प्रतिबंधित संगठन के सदस्य होने पर भी हो सकती है UAPA के तहत कार्रवाई, सुप्रीम कोर्ट ने पलटा पुराना फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने अपने उस फैसले को पलट दिया जिसमें कोर्ट ने एक आरोपी को जमानत देते हुए कहा था कि महज़ प्रतिबंधित संगठन का सदस्य होने भर से कोई अपराधी नहीं हो जाता

Publish: Mar 24, 2023, 01:59 PM IST

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने UAPA कानून के संबंध में बड़ा फैसला दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कानून के एक मामले को लेकर अपनी सुनवाई के बाद फैसला देते हुए कहा कि प्रतिबंधित संगठन के सदस्य भर होने से व्यक्ति पर इस कानून के तहत कार्रवाई हो सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला सुनाते हुए अपने ही एक पुराने फैसले को पलट दिया है।

शुक्रवार को इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। जस्टिस एमआर शाह, सीटी रविकुमार और संजय करोल की तीन सदस्यीय बेंच ने गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम के एक मामले में सुनवाई की। बेंच ने UAPA की धारा 10(a) (i) को सही ठहराते हुए कहा कि किसी प्रतिबंधित संगठन का सदस्य होना भी कानूनी कार्रवाई के दायरे में आता है। 

सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा करते हुए 2011 में अपने उस फैसले को पलट दिया जोकि पूर्व न्यायाधीश मार्केंडे काटजू और ज्ञान सुधा मिश्रा की बेंच ने प्रतिबंधित संगठन उल्फा के सदस्य को जमानत दे दी थी। तब अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि महज़ प्रतिबंधित संगठन का सदस्य होने से कोई अपराधी नहीं हो जाता। जब तक आरोपी गैरकानूनी गतिवधि में संलिप्त न हो या उसने किसी प्रकार की हिंसा न की हो तब तक उसे अपराधी नहीं माना जा सकता। 

बारह वर्ष पुराने इस फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि 2011 का फैसला जमानत देने के मामले में दिया गया था लेकिन उसमें उन्होंने कानून की संवैधानिक वैधता पर कोई सवाल नहीं खड़ा किया था। UAPA और TADA की संवैधानिक वैधता को उस फैसले में भी बरकार रखा गया था। उच्चतम न्यायालय ने 2011 के फैसले को लेकर यह भी कहा कि उस समय भारत गणराज्य का कोई भी प्रतिनिधि अपना पक्ष रखने के लिए मौजूद नहीं था। इसलिए बिना भारतीय गणराज्य के प्रतिनिधि के होते हुए उस फैसले को देने से बचा जा सकता था। कोर्ट ने कहा कि संघ की अनुपस्थिति में संसदीय कानून पर फैसला देने से बचा जाना चाहिए।