हर महिला को गर्भपात का अधिकार, महिलाओं के हक में सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि सभी महिलाएं, चाहे विवाहित हों या अविवाहित, सुरक्षित और कानूनी गर्भपात की हकदार हैं।

Updated: Sep 29, 2022, 09:44 AM IST

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को महिलाओं के हक में आज एक बड़ा फैसला दिया। गर्भपात के मामले में विवाहित और अविवाहित का भेद मिटाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि सभी भारतीय महिलाएं, चाहे विवाहित हों या अविवाहित, सुरक्षित और कानूनी गर्भपात की हकदार हैं।महिलाओं के गर्भापत और शरीर पर अधिकार को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने यह ऐतिहासिक फैसला माना जा रहा है।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा कि किसी विवाहित महिला को जबरन प्रेगनेंट करना मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी ऐक्ट के तहत रेप माना जाएगा।जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा, 'विवाहित महिलाएं भी रेप पीड़िता हो सकती हैं। रेप का अर्थ होता है कि बिना सहमति के संबंध बनाना और पार्टनर के द्वारा हिंसा किया जाना एक सच्चाई है। ऐसे मामलों में महिला जबरन प्रेगनेंट भी हो सकती है। इस तरह विवाहित महिला यदि जबरन सेक्स के चलते प्रेगनेंट होती है तो वह भी रेप माना जाएगा। कोई भी प्रेगनेंसी जिसमें महिला कहे कि यह जबरन हुई है तो उसे रेप माना जा सकता है।'

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जस्टिस एस बोपन्ना और जस्टिस जेपी पारदीवाला की सदस्यता वाली बेंच ने एमटीपी ऐक्ट का जिक्र करते हुए कहा कि कोई अविवाहिता भी 24 सप्ताह की अवधि तक बिना किसी के परमिशन के गर्भपात करा सकती है। मौजूदा नियमों के मुताबिक तलाकशुदा, विधवा महिलाएं 20 सप्ताह के बाद गर्भपात नहीं करा सकती हैं। वहीं अन्य महिलाओं के लिए 24 सप्ताह तक गर्भपात की अनुमति का प्रावधान है। इस पर अदालत ने कहा कि कानून संकीर्ण आधारों पर वर्गीकरण नहीं कर सकता है। प्रेगनेंसी बनी रहे या फिर गर्भपात कराया जाए, यह महिला के अपने शरीर पर अधिकार से जुड़ा मामला है।

अदालत ने साफ कहा कि महिला से यह अधिकार छीनना उसकी गरिमा को कुचलने जैसा है। सुप्रीम कोर्ट ने 25 साल की एक सिंगल युवती की अर्जी पर सुनवाई करते हुए यह फैसला दिया है। युवती 24 सप्ताह की प्रेगनेंट थी और दिल्ली हाई कोर्ट ने उसे गर्भपात कराने की इजाजत नहीं दी थी। हाई कोर्ट ने कहा था कि वह इस बच्चे को किसी को गोद लेने के लिए दे सकती है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने 21 जुलाई को ही इस मामले में युवती को राहत देते हुए कहा था कि यदि मेडिकली वह गर्भपात कराने की स्थिति में है तो ऐसा किया जा सकता है। तभी अदालत ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी ऐक्ट पर विचार करने की बात भी कही थी, जिसके तहत विवाहित और अविवाहित महिला के लिए अलग नियम बने हुए थे।