किसान अन्नदाता के साथ-साथ सबसे बड़ा आयकर दाता हैं

संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि देश के किसानों की औसत महीने की आमदनी 2015-16 में 8 हजार 59 रुपये थी, जो 2018-19 में 10 हजार 218 रुपये हो गई। यानी चार वर्षों में सिर्फ 2 हजार 159 रुपये की वृद्धि हुई है।

Updated: Mar 15, 2024, 07:54 PM IST

भारत विश्व भर में धर्मनिरपेक्ष, एकता, जनकल्याण और मानवतावादी देश के रूप में जाना जाता है। भारत में लोग जाति, रंग, रूप और वेशभूषा के अलग-अलग रूपों के बावजूद भी एक सूत्र में जुड़े हुए हैं किन्तु इसके विपरीत हाल ही में देश में एक नया माहौल पैदा हो गया है, जिसमें एक धर्म के लोग दूसरे धर्म के लोगों के खिलाफ हैं, प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करदाता एक दूसरे के खिलाफ हैं, अमीर और गरीब, शहरवासी और गाँवों के लोग, आरक्षण और गैर आरक्षण वाले लोग एक दूसरे के खिलाफ हैं। 

अब यह देखने को मिलता है कि जब किसानों ने अपनी आय की गारंटी की मांग की, तो देश में कई लोगो ने विरोध में आवाज उठाना शुरू कर दिया। वे कहते हैं कि सरकार ने खेती पर सब्सिडी दी, टैक्स फ्री आमदानी दी, लेकिन फिर भी किसान आन्दोलन कर रहे हैं, सरकार टैक्स पेयर्स का पैसा किसानों पर मुफ्त में क्यों लुटा रही है? यह मुद्दा आम हो गया है, जबकि आयकर छुट मात्र होने से किसानों का अधिकार मांगना कानूनन अपराध कैसे हो गया? यह समझना अत्यंत महत्वपूर्ण है।

वास्तव में, आज देश में किसानों पर कोई प्रत्यक्ष कर नहीं लगता है, इसलिए सरकार को पिछले कुछ वर्षों में अमीर किसानों पर टैक्स लगाने की सिफारिशें मिली हैं, लेकिन वे लागू नहीं हुईं क्योंकि देश की आजादी के बाद पहली बार 1972 में बनाई गई केएन राज समिति ने कृषि पर टैक्स की सिफारिश नहीं की थी। 2002 में केलकर समिति ने कहा था कि 95 प्रतिशत किसानों की कमाई इतनी नहीं होती कि वे टैक्स के दायरे में आ सकें। इसका अर्थ यह नहीं है कि किसान कोई कर नहीं देते हैं।

विभिन्न विशेषताओं के कारण आज भारत की अर्थव्यवस्था विश्वव्यापी है। देश में लगभग 135 करोड़ से अधिक लोगों में से लगभग 7 करोड़ का दावा है कि वे इनकम टैक्स जमा करते हैं; इनमें से लगभग पांच करोड़ लोग शून्य टैक्स देते हैं और केवल कागज जमा करते हैं। आज आयकर दाताओं का देश चलाने में 15 प्रतिशत भागीदारी है, लेकिन किसान बाकि के 85% आय में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं क्योंकि खेत और खदानों से देश में किसी भी उद्योग के लिए आवश्यक कच्चा माल मिलता है।

सरकार के टैक्स लगाने के तरीके को देखा जाए तो एक देश और दो टैक्स दिखाई देंगे क्योंकि किसान के कुल उत्पदान पर टैक्स लगता और यह दुनिया का सबसे अनोखा टैक्स है। इंडस्ट्रीज लागत, मुनाफा, जोखिम और टैक्स के बाद जो नेट प्रॉफिट होता उस पर टैक्स देती है किन्तु कृषि में ऐसा बिलकुल नहीं है। क्योंकि कृषि में तीन तरह के टैक्स लगते हैं, एक इनपुट (खाद, बीज, दवाई) खरीदते समय, दूसरा फसल बेचते समय मंडी टैक्स और तीसरा जीवन निर्वाह करने की वस्तुएं खरीदते समय सामान्य टैक्स लगता है और किसानो द्वारा भुगतान किए गए सभी प्रकार के टैक्स का कहीं भी समायोजन का लाभ नही मिलता है।

कृषि एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें किसान अपने उत्पदान का मूल्य इंडस्ट्रीज की तर्ज पर निर्धारित नहीं करता है, क्योंकि इंडस्ट्रीज में लागत, मुनाफा, जोखिम और टैक्स के बाद एमआरपी निर्धारित किया जाता है।जबकि किसानों की फसलों का मूल्य निर्धारण कई कारको को ध्यान में रखकर किया जाता है जिससे हर साल किसानों को बड़ा नुकसान होता है। क्योंकि एक किसान फसल को बेचते समय उत्पाद का मूल्य तय नहीं करता है दूसरा फसल उत्पादन प्रक्रिया के दौरान जो टैक्स दिया है उसका कोई सेटलमेंट बेनिफिट भी नहीं मिलता है। यह इसलिए होता है क्योंकि किसान दोनों जगह उपभोक्ता की तरह है और यह घाटा की अप्रत्यक्ष किसानो से वसूला जाने वाला टैक्स है।

यदि एक एकड़ का किसान एक लाख रुपये की फसल बेचता है तो एक हजार रुपये का मंडी टैक्स देता है और एक लाख रुपये का उत्पादन करने के लिए न्यूनतम 40 हजार रुपये की लागत होती है। इसमें औसत 10 प्रतिशत टैक्स लगता है जो 4 हजार रुपये का इनपुट टैक्स बनता है, बाकि के 60 हजार रुपये के खर्च पर भी औसत 10 प्रतिशत  के हिसाब से 6 हजार रुपये का टैक्स देता है कुल मिलाकर, एक एकड़ का किसान हर साल 11 हजार रुपये सीधे तौर पर सरकार को टैक्स देता है, जबकि सरकार की पक्षपाती नीतियों (युद्ध, निर्यात पर प्रतिबन्ध, आयत पर छुट, स्टॉक लिमिट, परमिट, महंगाई आदि) के कारण किसानों को 30-35 प्रतिशत कम मूल्य मिलता है।

इकोनॉमिक कोऑपरेशन एंड डेवलपमेंट (OECD) की एक रिपोर्ट बताती है कि साल 2022 में भारतीय किसानों पर 169 अरब डॉलर यानि 15 लाख करोड़ का मूल्य नहीं मिलने से किसानो को घाटा हुआ जो एक तरह से लोगों को सस्ता आहार उपलब्ध कराने का भारी टैक्स था। इसी की रिपोर्ट के अनुसार, 2000 से 2017 के बीच में किसानों को उनकी फसलों का समुचित मूल्य नहीं मिला, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें 45 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। 

इसका तात्पर्य यह है कि भारतीय किसानों पर प्रतिबंधात्मक विपणन और व्यापार नीतियों के माध्यम से 'अस्पष्ट रूप से कर' लगाया गया है, इसी तरह 2004 में शरद जोशी टास्क फोर्स ने पाया कि भारत सरकार किसानों को सब्सिडी दे रही है, यह एक बड़ा भ्रम है। बल्कि फसलों के कम दाम से किसानों ने उपभोक्ताओं को 1.7 लाख करोड़ की सब्सिडी दी है।

किसानों द्वारा जो अप्रत्यक्षकर कर का भुगतान किया जाता जो दिखाई देता नहीं मगर देश के लिए सबसे महत्वपूर्ण होता है। कड़वी सच्चाई है कि बड़े, मध्यम और छोटे किसानों के बीच आय की असमानता है। भूमि की कमी से किसान की आय घटती है। भारत में छोटे-छोटे किसानों के पास दो हेक्टेयर से भी कम जमीन है। दूसरे शब्दों में, 85 प्रतिशत किसानों को भारत में दो हेक्टेयर से कम जमीन है। विभिन्न राज्यों और किसानों के समूहों में भी आमदानी में असमानता है। 

संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में दो सर्वे के आंकड़े बताए हैं। ये सर्वे वर्ष 2015–16 और वर्ष 2018–19 के हैं। इन सर्वे के हवाले से समिति ने बताया कि देश के किसानों की औसत महीने की आमदनी 2015-16 में 8 हजार 59 रुपये थी, जो 2018-19 में 10 हजार 218 रुपये हो गई। यानी चार वर्षों में सिर्फ 2 हजार 159 रुपये की वृद्धि हुई है। वर्तमान में  देश में किसानों की औसत आय 10218 रुपये है, लेकिन राज्यों में व्यापक अंतर है। मेघालय 29348 रुपये, पंजाब 26701 रुपये जबकि झारखंड 4895 रुपये, ओड़िसा 5112 रुपये और बिहार 7542 रुपये प्रति माह है। 

यदि इन आय को देखें तो छोटे किसान जीवन यापन करने और खुद का भोजन करने में भी असमर्थ हैं, इसके बाबजूद किसान सरकारी अप्रत्यक्ष टैक्सों और कृत्रिम रूप से फसलों की कीमतों को कम करने की पक्षपाती नीतियों से बच नहीं पाते। जबकि हमारे देश में प्रत्यक्ष आयकर दाता को 7 लाख तक की आमदनी पर आय कर में छुट, टैक्स बेनिफिट, निवेश और बिमा के माध्यम से आय कर में छुट मिलती है, लेकिन किसानों के लिए ऐसा नहीं है।

भारत में कृषि उपज का कुल मूल्य लगभग 40 लाख करोड़ रुपये है, जिसमें डेयरी, खेती, बागवानी, पशुधन और एमएसपी फसलों के उत्पाद शामिल हैं, जो देश में 43 प्रतिशत सीधे रोजगार पैदा करते हैं। इसके बावजूद, किसानों को लागत-आधारित मूल्य नहीं मिलता है। दूसरा, सरकार द्वारा किसानों के लाभ-हानि के वास्तविक आंकड़े नहीं रखे जाते हैं, जिससे किसानों की वास्तविक आर्थिक स्थिति का पता नहीं चलता है।

सरकार की योजनाओं और प्रतिबद्धताओं, जैसे आय दुगनी करने, किसान सम्मान निधि और सब्सिडी की खबरें आती हैं, लेकिन पिछले पांच वर्षों में कृषि के लिए आवंटित बजट का एक लाख करोड़ रुपए बिना खर्च हुए सरकार के खजाने में वापस चला जाता है। अमेरिका में पिछले वर्ष उत्पादन में 27 प्रतिशत की गिरावट हुई, लेकिन उनकी सरकार ने किसानों की नेट इनकम में 48 प्रतिशत का आर्थिक सहयोग दिया। अगर हमारे देश में किसानों को इतना आर्थिक सपोर्ट दिया जाएगा, तो देश की अर्थव्यवस्था भी मजबूत हो जाएगी।

देश में किसानो पर अप्रत्यक्ष टैक्स लगने और कम मूल्य मिलने के कारण किसानों के नुकसान का आंकलन किया जाए तो भारत का किसान 30 से 50 फीसदी का घाटा हर साल लोगों को सस्ता खाद्यान उपलब्ध करवाने के लिए और सरकार की पक्षपाती नीतियों के कारण सह रहा है जो एक तरह का विश्व का सबसे बड़ा किसानो पर थोपा गया सरकारी टैक्स है। इसके बाबजूद लोग कहते है की देश का किसान टैक्स नहीं देता।