अपनी ही फसल को ट्रैक्टर से रौंदने पर मजबूर किसान, दिल दुखाने वाली है अन्नदाता की ये बेबसी

बिहार के समस्तीपुर की दर्दनाक तस्वीरें, किसान की गोभी एक रुपये किलो भी नहीं बिकी तो मजबूर होकर अपनी ही फसल को ट्रैक्टर से रौंद डाला

Updated: Dec 15, 2020, 06:50 PM IST

Photo Courtesy: Npg.news
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समस्तीपुर/पटना। बिहार के समस्तीपुर से एक किसान की ऐसी तस्वीरें सामने आई हैं, जो देश के लाखों किसानों का दर्द बयान करती हैं। दरअसल समस्तीपुर ज़िले के मुक्तापुर निवासी ओम प्रकाश यादव अपनी कई एकड़ जमीन पर उगाई गई गोभी की फसल को ट्रैक्टर से रौंदने पर मज़बूर हो गए। उन्हें ऐसा इसलिए करना पड़ा क्योंकि मंडी में उनकी गोभी एक रुपये किलो भी नहीं बिक रही थी, जबकि फसल उगाने की लागत तो छोड़िए सिर्फ खेत से गोभी निकालने और बाज़ार तक पहुंचाने में ही उन्हें इससे ज्यादा खर्च करना पड़ा। इन हालात में एक बेबस किसान को अपनी मेहनत से तैयार फसल को अपने ही हाथों से मिट्टी में मिलाना पड़ा।

ओम प्रकाश यादव ने न्यूज़ चैनल आज तक से अपनी तकलीफ बयान करते हुए कहा कि गोभी की फसल पर प्रति कट्ठा 4 हज़ार रुपए का खर्च आया था। लेकिन मण्डी में वही गोभी एक रुपए किलो भी नहीं बिक रही है। ओम प्रकाश यादव ने बताया कि गोभी की फसल तो तैयार हो चुकी थी, जिसे बाज़ार में पहुंचाने के लिए पहले मजदूरी देकर कटवाना पड़ता फिर उसे पैक करवाना होता, इसके बाद फसल को ठेले पर लादकर मण्डी पहुंचाना पड़ता। लेकिन वहां आढ़तिए एक रुपए प्रति किलो भी गोभी की फसल खरीदने के लिए तैयार नहीं हैं, जिसके कारण उन्हें अपनी फसल को खुद ही नष्ट करना पड़ रहा है। 

ओम प्रकाश यादव ने बताया कि यह पहली बार नहीं है जब उनकी गोभी की फसल बर्बाद हुई हो। इससे पहले भी उनकी फसल खरीददार नहीं मिलने की वजह से बर्बाद हो चुकी है। ऐसे में ओम प्रकाश कहना है कि वे अगली बार गेहूं की बुआई करेंगे। हालांकि ओम प्रकाश यादव ने कहा कि उन्हें सरकार की तरफ से कोई लाभ नहीं मिल रहा है। इससे पहले उनका गेहूं खराब हो गया था। तब उन्हें सरकार की तरफ से केवल एक हज़ार 90 रुपए का मुआवजा मिला था। ओम प्रकाश यादव ने बताया कि वो 8 से 10 बीघा ज़मीन में खेती करते हैं। 

बिहार में एपीएमसी एक्ट बरसों पहले ही खत्म किया जा चुका है, जिसके चलते वहां किसानों को सरकारी मंडी या न्यूनतम समर्थन मूल्य का लाभ नहीं मिल पाता है। उनकी हालत बताती है कि अगर किसानों को पूरी तरह से बाज़ार के भरोसे छोड़ दिया जाए तो उन्हें अपनी मेहनत का वाजिब मुआवजा मिल पाना बेहद मुश्किल हो जाता है।