मुफ्त की रेवड़ियां बांटने का है पैसा, मगर जजों की सैलरी के लिए नहीं, सुप्रीम कोर्ट की तल्ख टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट जजों की सैलरी में देरी पर राज्य सरकारों की आलोचना की। बेंच ने कहा कि चुनावी वादों (फ्रीबीज) के लिए राज्य के पास धन है, लेकिन जजों को सैलरी और पेंशन देने के लिए पैसे नहीं है।

Updated: Jan 08, 2025, 08:43 PM IST

नई दिल्ली। दिल्ली विधानसभा चुनाव को लेकर सभी दलों द्वारा तमाम लोकलुभावन वादे किए जा रहे हैं। देश में बढ़ रहे रेवड़ी कल्चर पर सुप्रीम कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी की है। सर्वोच्च अदालत ने कहा कि राज्यों के पास मुफ्त की रेवड़ियां बांटने का पैसा है, लेकिन जजों की सैलरी देने के लिए नहीं है।

मंगलवार को एक मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की पीठ ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि राज्यों के पास फ्रीबीज यानी मुफ्त सौगातों के लिए पैसा है, लेकिन जजों को सैलरी देने के लिए फंड की कमी हो जाती है।

कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकारों के पास उन लोगों के लिए पूरा पैसा है, जो कुछ नहीं करते, लेकिन जब जजों की सैलरी की बात आती है तो वे वित्तीय संकट का बहाना बनाते हैं।जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने यह मौखिक टिप्पणी उस समय की, जब अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि ने दलील दी कि सरकार को न्यायिक अधिकारियों के वेतन और सेवानिवृत्ति लाभों पर निर्णय लेते समय वित्तीय बाधाओं पर विचार करना होगा।

सुप्रीम कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा, ‘राज्य के पास उन लोगों के लिए पैसा है जो कोई काम नहीं करते। चुनाव आते हैं, आप लाडली बहना और अन्य नयी योजनाएं घोषित करते हैं, जिसके तहत आप निश्चित राशि का भुगतान करते हैं। दिल्ली में अब आए दिन कोई न कोई पार्टी घोषणा कर रही है कि वे सत्ता में आने पर 2,500 रुपये देंगे।' शीर्ष अदालत ने सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को पेंशन के संबंध में अखिल भारतीय न्यायाधीश संघ की ओर से 2015 में दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की।