Sharad Pawar: मोदी सरकार के तीनों नए कृषि कानून कृषि व्यवस्था के लिए घातक

पूर्व कृषि मंत्री शरद पवार ने मोदी सरकार के कृषि कानूनों पर बोला हमला, बीजेपी के एक-एक आरोप का दिया करारा जवाब

Updated: Jan 31, 2021, 06:41 AM IST

Photo Courtesy: Rediff.com
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नई दिल्ली/मुंबई। NCP प्रमुख शरद पवार ने केंद्र के कृषि कानूनों पर जमकर हमला बोला है। शरद पवार ने कहा है कि मोदी सरकार के तीनों नए कृषि कानून कृषि व्यवस्था के लिए घातक हैं। पवार के मुताबिक कानून के कारण मण्डी व्यवस्था कमज़ोर हो जाएगी। बड़ी कंपनियों को अनाज और अन्य कृषि उत्पादों का मनमाना स्टॉक रखने की छूट मिल जाएगी और ग्राहकों को ऊंचे दाम चुकाने पड़ेंगे।

सुधार का मतलब यह नहीं कि व्यवस्था को ही बर्बाद कर दो: पवार 

शनिवार को शरद पवार पीएम की अध्यक्ष में वर्चुअली आयोजित सर्वदलीय बैठक में शामिल हुए थे। बैठक समाप्त होने के बाद पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री ने मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि सुधार एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कोई भी व्यक्ति इस बात से इनकार नहीं कर सकता कि मंडी व्यवस्था में सुधार की गुंजाइश है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं होता कि पूरी व्यवस्था को ही ध्वस्त कर दिया जाए। 

दरअसल शरद पवार ने मंडी व्यवस्था को लेकर यह बयान बीजेपी नेताओं के आरोपों के जवाब में दिया है। बीजेपी आरोप लगाती है कि मोदी सरकार भी मंडी व्यवस्था में वैसे ही सुधार कर रही है, जिनकी बात शरद पवार भी करते रहे हैं। शरद पवार ने इन आरोपों का विस्तार से जवाब दिया है। उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान  2007 में बनाए गए APMC के प्रस्तावित नियमों और केंद्र के नए कानून की तुलना करके बताया है कि दोनों में कितना फर्क है। उन्होंने नौ बिंदुओं के जरिये समझाया है कि बीजेपी के लाए कानून के प्रावधान उनके सुझाए सुधारों से कितने अलग हैं।

पवार ने कहा कि नए कानून मंडी व्यवस्था को निजी बाज़ार से टैक्स एकत्रित करने की शक्ति से रोकते हैं। पवार के मुताबिक नए कानून की वजह से MSP पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। पवार ने कहा कि मंडी व्यवस्था पूरी तरह से चौपट हो जाएगी।

पवार ने कहा कि वे नए कानून के तहत एसेंशियल कमोडिटीज़ एक्ट (Essential Commodities Act) में किए गए बदलावों से काफी चिंतित हैं। उन्होंने कहा कि नया कानून बड़ी कंपनियों को कृषि उत्पादों का स्टॉक जमा करने के मामले में मनमानी करने की छूट देता है। इससे यह आशंका बढ़ गई है कि बड़ी कंपनियां किसानों की फसल कम कीमत पर खरीद कर उनके विशाल भंडार जमा कर लेंगे और फिर ग्राहकों को वही प्रोडक्ट मनमाने दामों पर बेचेंगे।