Ram Temple: मारे गए कारसेवकों के आश्रितों ने लगाई मदद की गुहार

Ayodhya Kar Seva: 1990 में लालकृष्ण आडवाणी की अगुवाई में राम मंदिर आंदोलन के दौरान मारे गए थे दर्जनों कारसेवक

Updated: Aug 06, 2020, 06:53 AM IST

कारसेवक वासुदेव गुप्ता की बेटी सीमा। courtsey : theprint
कारसेवक वासुदेव गुप्ता की बेटी सीमा। courtsey : theprint

नई दिल्ली। बुधवार को उत्तरप्रदेश के अयोध्या में पीएम नरेंद्र मोदी द्वारा अयोध्या में मंदिर का शिलान्यास किए जाने के बाद से पूरे देश में हर्षोल्लास है। कुछ ऐसे परिवार भी हैं जिनके प्रियजनों ने राम मंदिर आंदोलन में  प्राणों की आहुति दे दी लेकिन आज उनके आश्रितों की खबर तक लेने वाला कोई नहीं है। साल 1990 में पुलिस फायरिंग के दौरान मारे गए लोगों के आश्रितों को राम मंदिर बनाए जाने से खुशी तो है परंतु वे इस घटना के 30 साल बाद आज भी सरकार से आर्थिक मदद करने की गुहार कर रहे हैं।

राम मंदिर निर्माण कार्य की निगरानी कर रहे न्यास ने भूमि पूजन समारोह में मृतकों के परिजनों को भी आमंत्रित किया है। पीएम मोदी द्वारा उद्घाटन होने वाले कार्यक्रम में निमंत्रण मिलने के कारण एक बार फिर सुर्खियों में आए इन परिवारों को इस बात की खुशी है कि प्रियजनों के सपने पूरे होने जा रहे हैं। आर्थिक तंगी से जूझ रहे इन परिवारों की मांग है कि परिजनों के बलिदान के एवज में सरकार उनकी सहायता करे, चूंकि उस समय कई ऐसे लोगों की मौत हुई थी जो अपने परिवार में एकलौता कमाने वाला व परिवार की मुखिया थे। नतीजन उनके जाने से आश्रितों की हालत पिछले 30 वर्षों में बद से बदतर हो गई।

पीता ने दी जान, सरकार दुकान हटाने की तैयारी में

अयोध्या में मिठाई बेचने वाले वासुदेव गुप्ता ने भी मंदिर आंदोलन में जान दी थी। अंग्रेजी न्यूज़ वेबसाइट द प्रिंट ने उनकी बेटी सीमा के हवाले से बताया है कि भगवा झंडा फहराने के बाद घर लौटते वक्त वे पुलिस की गोलियों के शिकार हुए थे। सीमा ने कहा, 'मंदिर बनने की खबर के सामने हमारी समस्याएं छोटी लगती हैं। मेरे पिता ने इसी मंदिर के लिए जान दी थी और आज वह बन रहा है।' सीमा ग्रेजुएट हैं और वह गार्मेंट्स की दुकान चलाती है, लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि सरकार सड़क-चौड़ीकरण परियोजना के तहत उनकी दुकान हटाने की तैयारी में है। उन्होंने कहा, 'मेरे लिए आजीविका का यह एकमात्र साधन है। मेरा आग्रह है कि मुझे दुकान के लिए मंदिर के अंदर कुछ जगह दे दिया जाए या कहीं नौकरी दी जाए।'

पति की मौत के बाद गायत्री ने अकेले किया बच्चों की परवरिश

2 नवंबर 1990 को रमेश पांडेय की मौत हुई थी। उनकी विधवा गायत्री देवी ने बताया है कि 35 साल के उम्र में ही रमेश मारे गए थे। उन्होंने कहा, 'जब मेरे पति मारे गए थे मेरे पास कुछ भी पैसे नहीं थे बावजूद इसके मैने किसी तरह अपने बच्चों की परवरिश की। अब मेरे बच्चे प्राइवेट काम करते हैं, लेकिन आय भी काफी नहीं है। मेरे पास कमाने-खाने का कोई जरिया नहीं है। रहने के लिए घर भी नहीं है। मैं उम्मीद करती हूं कि सरकार हमारी भी कुछ मदद करेगी। मुझे इस बात की खुशी है कि राम मंदिर निर्माण से पति की आत्मा को शांति मिलेगी।'

बांस की टोकरियां बनाते हैं धारकर के परिवार

राजेन्द्र प्रसाद धारकर के भाई रवीन्द्र ने बताया कि 30 अक्टूबर को जब राजेंद्र मारे गए थे तब उनकी उम्र महज 17 वर्ष थी। राम मंदिर का निर्माण आखिरकार हो रहा है और समारोह में आने का मुझे न्योता मिला है इस बात की मुझे खुशी है लेकिन साथ ही हम यह भी चाहते हैं कि कोई हमारी स्थिति के ऊपर भी ध्यान दे। विधायक, सांसद, पार्षद किसी ने हमारी परेशानियों को नहीं सुना। किसी ने यह देखने की जहमत नहीं उठाई की एक शहीद का परिवार कैसे जी रहा है।

उन्होंने आगे कहा, 'मेरे तीन बेटे और कई बेटियां हैं लेकिन बांस की टोकरियां बनाकर बेचने से हम प्रतिदिन मात्र 100-200 ही कमा पाते हैं। लॉकडाउन के दौरान वह भी बंद हो गया। मेरे पास रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने के लिए भी पैसे नहीं हैं।' उन्होंने पीएम मोदी और सीएम योगी से मंदिर परिसर में एक दुकान देने की मांग की है ताकि वह अपने परिवार को चला सकें।

लाखों कारसेवक अयोध्या में हुए थे एकत्रित

ग़ौरतलब है कि साल 1990 में विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के आह्वान पर लाखों लोग अयोध्या में कारसेवा के नाम पर एकत्रित हुए थे। उस दौरान बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में राम मंदिर आंदोलन अपने चरम पर था। नेताओं के भाषणों को सुनने के बाद कारसेवक बाबरी मस्जिद की ओर बढ़ रहे थे तब कोई अनहोनी न हो पाए इसलिए पुलिस ने उन्हें रोकने के लिए गोलियां चलाई जिसमें करीब डेढ़ दर्जन लोग मारे गए थे। सरकार ने मरने वालों की संख्या 16 बताई थी हालांकि चश्मदीदों का दावा है कि इससे कई गुना ज्यादा लोग मारे गए थे।