कर्नाटक: दलित बच्चे ने छुई भगवान की मूर्ति, परिवार पर पंचायत ने लगाया 60 हजार रुपए जुर्माना

एक दलित बच्चे ने भगवान की मूर्ति को छुआ तो उसके परिवार पर गांव की पंचायत ने 60 हजार रुपये का जुर्माना लगाया। अब पीड़ित परिवार ने कहा है कि वह सिर्फ अंबेडकर की पूजा करेंगे, किसी भगवान की नहीं।

Updated: Sep 22, 2022, 01:36 PM IST

बेंगलुरु। बेंगलुरू से करीब 60 किलोमीटर दूर छुआछूत का एक शर्मनाक मामला सामने आया है। यहां गांव में दलित परिवार के एक बच्चे ने जुलूस के दौरान भगवान से जुड़े एक खंभे को छू लिया। उच्च जाति के लोगों को यह बात इतनी नागवार गुजरी की तत्काल पंचायत बुलाया गया। इतना ही नहीं पंचायत ने इसे गंभीर अपराध करार देते हुए दलित परिवार पर 60 हजार रुपये का जुर्माना लगा दिया।

मामला कोलार जिले के उलरहल्ली गांव का है। रिपोर्ट्स के मुताबिक वोक्कालिगा समुदाय के लोगों का वर्चस्व है। गांव में दलित समुदाय के केवल 8-10 परिवार ही रहते हैं। दलितों को गांव के देवता के मंदिर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं है। बीते 8 सितंबर को गांव ने धूमधाम से भूतयम्मा मेले का आयोजन किया था। गांव के रहने वाले शोबा और रमेश के 15 वर्षीय बेटा मंदिर में चला गया।

10वीं कक्षा में पढ़ने वाले बच्चे ने ग्राम देवता सिदिराना से जुड़े एक खंभे को छू लिया। वेंकटेशप्पा नाम के एक युवक ने इसे देख लिया और जाकर गांव के बुजुर्गों को बता दिया। मामला सुनते ही गांव के उच्च जाति बुजुर्ग भड़क गए। उन्होंने परंपराओं का हवाला देते हुए इसे गांव के लिए अपशकुन बताया। 

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अगले दिन पंचायत बुलाई गई। पंचायत द्वारा भगवान को अशुद्ध करने का आरोप तय किया गया। पंचायत ने कहा कि भगवान को शुद्ध करने के लिए पोल को फिर से रंगना पड़ेगा। गांव के मुखिया नारायणस्वामी ने कहा कि इसमें 60 हजार रुपए खर्च होंगे। यह रकम दलित परिवार को चुकाने का फरमान दिया गया। साथ में चेतावनी दी कि अगर वे 1 अक्टूबर तक जुर्माना नहीं भरते हैं, तो पूरे परिवार को गांववालों की ओर से बहिष्कृत कर दिया जाएगा।

इस घटना के बाद पीड़ित परिवार ने डॉ भीम राव अंबेडकर की पूजा शुरू कर दी है। उन्होंने कहा कि, 'अगर भगवान हमें नहीं चाहते हैं, तो हम उनसे प्रार्थना नहीं करेंगे। हम अब से केवल डॉ. भीमराव अम्बेडकर की पूजा करेंगे।' मामला सामने आने के बाद पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है। पुलिस का कहना है कि मंदिरों में प्रवेश पर कोई रोकटोक नहीं है, लेकिन उलेराहल्ली में अनुसूचित जाति समुदाय के लोग स्वयं ही अभिशाप के डर से मंदिर में नहीं जाना चाहते हैं।