हिंदू धर्म की तुलना RSS से करना सनातन का अपमान, देश से माफी मांगें मोहन भागवत: दिग्विजय सिंह

दिग्विजय सिंह ने कहा कि 100 साल पुराना संघ हजारों साल पुरानी हमारी वैदिक संस्कृति, सभ्यता और सनातन धर्म की बराबरी कभी नहीं कर सकता।

Updated: Nov 12, 2025, 02:59 PM IST

भोपाल। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री व राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह ने RSS प्रमुख मोहन भागवत पर निशाना साधा है। उन्होंने कहा कि मोहन भागवत ने RSS की तुलना हिन्दू धर्म से की है। यह सनातन का अपमान है। उन्होंने कहा कि मोहन भागवत को इस देश से माफी मांगनी चाहिए।

दिग्विजय सिंह ने भोपाल स्थित अपने आवास पर पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा, 'अभी कुछ दिन पहले बेंगलुरु में RSS के शताब्दी वर्ष आयोजन में मोहन भागवत जी ने अपने विचार रखे। हालांकि, ये पूरा आयोजन RSS के पदाधिकारियों तक ही सीमित था लेकिन उन्होंने चौंकाने वाली बात कही। उन्होंने कहा कि लोग शिकायत करते हैं कि RSS अपंजीकृत संस्था है। इसका उन्होंने काउंटर किया की RSS अपंजीकृत है तो हिन्दू धर्म भी अपंजीकृत है और इस्लाम भी अपंजीकृत है। सिंह ने कहा कि मुझे इसपर घोर आपत्ति है और मैं भागवत की निंदा करता हूं जो उन्होंने हजारों वर्ष से चल रहे सनातन परंपरा की तुलना सौ साल के संगठन से की।

पूर्व मुख्यमंत्री सिंह ने RSS प्रमुख पर हिंदू धर्म का अपमान करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि मैं सनातनी हिन्दू हूं और मैंने न केवल धर्म को अपनाया है बल्कि पूज्य शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी से सन 1983 में दीक्षा भी ली हुई है। मैं सनातनी हिंदू होने के नाते मोहन भागवत की घोर निंदा करता हूं।उन्हें देश से माफी मांगनी चाहिए, हर हिंदू धर्मावलंबी और सनातन धर्म के पालन करने वालों से माफी मांगनी चाहिए, सभी धर्मगुरुओं से और चारों शंकराचार्यों से माफी मांगनी चाहिए।

सिंह ने कहा कि देश में सभी धर्मों का सम्मान होना चाहिए। स्वामी विवेकानंद ने भी यही कहा है। सनातन भी सर्वधर्म समभाव की बता करता है। भाजपा और RSS नेता-कार्यकर्ता मुस्लिमों के खिलाफ जो जहर उगलते हैं उनकी भी निंदा करता हूं। उनका क्या कसूर है? उनके खिलाफ जहर उगलने का आपको अधिकार नहीं। सिंह ने कहा कि जब RSS पंजीकृत ही नहीं है तो इस संस्था को इनकम टैक्स से क्यों छूट दी गई है। कौन से ऑर्डर से उन्हें कर मुक्त किया गया है? जिस संस्था का कोई बैंक अकाउंट नहीं है उसे किस आधार पर टैक्स से मुक्ति दी गई है।

सिंह के मुताबिक भागवत ने कहा कि हमें न्यायालय ने भी मान्यता दी है। उन्होंने पूछा कि कौन से जज और कोर्ट ने RSS को मान्यता दी है। उन्होंने कहा, 'जब आप अपंजीकृत हैं, तो फिर कैसे मान्यता दे दी? आप कहते हैं कि अंग्रेजों के जमाने में जब RSS का गठन हुआ तब 1985 में कोई कानून नहीं था क्योंकि ब्रिटिश सरकार थी। रजिस्ट्री एक्ट जो है वह 1860 में आ गया था और तब संस्था को पंजीकृत होना आवश्यक था। आपने लोगों को गुमराह किया कि उस समय पंजीयन नहीं होता था। लेकिन ब्रिटिश हुकूमत में भी ब्रह्म समाज, आर्य समाज और रामकृष्ण मिशन रजिस्टर्ड था।' 

उन्होंने सवाल उठाया कि देशभर के लाखों स्वयंसेवी संगठन ‘सोसायटी रजिस्ट्रेशन एक्ट, 1860’ के तहत पंजीकृत हैं और नियमित रूप से अपनी आय-व्यय का ब्यौरा सरकार को देते हैं। फिर संघ इस नियम से खुद को ऊपर क्यों समझता है? करोड़ों रुपए के बजट और 250 करोड़ रुपए की लागत से दिल्ली में बने कार्यालय का हिसाब संघ जनता के सामने क्यों नहीं रखता?

दिग्विजय सिंह ने कहा कि डॉ. भागवत द्वारा यह कहना कि “संघ अंग्रेजों से लड़ रहा था”, पूर्णतः ऐतिहासिक असत्य है। उन्होंने कहा, 'भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में कहीं भी संघ की कोई भूमिका नहीं दिखती। 1925 से 1947 तक जब देश महात्मा गांधी, नेहरू और सरदार पटेल के नेतृत्व में अंग्रेजों से संघर्ष कर रहा था, तब संघ के लोग आंदोलन से दूर रहे। भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु और अशफाक उल्ला खाँ जैसे क्रांतिकारी फाँसी के फंदे पर झूल गए, लेकिन संघ का कोई कार्यकर्ता आजादी की लड़ाई में जेल नहीं गया।'

पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि संघ स्वयं को “गैर-राजनीतिक सांस्कृतिक संगठन” बताता है, जबकि उसके प्रचारक सीधे राजनीति में जाकर सत्ता का लाभ उठाते हैं। उन्होंने कहा, 'एक ओर संघ स्वयं को राष्ट्रभक्त संगठन बताता है, दूसरी ओर उससे जुड़े कुछ लोग देशविरोधी गतिविधियों में लिप्त पाए जाते हैं। संघ के वरिष्ठ नेता स्वयं स्वीकार करते हैं कि हजारों स्वयंसेवक बीफ खाते हैं यह उनके तथाकथित ‘संस्कृति-रक्षक’ स्वरूप की वास्तविकता को उजागर करता है।' 

दिग्विजय सिंह ने दो टूक शब्दों में कहा कि हिंदू धर्म किसी संगठन या संस्था का मोहताज नहीं है। उसके शाश्वत सिद्धांत वेद-पुराणों और उपनिषदों में निहित हैं, न कि किसी शाखा या प्रचारक में। डॉ मोहन भागवत को हिंदू धर्म और संघ की तुलना करने वाले अपने शब्द वापस लेकर, सनातन धर्म को मानने वाले करोड़ों हिंदुओं से सार्वजनिक रूप से माफी माँगनी चाहिए।