं कि मार्च में भोपाल की प्रशासन अकादमी में पहला डिजिटल हिंदू सम्मेलन आयोजित किया गया था। अपने एजेंडे के कारण यह खासा चर्चित और विवादित हुआ था। इस सम्मेलन में सोशल मीडिया पर हिंदुत्व के प्रचार–प्रसार के तरीकों को बताते हुए विभिन्न मामलों पर जवाब देने के सिस्टम को विकसित करने का प्रशिक्षण दिया गया था।
चुनाव के करीब आने पर बीजेपी इंदौर सहित अन्य स्थानों पर डिजिटल हिंदू सम्मेलन आयोजित करने की तैयारी कर रही है। पार्टी उम्मीद कर रही है कि सोशल मीडिया का उसका नेटवर्क चुनाव का माहौल पलटने या स्थापित करने में बड़ी भूमिका निभा सकता है। यानी जब मुद्दे, जातीय और क्षेत्रीय समीकरण साधने के सारे प्रयास भी विफल होने लगेंगे तो हिंदुत्व का आजमाया हुआ तरीका चुनावी वैतरणी पार करवा सकता है।